केवल वादे पर ही चलती है,
नारों तक ही उनकी सोच की बती जलती है।
रोज यकीन कर खाते हो धोखा
तरस तुम्हारी अक्ल पर आता है
उसमें उनकी क्या गलती है।
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तोहफे अब प्यार के जज़्बात में
बहकर नहीं दिये जाते हैं,
सौदागरों देते हैं पहले अग्रिम की तरह
फिर जिस्म नौचते हैं
या फिर दिल से खिलवाड़ कर जाते हैं।
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ताकतवर हैं वह
इसलिये उनके गुनाहों पर पर्दा पड़ जाता है,
जमाने भर के कसूर करे जो
उसका कद भी लोगों की नज़र में बढ़ जाता है।
उनको क्या दोष दें
लोगों की नज़रें ढूंढ रही हैं
खूनखराबे का खेल
अपना दिल बहलाने के लिये
इसलिये जिनको आदत है कत्ल करने की
उनको भी उसका नशा चढ़ जाता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://rajlekh.blogspot.com
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