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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, September 28, 2015

डर क्यों लगता है-हिन्दी कविता(Dar Kyon lagata hai-Hindi kavita)


किसी का आसरा टूटने का
डर क्यों लगता है
 जब दूसरा बन जाता है।

इंसानों से खौफ क्यों लगता
एक रूठता
दूसरा मन जाता है।

कहें दीपकबापू सिंहासन से
जब कभी नाता नहीं रहा
तब जमीन पर गिरने का
डर क्यों लगता है
जब एक पांव लड़खड़ाता
दूसरा तन जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Tuesday, September 22, 2015

हृदय का चिंत्तन-हिन्दी कविता(Hridya ka Chinttan)


संवेदनाओं के व्यापार में
हर विषय रुपये में
तय होता है।

हृदय का चिंत्तन
सुनकर हंसे न कोई
भय होता है।

दीपकबापू झांकते
हर इंसान की आंखों में
ढूंढती जो स्वार्थसिद्ध के रास्ते
ललचातीं मुफ्त के वास्ते
हिसाब किताब में ताकतीं
उनके सामने हर दृश्य
लय खोता है।

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Monday, September 14, 2015

गरीब के ख्वाब पर व्यापार-हिन्दी कविता(Garib ke khwab par vyapar-Hindi Poem)

भव्य हवेली की खिड़कियां
बाहर से अंदर झांकना कठिन
अंदर से भी बाहर झांकता कौन?

बाहर संवरा हुआ उद्यान
लगता स्वर्ग जैसा
सवाल यह अंदर हांफता कौन है।

कहें दीपक बापू गरीब के ख्वाब पर
व्यापार चलाने वाले
बस इतने दिलदार होते
कपड़े और रिश्ते
धूल के कण लगने पर ही
बदल देते
लौह दरवाजे के पीछे
हवा के झौंके से भी
सांस नहीं उखड़ती तो हांफता कौन है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Wednesday, September 9, 2015

इश्क दिल और खंजर-हिन्दी कविता(Ishq Dil aur khanzar-hindi poem)


क्या यह इश्क है
कभी आशिक कभी माशुका को
कातिल बना देता है।

कहीं लड़ाई में डूबा
कहीं पढ़ाई मेें ऊबा
नकारा साथी में जवान
 दिल लगा लेता है।

कहें दीपकबापू जिस्मानी रिश्तों पर
फिदा होने वालों के लिये
कोई ज्ञान काफी नहीं है
किसी गलती की माफी नहीं है
टूट गया तो खंजर को
दिल  खून से सना देता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, September 1, 2015

चिंत्तन का पता नहीं-हिन्दी कविता(chinttan ka pata nahin-hindi poem)

चिंत्तन का पता नहीं-हिन्दी कविता(chinttan ka pata nahin-hindi poem)
खाने में मिलावट
दान में दिखावट
शब्दों में बनावट
कैसे यकीन करे लोगों का
सांस लेते हैं
चेतना का पता नहीं।

कहें दीपक बापू जिंदगी की जंग में
वादे करने वाले
निभा नहीं सके
उम्मीद नहीं थी
वह काम कर गये
अपनी छवि पर लोग
कभी सोचते कि नहीं
चिंत्तन का पता नही
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अंधे हाथी पकड़कर
उसके अंगों के बारे में
दिमाग से सोचते तो हैं।
कहें दीपक बापू बिचारे हैं वह
जो उनके चिंत्तन से
निराशा भोगते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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