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Thursday, March 28, 2019

पर्यावरण में विष घोलकर विकास की बात करते हैं-दीपकबापूवाणी (Vish Gholkar vikas ki baat karte hain-DeepakbapuWani)

नेता अभिनेता प्रचार के लिये बोलें,
हर रस मे अपने शब्द घोलें।
ंभाषा के अलंकार भूलते
अर्थ के नाम पर अनर्थ खोलें।
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राम नाम पर सत्ता का सुख लूट,
भ्रष्टाचार की भी लेते छूट।
‘दीपकबापू’ बनाई कायरों की फौज
फायदों के लिये पड़ती जिसमें फूट।।
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कभी गरीबी से हमने साथ निभाया
पसीने ने पैसे से भी साथ पाया।
‘दीपकबापू’ जिंदगी के होते अनेक दौर
अपना हाथ ही जगन्नाथ पाया।
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जोगिया वस्त्र न पहने हैं,
धैर्य मौन जैसे गहने हैं।
‘दीपकबापू’ गुण अगर साधु हों
उनके चरण मुक्त धारा में बहने हैं।
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पर्यावरण में विष घोलकर
विकास की बात करते हैं।
कहें दीपकबापू नाकाम लोग
सम्मान अपने सिर पर धरते हैं।
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खूबसूरत सुबह खबरों से दूर
दिल बेचिंता सामने मनमोहक नूर।
कहें दीपकबापू जैसे रिमोट पकड़ा
दुनियां के संकट लगे सामने घूर।
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यहां बदनामी भी बिक जाती
बदले में नाम मिल जाता है।
कहें दीपकबापू काले दागों का भी
सुंदर चित्र वाला दाम मिल जाता है।
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सूट लाख बूट हजारों का पहने,
जनसेवकों के ठाटबाट का क्या कहने।
कहें दीपकबापू भलाई के दलाल
पालने के दर्द लोगों को हैं सहने।
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अब किनारे बैठकर 
सड़क पर गुजरते कारवा
गुजरते हुए देखने का
मजा लेने दो यारों
कभी हम भी ऐसे ही
भीड में शामिल होते थे
यादों की बहती धारा का
बहते देखें का
मजा लेने दो यारों
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