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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 9, 2014

प्यासे के हमदर्द-हिन्दी व्यंग्य कविता(pyase ke hamdard-hindi vyangya kavita)



जिनके महल रौशन है वह क्या अंधेरे घरों का दर्द जानेंगे,
रोटियों को ढेर जिनके सामने है वह भूख का क्या दर्द मानेंगे।
कांपते है जिनके हाथ व्यवस्था में बदलाव के नाम से
वह क्रांति का दावा बेबस लोगों के सामने करते हैं,
घूमते हैं कार में रिक्शा चालकों की चिंता का दंभ भरते हैं,
आदर्शवादी बाते कहना आसान है अमल में लाना जरूरी नहीं,
पर्दे पर चमक जाओ बयानों पर चलने की फिर मजबूरी नहंी,
पानी की प्यास पर देते हैं बहुत सारे बयान
घर में पीने के लिये उनके यहां समंदर भरे हैं,
प्यासों के दर्द पर जताते सहानुभूति वही
खुद प्यासे मरने के भय से जो डरे हैं,
कहें दीपक बापू नहीं मांगना रोटी और पानी
कभी भलाई के धंधेबाज दलालों से नहीं मांगना
तुम्हें भीड़ में भेड़ की तरह लगाकर अपना सीना तानेंगे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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