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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, March 30, 2014

शब्दों से सिंहासन हिल जाते हैं-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(shabodn se sinhasan hil jate hain-hindi vyangya kavita)



किसको बढ़ती महंगाई की फिक्र है,
सभी की जुबान पर अपनी कामयाबी का जिक्र है,
जहान की परेशानियों से कुछ लोग बहुत  हैरान है।
कहें दीपक बापू दर्द झेलने वाले
कहीं अपने इलाज की भीख मंागने नहीं जाते
 फिर भी हमदर्दी के सौदागर बेचते अपनी चिंता
 जेब में रखते इनाम
चेहरा ऐसा दिखाते जैसे जहान के गम से वह परेशान है।
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न पेड़ लगते न पत्ते लहराते
फिर भी कागजों पर ढेर सारे गुलाब खिल जाते हैं,
यहां कोई फरिश्ता नहीं दिखता
फिर भी नारे लगाने वाले बहादुरों के पीछे
बहुत सारे लोगों के दिल जाते हैं।
कहें दीपक बापू यहां जुबानी जंग लड़ने के
अच्छे दाम लेकर अक्लमंद संभालते मैदान
 कोई मसला नहीं सुलझता यहां
चर्चा यह कि शब्दों से सिंहासन हिल जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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