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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, October 31, 2008

दीवाली के बम का नामकरण-व्यंग्य कविता

पटाखा कंपनी का मालिक
पहुंचा अपने गुरु के पास और बोला
"महाराज, मैंने दिवाली पर
बच्चों के लिए बनाया है
एक नए किस्म का बम
उसका कोई जोरदार नाम बताएं
आपकी श्रीमुख से नामकरण
मुझे हमेशा ही फलता है
कृपा करें ताकि मेरे पटाखे खूब कमायें"

सुनकर मुस्कराए गुरूजी और बोले
"कैसी बात करता है
फुलझडी का नामकरण पूछा होता तो ठीक था
क्या नकली बम का नाम पूछते हो
कैसी पहेली बूझते हो
इतने सारे असली बम फूट जाते हैं
कभी उनकी कंपनी के नाम
भला कभी सुन पाते हैं
लोग ही रख देते हैं
भाषा,जाति,और धर्म के आधार पर उनके नाम
परमाणु बन भी अब अपनी असली नाम से नहीं
बल्कि बनाने वाले दिखाते हैं अपना गौरव
इसलिए धर्म के नाम पर पहचाना जाता है
जिसके पास है उसकी कौम का नाम पाता है
यह अलग बात है
जब असली बम फटता है
मरते हैं बेकसूर लोग
तब जिसकी कौम का नाम आये वह शर्माए
उसका सीना फूलता हैं जिसका न आये
आदमी जी रहा है अपने कौम के भ्रम में
तुम्हारा नकली बन भी यही करेगा
जो जलाएगा उसकी कौम का बनेगा
अपनी जुबान को व्यर्थ नहीं कर सकते
लोग रख देते हैं खुद ही अपने हिसाब से उसका
हम भला क्यों तुम्हें बताएं"

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