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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, June 26, 2014

बादशाह और फकीर-हिन्दी कविता(badshah aur fakir-hindi kavita)



राजमहलों में आनंद पाने की चाहत सभी पालते हैं,
खुले आसमान के नीचे जंग के मौके सभी टालते हैं।
बादशाहों की खुशफहमी  कि उनके पांव तले खजाना है,
फकीर की मस्ती है उन्हें किसी के पांव नहीं दबाना है
तख्त पर बैठे कई इंसान  हमेशा रहे बेचैन
उनका नाम कागज पर बादशाह की तरह चलता रहा,
कुछ नहीं मिला मेहनत करने पर भी वह भी खुश रहे
कभी की मस्ती कभी दौलतमंदों की हरकतों को हंसते सहा,
बुलंदियों पर पहुंचे जो दूसरों को गिराकर वह खुद भी गिरे,
सहुलियतों का घेरा लगाया मुश्किलों में भी वही घिरे,
कहें दीपक बापू जिंदा रहने के लिये साफ सांस जरूरी
शौहरत के दीवाने ज़माने में फैलाते सोच का जहर
उजाड़ते चमन पर अपनी जिंदगी की आस
गंदी हवाओं पर ही डालते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Thursday, June 12, 2014

सभी की खुशी के आसरे-हिन्दी कवितायें(sabhi ki khushi ke asre-hindi poem's)



पर्यावरण में शुद्धता के लिये वह उपाय पूछते हैं,
पेट्रोल का धुंआ उड़ाते हुए हरियाली के लिये जूझते हैं।
कहें दीपक बापू पेड़ काटकर खड़े कर दिये पत्थर के महल
अब लोग प्रकृति का आनंद अपने घर के  बाहर ढूंढते हैं।
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जहां बड़े बड़े छायादार पेड़ खड़े थे,
वहीं ऊंचे ऊंचे पहाड़ भी शान से अड़े थे,
वहीं अब लोहे और सीमेंट के ढांचे दिखते हैं,
कागजों में इस पर विकास की हम कहानी लिखते हैं।
कहें दीपक बापू तिजोरियां भर दी है लोगों ने सोने से
मगर सभी के दिल उदास फिर भी हैं
छूट गयी है हंसने की आदत
बदबूदार सासों के बीच फंसी जिंदगी
सभी की खुशी के आसरे दूसरों के दर्द पर टिकते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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Friday, June 6, 2014

खबरों की उठती गिरती लहरें-तीन हिन्दी क्षणिकायें(khabron ki uthte girti laharen-three short hindi poem)



जिस मशहूर आदमी के हाथ में कोई काम नहीं रह पाता है,
वही सर्वशक्तिमान के दर पर मत्था टेकने पहुंच जाता है।
कहें दीपक बापू पर्दे पर दिखने के  लिये बेताब है सभी
 कोई इंसान अपने चरित्र से भी बेपर्दा हो जाता है।
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पर्दे पर चेहरा दिखाने का मोह इंसानों को भटका देता है,
कोई चलता भद्दी चाल कोई चरित्र सरेराह लटका लेता है।
कहें दीपक बापू मूर्खतापूर्ण अदाओं से  बहलाने वाला आदमी
लोकप्रिय होने की तख्ती अपने नाम के साथ अटका देता है।
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खबरची किसी की लहर ऊपर उठाते किसी की गिराते हैं,
डूबने वाले से करते किनारा 
मगर खुद पार लगने वाले पर अपनी मेहरबानी दिखाते हैं।
कहें दीपक बापू पर्दे पर खबरें लहरों की तरह बहती हैं,
आ गयी खोपड़ी के किनारे उन पर ही हम नज़र टिकाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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