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Thursday, March 27, 2014

भर्तृहरि नीति शतक-दुष्ट तथा लालचियों को सरंक्षण देने वालों से सुख की अपेक्षा नही(bharitrihari neeti shatak-dusht tathaa lalchiyon ko sanrkashan dene walon se sukh ki apeksha nahin)



      हमारे देश में वर्ष 2014 में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं।  इन चुनावों में दागी लोगों के चुनाव लड़ने पर देश में लंबे समय से बहस चल रही है पर जैसा कि आधुनिक लोकतंत्र का सिद्धांत बन गया है कि बहसें चलती रहें भले ही उनका निष्कर्ष निकले या नहीं, यही अब भी हो रहा है।  प्रचार माध्यमों में बहुत समय से भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक वातावरण बना पर ऐसा लग नहीं रहा कि उसका कोई सकारात्मक प्रभाव हुआ है।  अपराधिक तथा भ्रष्ट छवि वाले लोगों को अब भी चुनाव में शामिल होने का अवसर धड़ल्ले से मिल रहा है।
      हैरानी की बात यह है कि देश में लंबे समय तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन से प्रचार माध्यमों में अपनी महान छवि बनाने वाले लोगों ने अपना एक समूह बनाया और वह भी भ्रष्ट तथा अपराधिक छवि वाले लोगों को टिकट देकर यह साबित कर रहे हैं कि उनका काम भी मैली छवि वालों के बिना नहीं चल सकता।  हमें इन चुनावों में शामिल होने पर ऐसे लोगों पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि लोकतंत्र में यह सभी को अधिकार प्राप्त है कि जब तक किसी पर अपराध सिद्ध न हो जाये उसे चुनाव लड़ने से कोई रोक नहीं सकता।

भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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उद्भासिताऽखिलखलस्य विश्रृङखलस्यप्रारज्ञातविस्तृतनिजाधमकर्मवृत्तेः।
दैवादवाप्तविभवस्य गुणद्विषोऽस्य नीचस्य गोचरगतैः सुखमाप्यते कैः?।।
      हिन्दी में भावार्थ-नीच कर्म से अपने वर्ग के समस्त दुष्टों को प्रकाश में लाने, इच्छानुसार व्यवहार, पहले किये कुकर्मों में प्रवृत्ति रखने, यकायक संपत्ति पाने, धार्मिक वृत्ति से दूर रहने, तथा गुणवानों से द्वेष रखने वाले नीच जीवों के साथ रहकर कोई सुख नहीं पा सकता।

      चुनाव में सक्रिय समूह संविधान के अनुसार चल रहे हैं इसलिये उन पर कोई टिप्पणी करना भी ठीक नहीं है पर बात नैतिकता की है। हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार दुष्ट लोगों को प्रकाशमान बनाना भी एक तरह अनैतिक हैं।  जिन आम लोगों को यह अपेक्षा रहती है कि उनके जनप्रतिनिधि उनके हित का काम करे उन्हें यह भी देखना चाहिये कि उसकी छवि किस तरह की है?  जिन लोगों ने येनकेन प्रकरेण धन प्राप्त कर लिया है उनमें  आधुनिक लोकतंत्र में श्रेष्ठ राजसी पुरुष की उपाधि धारण करने की प्रवृत्ति जोर मारती है।  ऐसे में धन के बल पर उनके पास पेशेवर बुद्धिमान, लालची बाहुबली तथा मर मिटने वाले अनुचरों का होना स्वाभाविक है।  जनमानस में अपना प्रचार करने के पूरे साधन होने से अंततः उन्हें सफलता मिल ही जाती है। सच बात तो यह है कि विश्व में आधुनिक लोकतंत्र में धनपतियों को अप्रत्यक्ष रूप से राजा बनने की सुविधा प्राप्त हुई है जिसका लाभ वह उठा ही लेते हैं। यही कारण है कि हम अपने देश में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में ऐसी व्यवस्था प्रचलित देख रहे हैं जिसमें सामान्य आदमी एक भोक्ता से अधिक हैसियत वाला नहीं है। वह निर्णायक दिखता है पर होता नहीं है।  विकास बहुत हुआ है पर लोगों का मानसिक सुख कम हो गया है। हमारे आध्यात्मिक दर्शन के अनुसार जिस तरह भ्रष्ट, अपराध तथा धनलोलुप लोगेां को शीर्षस्थ स्तर पर स्थान मिल रहा है उसमें समाज हित की ज्यादा अपेक्षा करना भी नहीं चाहिये।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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