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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, July 24, 2014

जिंदगी के अलग अलग रंग-हिन्दी कविता(zindagi ke alag alga rang the-hindi pome)



हम तो जोश से चले थे
अपनी मंजिल की तरफ
नहीं पहुंच पाये क्योंकि रास्ते बंद थे।

हमने तो अच्छी नीयत से
ज़माने से रिश्ता जोड़ा
नहीं निभा क्योंकि लोगों के दिल तंग थे।

घूम घूमकर दरियादिलों की तलाशी की
देखा लोग खुद ही बेहाल हैं
सभी के जिंदगी जीने के अपने ही रंग थे।

कहें दीपक बापू हालातों पर
सोचना हमने बंद कर दिया
क्योंकि अपने दिल दिमाग के ख्याल
ऐसे उड़ते और कटते जैसे पतंग थे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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