समाज के ठेकेदार से
उसके दोस्त ने पूछा
‘यार, तुम वैलंटाईन डे पर
प्यार की आजादी की जंग लड़ते हो,
जो आधा शरीर ढके वस्त्र पहने
उनके साथ देने का दंभ भरते हो,
क्यों नहीं वस्त्रहीन घूमने पर लगी
रोक ही खत्म करवा देते,
श्लीलता और अश्लीलता का भेद मिटा लेते।’
प्रश्न सुनकर समाज का ठेकेदार
घबड़ा गया और बोला
‘क्या बकवास करते हो,
अर्द्ध नग्न और वस्त्रहीन में
फर्क नहीं समझते हो,
अरे, मूर्ख मित्र
अगर वस्त्रहीन घूमने की
छूट लोगों को मिल गयी,
तो समझो अपनी ठेकेदारी हिल गयी,
बना रहे यह भेद अच्छा है
जहां तक हम कहें वहीं तक
रह पाती है श्लीलता,
विरोधी को निपटाने में
बहाना बनती है उसकी अश्लीलता.
इसलिये वस्त्रहीन घूमने की
लोगों को छूट नहीं दिलवाते
मौका पड़ते ही बयानों में अपना नाम लिखवाते
फिर किसकी आजादी के लिये लड़ेंगे
वस्त्रहीनों से तो सर्वशक्तिमान भी डरता है
फिर वह क्यों किसी से डरेंगे।
जब तक वस्त्र छिन जाने का डर है
तभी तक ही तो लोग हमारा आसरा लेते।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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