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Thursday, July 8, 2010

विकास पुरुष-हिन्दी हास्य कविता (vikas purush-hindi hasya kavita)

चमचे ने कहा
‘विकास पुरुष जी
आप भी कमाल का कर रहे विकास,
इधर हो रहा है विनाश,
कारों के उत्पादन को
विकास का प्रतीक बता रहे हैं,
उत्पादन में ही हित जता रहे हैं,
मगर घटिया सड़कें बनवा देते हैं,
जिसके प्राण दो मिनट की बरसात के छींटे ही ले लेते हैं,
हो जाता है जिससे रास्ता जाम,
जहां सुबह पहुंचना हो
हो जाती है वहां शाम,
कारों के नये नये माडल बनवाने से अच्छा है
पहले सड़कें बनवायें
सच में विकास पुरुष की छबि बनायें।’

सुनकर भड़के विकास पुरुष
‘अरे ओए थकेले चमचे
अब तेरा दिमाग फिर गया है,
इसलिये जनता के कल्याण की
गंदी सोच में घिर गया है,
अगर हम तेरी तरह सोचते,
तो चमचे होकर किसी के अपने ही बाल नौंचते,
कारों के नये नये कारखानों से
हमें चंदा मिलता है,
पेट्रोल की बिक्री से भी
कमीशन का धंधा खिलता है,
सड़कों पर जाम लगने से भी हमें फायदा है,
क्योंकि अपने लाभ लेने की कायदा है,
जाम से पेट्रोल ज्यादा बिकता है
धूल और झटकों से कार होती जल्दी पुरानी
नया माडल जल्दी बाजार में दिखता है,
फिर दुनियां के प्रचार माध्यमों में
जाम में फंसी रंग बिरंगी कारों के झुंड
के फोटो छपने से
अपने विकास का मंजर प्रचार पाता है
पहियों तले दबी फटेहाल सड़कों का
हाल कौन देख पाता है,
सड़के चमचमाती बन जायेंगी,
तो हर साल कमीशन भी नहीं दिलवायेंगी,
अभी तो विकास के नाम पर
वहां से भी अच्छा पैसा आता है,
विकास तो वही श्रेष्ठ होता हमारे लिये
जो कभी लक्ष्य नहीं पाता है,
यह बात तुम्हें कितनी बार समझायें।’’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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