अपने शरीर से निकले पसीने पर भी
कभी तरस नहीं आया,
परिश्रम से हर रिश्ता निभाया।
पांव में लगी कीलें अनेक बार
हाथों मे रस्सियों ने छोड़े निशान
दर्द बांटा अपनों और परायों से
पर अपनी हर जंग में खुद को अकेला पाया।
दोस्तों के विश्वास पर खरे उतरे
पर अपना यकीन उन पर नहीं जताया।
मांगा किसी से कुछ नहीं
कुछ देते वक्त नजरों को छिपाया।
दुनियां का सबसे बड़ा हमदर्द
होने का दावा फिर भी नहीं करते
क्योंकि कभी उसे व्यापार नहीं बनाया।
सीखा है अनुभव से
गरीबों और बेसहारों की विषय वस्तु पर
लिखने और बोलने वाले बहुत हैं
पर हमदर्दी का शऊर उनको न आया,
मदद के लिये उनके हाथ बढे नहीं किसी के लिये
बस जुबां से लफ्ज बोलकर निभाया।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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3 years ago
2 comments:
bahut ucch koti ke bhav aur utanee hee sunder abhivykti .
Ye rachana bahut acchee lagee .
दुनियां का सबसे बड़ा हमदर्द
होने का दावा फिर भी नहीं करते
क्योंकि कभी उसे व्यापार नहीं बनाया।
आपने तो व्यापार नहीं बनाया पर यह 'भाव' भी बाजार में बिकने लगा है.
बेहतरीन रचना के लिये साधुवाद
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