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Friday, April 23, 2010

विकास दर और मजदूर-हिन्दी शायरी (vikas dar aur mazdoor-hindi shayari)

चार मजदूर
रास्ते में ठेले पर सरिया लादे
गरमी की दोपहर
तेज धूप में चले जा रहे थे,
पसीने से नहा रहे थे।
ठेले पर नहीं थी पानी से भरी
कोई बोतल
याद आये मुझे अपने पुराने दिन
पर तब इतनी गर्मी नहीं हुआ करती थी
मेरी देह भी इसी तरह
धूप में जलती थी
पर फिर ख्याल आया
देश की बढ़ती विकास दर का
जिसकी खबर अखबार में पढ़ी थी,
जो शायद प्रचार के लिये जड़ी थी,
और अपने पसीने की बूंदों से नहाए
वह मजदूर अपने पैदों तले रौंदे जा रहे थे

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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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1 comment:

Asha Lata Saxena said...

बहुत सार्थक चित्रण |
आशा

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