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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, July 13, 2014

छिपा खजाना-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं(chipa khazana-hindi vyangya kavitaen)



कई बार सुना  वह लोग अमीर हो जाते हैं,
जिनके हाथ छिपे खजाने लग जाते हैं।
कहें दीपक बापू अब देखते हैं हम
छिपाते हैं जो अपना खजाना वही  अमीर कहलाते हैं।
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लुटेरों को अब कोई भय नहीं सताता है,
खजाने में पहरेदारों से ही हिस्सा मिल जाता है।
कहें दीपक बापू अपराधों का पैमाना ऊपर जाये तो जाये
रुपहले पर्दे पर ज़माने के हालात पर होती चर्चा
रोने वाला भी कमाई कर जाता है।
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किस जगह कौनसा सामान कब तक बचायें,
लुटने की फिक्र में जिंदगी कब तक दाव पर लगायें।
कहें दीपक बापू चिंता से बेहतर हैं चिंत्तन करना
सामानों का उपयोग करें पर दिल न लगायें।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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