समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, April 3, 2019

क्रांति का नाम शब्द बारूद जैसा चलायें,-दीपकबापूवाणी

क्रांति का नाम शब्द बारूद जैसा चलायें, रौशनी बुझाकर अंधेरों को ही जलायें।
‘दीपकबापू’ चेतना की दलाली में बीते बरसों, चिंत्तन का कीड़ा रक्त में नहलायें।।
---
टूटे खिलौने कभी जोड़ते नहीं है, दिल के जज़्बात कभी तोड़ते नहीं है।
घाव पर लगे हमदर्दों का मेला, ‘दीपकबापू’ दर्द से ध्यान मोड़ते नहीं है।।
----
अभिव्यक्ति कुचलने का गम है,
गालियां देते शब्दों में बम है।
कहें दीपकबापू पाखंडी बने देव
झूठी हमदर्दी में उनकी आंखे नम हैं।
--
साथी वह मिलें
हमारी पसंद की जो बात कहें।
कहें दीपकबापू वरना अकेलेपन की
उदासी आनंद से सहें।

Thursday, March 28, 2019

पर्यावरण में विष घोलकर विकास की बात करते हैं-दीपकबापूवाणी (Vish Gholkar vikas ki baat karte hain-DeepakbapuWani)

नेता अभिनेता प्रचार के लिये बोलें,
हर रस मे अपने शब्द घोलें।
ंभाषा के अलंकार भूलते
अर्थ के नाम पर अनर्थ खोलें।
---
राम नाम पर सत्ता का सुख लूट,
भ्रष्टाचार की भी लेते छूट।
‘दीपकबापू’ बनाई कायरों की फौज
फायदों के लिये पड़ती जिसमें फूट।।
----


कभी गरीबी से हमने साथ निभाया
पसीने ने पैसे से भी साथ पाया।
‘दीपकबापू’ जिंदगी के होते अनेक दौर
अपना हाथ ही जगन्नाथ पाया।
----
जोगिया वस्त्र न पहने हैं,
धैर्य मौन जैसे गहने हैं।
‘दीपकबापू’ गुण अगर साधु हों
उनके चरण मुक्त धारा में बहने हैं।
-----
पर्यावरण में विष घोलकर
विकास की बात करते हैं।
कहें दीपकबापू नाकाम लोग
सम्मान अपने सिर पर धरते हैं।
---
खूबसूरत सुबह खबरों से दूर
दिल बेचिंता सामने मनमोहक नूर।
कहें दीपकबापू जैसे रिमोट पकड़ा
दुनियां के संकट लगे सामने घूर।
---
यहां बदनामी भी बिक जाती
बदले में नाम मिल जाता है।
कहें दीपकबापू काले दागों का भी
सुंदर चित्र वाला दाम मिल जाता है।
---
सूट लाख बूट हजारों का पहने,
जनसेवकों के ठाटबाट का क्या कहने।
कहें दीपकबापू भलाई के दलाल
पालने के दर्द लोगों को हैं सहने।
------
अब किनारे बैठकर 
सड़क पर गुजरते कारवा
गुजरते हुए देखने का
मजा लेने दो यारों
कभी हम भी ऐसे ही
भीड में शामिल होते थे
यादों की बहती धारा का
बहते देखें का
मजा लेने दो यारों
------

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर