जब मेरे ब्लागों पर कुछ ऐसे लोगों के कमेंट आते हैं जिनसे मैं परिचित नहीं हूं तो तत्काल जाकर उनके ब्लाग देखता हूं। मुझे आश्चर्य तब होता है जब वैचारिक धरातल पर सब मेरे साथ ही खड़े दिखाई देते है। परिचितों में तो करीब-करीब सभी एक ही वैचारिक संघर्ष में व्यस्त हैं। मैने ब्लागरों में जो बातें देखीं हैं वह भी गौर करने लायक है-
1. सभी ब्लागर अपने धर्म में आस्थावान हैं पर उनका कर्मकांडों और अंधविश्वासों से बहुत कड़ा विरोध है। इस मामले में वह यह मानने को तैयार नहीं है कि दिखावे की भक्ति कर लोगों को स्वर्ग का रास्ता दिखाया जाये जो कभी बना ही नहीं।
2.अपने विचारों के साथ ईमानदारी के साथ चलने की उनमें दृढ़ता है और वह किसी प्रकार की चाटुकारिता में यकीन नहीं करते।
3.देश के हालातों से बहुत चिंतित हैं और ऐसी घटना जिसमें किसी महिला को अपमानित किया जाता है, गरीब को सताया जाता है और निर्दोष को मारा जाता है उससे वह विचलित होते है।
4.राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति अटूट निष्ठा है और जिसको प्रमाणित करने के लिये वह किसी भी हद तक कष्ट उठा सकते हैं।
5. वह वर्तमान व्यवस्था से असंतुष्ट हैं। प्रचार माध्यमों के प्रति उनके मन में अनेक संदेह है और वह इसे व्यक्त करते हैं।
लिखने की शैली और प्रस्तुतिकरण के तरीके में अंतर हो सकता है पर कमोवेश मूल विचार में एकरूपता है। अपने आलेखों और कविताओं पर उनके रवैये से एक बात लगती है कि कहीं न कहीं उनके मन में इस समाज को बदलते देखने की इच्छा है। वह जानते हैं कि उनके लिखे से समाज नहीं बदलेगा पर मैं कहता हूं कि आज अगर हम कोई विचार आज लिखकर या बोलकर व्यक्त करते हैं तो कल वह समाज के हिस्सा बन ही जाता है। हमारे सामने भी ऐसा हो सकता है और हमारे बाद भी। काम कहने वाले और करने वाले दोनों मिट जाते हैं पर जो उनके शब्द होते हैं वह आगे चलते जाते हैं।
अक्सर लोग कहते हैं कि लिखे से समाज नहीं बदलता पर शब्द चलते हैं और कोई उनको पढ़कर प्रभावित होता है तो उसके कर्म पर प्रभाव होता है। आज जो मैं लिख रहा हूं वह किसी के शब्दों की प्रेरणा ही हैं न! किसी ने मुझे अभिव्यक्ति का पता दिया था लिखकर। वह मुझे कहां से कहां ले आया। यह तो एक शब्द हैं बहुत सारे शब्द हैं जिनको लेकर मैं आगे बढ़ा। मेरे लिखे से समाज नहीं बदला पर मेरे में बदलाव तो आया न! मैं अगर यहां लिख रहा हूं तो कोई जगह जहां से हट रहा हूं। अपने मनोरंजन के लिये टीवी या अखबार से परे होना पड़ता है। कहीं जाकर फालतू समय नष्ट करने से अच्छा मुझे लिखना लगता है।
निष्कर्ष यह है कि हिंदी में ब्लाग के पाठक और लेखक आज नहीं तो कल बढ़ेंगे ही। मैने एक चार वर्ष से अधिक पुराना ब्लाग देखा था उसमें उसका लेखक निराशा में था और हिंदी में ब्लाग लेखन की प्रगति से नाखुश था। आज हम देखें तो उसके मुकाबले स्थिति बहुत ठीक है। दरअसल लोग ऊबे हुए हैं और वर्तमान में उनकी अभिव्यक्ति का अपना कोई अधिक सशक्त साधन नहीं हैं, जो हैं उनसे वह संतुष्ट नहीं है। एक बात और है कि जो भी संचार और प्रचार माध्यम है वह चल तो हमारे पैसे से ही रहे हैं कोई अपनी जेब से नहीं चला रहा। हम उनका अप्रत्यक्ष भुगतान करते हैं पर उसका पता नहीं लगता यहां पर प्रत्यक्ष भुगतान कर रहे हैं उसको लेकर हम परेशान होते हें क्योंकि वह दिखता है। मै छह सौ रुपये का इंटरनेट का भुगतान करता हूं यह मानकर कि यह डिस्क कनेक्शन है जिसका डबल भुगतान करना है। लिखना तो मेरे लिये एक साधन है जिससे मुझे जीवन में ऊर्जा मिलती है।
जब मेरा यह सोच है तो ऐसा सोचने वाले और भी होंगे। यह अंतर्जाल पर ब्लाग लिखने और पढ़ने का सिलसिला इसलिये भी चलता रहेगा क्योंकि लिखने वाले इसका भुगतान करेंगे और जो इनका चला रहे हैं वह इसे बंद नहंी करेंगे। अन्य प्रचार माध्यम जरूर विज्ञापन न मिलने पर संकट में आ सकते हैं। जिस तरह ब्लाग लोगों की अभिव्यक्ति का साधन बन रहा है उससे तो ऐसा लगता है कि लोग अन्य जगह से हटकर इधर आयेंगे और यह एक सशक्त माध्यम बनेगा। ऐसे में जो प्रबंधन कौशल में माहिर होंगे वह आय भी अर्जित करेंगे और कुछ लोग इसका उपभोक्ता की तरह इस्तेमाल कर इसे प्राणवायु देते रहेंगे। आखिर दूसरे संचार और प्रचार माध्यमों में भी तो ऐसा ही हो रहा है। कोई खर्च कर रहा है और कोई कमा रहा है। मोबाइल पर फालतू बातें कर खर्च करने वाले क्या कम हैं? ऐसे में लिखने वाले भी ऐसा ही करेंगे। मेरा मानना है कि आगे संचार और प्रचार माध्यमों को इससे चुनौती मिलने वाली है और इसके कितना समय लगेगा यह कहना कठिन है पर अधिक नहीं लगेगा ऐसा मेरा अनुमान है। एक दृष्टा की तरह ही मैं इस खेल को देख रहा हूं। अभी हाल ही में कृतिदेव का यूनिकोड में परिवर्तित टूल मिलने के बाद तो मैने हास्य कविता लिखना कम ही कर दिया क्योंकि वह अधिक लिखना मुश्किल होने से ही लिखता था। हालांकि मुझे लगता है कि उन हास्य कवितओं के पाठक बहुत हैं और मुझे फिर लिखना शुरू करना पड़ेगा।