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Monday, April 26, 2010

बेचते है जंग सौदे की तरह-हिन्दी शायरी (sale of war-hindi satire poem)

जिनके महल हैं ऊंचे,
कदम नहीं पड़ते धरती पर उनके
देशभक्ति का पाठ वही पढ़ाते हैं,
कभी खुद जंग में न लड़ें,
एक दिन के लिये आंसु बहायें
जब गरीब शहीद होकर मरें,
कभी खून न बहा जिनका
वह क्रांति का रास्ता दिखाते हैं।
बचाकर रखना खुद को गरीब इंसान
यहां बेचते हैं जंग सौदे की तरह,
लोगों के भले की बात यूं ही बताते हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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1 comment:

दिलीप said...

ek ek shabd vidroh ki aag me jalta hua...bahut badhiya...aisi lekhni ki zarurat hai...

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