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Monday, February 1, 2010

देश की अकल पर अंग्रेज ताला जड़ भी गये-हिन्दी व्यंग्य कविता (desh aur akal-hindi vyangya kavita)

एक बार कोई नारा लगाकर

शिखर पर चढ़ गये

ऐसे इंसान बुत की तरह

पत्थर में तस्वीर बनकर जड़ गये।

नीचे गिरने का खौफ उनको

हमेशा सताता है,

बचने के लिये

बस, वही नारा लगाना आता है,

दशकों तक वह खड़े रहेंगे,

उनके बाद उनके वंशज भी

उसी राह पर चलेंगे,

करते हैं अक्लमंद भी हर बार

उनकी चर्चा,

क्योंकि नहीं होता अक्ल का खर्चा,

करोड़ों शब्द स्याही से

कागज पर सजाये गये,

पर्द पर भी हर बार नये दृश्य रचाये गये,

कहें दीपक बापू

जमाने भर में कई विषयों पर

चल रही बहस खत्म नहीं होगी,

नारे पर न चलें तो कहलायें विरक्त योगी,

चले तो खुद को ही लगें रोगी,

भारत छोड़ते छोड़ते अंग्रेजों ने

कुछ इंसान बुतों के रूप में छोड़े,

जिन्होंने अपनी जिंदगी में बस नारे जोड़े,

तो अकलमंदों की भी चिंतन क्षमता हर गये

इसलिये देश खड़ा है

बरसों से पुराने मुद्दों पर अटका

अपने ही आदर्श से भटका

सच कहते हैं ज्ञानी

देश की अकल  पर अंग्रेज  ताला भी जड़ गये।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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