अपने देश के लोग
हर नई चीज को दहेज के
लेन देने में जोड़ जाते हैं,
हर पश्चिमी फैशन की धारा को
अपने संस्कारों के समंदर की तरफ मोड़ जाते हैं।
बुद्धिमान कर रहे धर्म और संस्कारों को लेकर
लंबी चौड़ी बहसें
दुनियां में अपनी संस्कृति का
झंडा फहराने की व्यर्थ होड़ लगाते हैं।
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टूट जाता है मन
रोज झूठ सुनते सुनते
हर कदम पर फरेब और बेईमानी की बोली
लोग बोलने लग जाते हैं,
कसम उठती है
पर खामोशी एक हथियार की तरह
अपने पास रख ली है हमने
हल्का कर लेते हैं अपना दिमाग
जब पाते है लोगों को हल्का
उनके शब्दों के सच को तोलने लग जाते हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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