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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
Thursday, February 28, 2008
दूसरों के सवालों के जवाबों के की तलाश में लग जाओ-हिन्दी शायरी
जितना हो सके उनसे परे हो जाओ
सीखो दूसरों के सवालों का जवाब देना
क्योंकि वही रास्ता जाता है
अध्ययन और मनन की तरफ
अपना सवाल उलझता है अपने अन्दर
कभी बाहर नहीं निकल पाता
घुटता है आदमी उसमें
इसलिए दूसरों के सवालों के
जवाबों की तलाश में लग जाओ
हर कोई ढूंढ रहा है यहाँ अपने मुकाम
देखता है बाहर
सोचता है अन्दर
विचारों से शून्य हैं सब
बोलने के के लिए सबके पास है
शब्दों का विशाल समंदर
सवालों से भरी है सबकी झोली
कोई नहीं बोलता जवाबों की बोली
तुम जवाबों की तलाश में लग जाओ
तुम सवाल-दर-सवाल करते रहोगे
कोई नहीं देगा जवाब
सारा दर्द अकेले ही सहोगे
कोई नहीं आयेगा तुम्हें समझाने
अपने लोग भी हो जायेंगे अनजाने
जब करोगे अध्ययन और मनन
निकलोगे दूसरों के सवालों का जवाब
अपने लिए भी ढूंढ लोगे
अपने लिए सभी ढूंढ रहे हैं कुछ न कुछ
तुम दूसरों की तलाश में लग जाओ
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Tuesday, February 26, 2008
संत कबीर वाणी: गले में माला डालने से हरि नहीं मिलते
मैं-मैं बड़ी बलाइहै सकै तो निकसौ भाजि
कब लग राखु हे सखी, रुई लपेटी आगि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यह मैं-मैं बहुत बड़ी बला है। इससे निकलकर भाग सको तो भाग जाओ, अरी सखी रुई में आग को लपेटकर तू कब तक रख सकेगी।
'कबीर'माला मन की, और संसार भेष
वाला पहरयां हरि मिलै तो अरहट कई गलि देखि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सच्छी माला ही अचंचल मन की है बाकी तो संसारी भेष है। मालाधारियों का यदि माला पहनने से हरि मिलना होता तो रहटको देखो हरि से क्या उसकी भेंट हो गई। उसने तो इतने बड़ी माला गले में डाली।
Monday, February 25, 2008
संत कबीर वाणी:गुरु करें जानकर, पानी पिएँ छानकर
बिना विचारै गुरु करे, परे चौरासी खानि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं की पानी को सदैव छान कर पीना चाहिऐ तथा गुरू को अच्छी तरह जान कर ही अपना गुरु बनाना चाहिऐ . छान कर पानी पीने से शरीर को व्याधियां नहीं होती और गुरु से सदगति प्राप्त होती है. अगर किसी अयोग्य को गुरु बना लिया तो फिर चौरासी के चक्कर में पड़ना पडेगा।
गुरु गुरु में भेद है, गुरु गुरु में भाव
सोईं गुरु नित वंदिए, शब्द बतावे दाव
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु शब्द एक ही पर फिर भी गुरु कहलाने वाले लोगो के कर्मों के आधार पर उनमें अंतर होता है. ऐसे व्यक्ति को बुरु बनाना चाहिऐ जो शब्द के दाव बताने की अलावा उसके गूढ़ और भावनात्मक अर्थ बताता है।
Sunday, February 24, 2008
संत कबीर वाणी- हरि रस जैसा कोई रसायन नहीं
तिल इक घटमैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी रसायनों का सेवन कर लिया मैंने मगर हरि-रस जैसी कोई और रसायन नहीं पाई। एक तिल भी घट में शरीर में यह पहुंच जाए तो वह सारा ही कंचन में बदल जाता है।
'कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई
सिर सौंपे सोई पिये, नहीं तौ पीया न जाई
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कलाल की भट्ठी पर बहुत सारे आकर बैठ गए हैं, पर इस मदिरा को कोई एक ही पी सकेगा, जो अपना सिर कलाल को प्रसन्नता के साथ सौंप देगा।
Saturday, February 23, 2008
संत कबीर वाणी:सोने का मदिरा से भरा पात्र भी निंदनीय
ऊंचे कुल की जनमिया करनी ऊँच न होय
कनक कलश मद सों, भरा साधू निंदा सोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि केवल ऊंचे कुल में जन्म लेने से किसी के आचरण ऊंचे नहीं हो जाते। सोने का घडा यदि मदिरा से भरा है तो साधू पुरुषों द्वारा उसकी निंदा की जाती है।
कोयला भी हो ऊजला जरि बरि ह्नै जो सेव
कनक कलश मन सों, भरा साधू निंदा होय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं भली भांति आग में जलाकर कोयला भी सफ़ेद हो जाता है पर निबुद्धि मनुष्य कभी नहीं सुधर सकता जैसे ऊसर के खेत में बीज नहीं होते।
Thursday, February 21, 2008
मनुस्मृति: आसक्ति रहित लोग ही हो सकते हैं धर्मोपदेशक
२.वेदों में जहाँ दो कथनों में विरोध हो वहाँ विद्वान लोगों को बराबर महत्व देते हुए उचित निर्णय लेना चाहिए।
३.धर्म के चार लक्षण हैं-१.वेदों द्वारा प्रतिपादित २. स्मृतियों द्वारा अनुमोदित ३. महर्षियों द्वारा आचरित 4. जहाँ किसी विषय में एक से अधिक मत हों वहाँ उस धर्म को अपनाने वाले व्यक्ति की आत्मा को प्रिय। इन कसौटियों पर सिद्ध होने वाला ही प्रामाणिक धर्म है।
Wednesday, February 20, 2008
संत कबीर वाणी:हरि हैं हीरा और भक्त है जौहरी
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि हरि ही हीरा है और जौहरी है हरि का भक्त। हीरे को हाट-बाजार में बेच देने के लिए उसने दूकान लगा रखी है। वहीं और तभी उसे कोई उसे खरीद सकेगा।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अनमोल पदार्थ जो मिल गया उसे तो छोड़ दिया और कंकड़ हाथ में ले लिया। हंसों के साथ से बिछुड़ गया और बगुलों के साथ हो लिया।
Saturday, February 16, 2008
चाणक्य नीति:बदहजमी में अच्छा भोजन भी विष होता है
१.स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन जिस प्रकार बदहजमी के अवस्था में लाभ के स्थान पर हानि पहुंचाता है और विष का काम करता है। इस अवस्था में किया गया सुस्वादु भोजन व्यक्ति के लिए प्राणलेवा भी हो सकता है।
२.निरंतर अभ्यास न होने से शास्त्रों से प्राप्त ज्ञान भी मनुष्य के लिए घातक हो सकता है। वैसे तो वह विद्वान होता पर अभ्यास के अभाव में अपने ज्ञान का विश्लेषण नहीं करता इसलिए वह भ्रमित होता है और अवसर आने पर सही ढंग से काम न करने पर उसे उपहास का सामना करना पड़ता है और सम्मानित ज्ञानीव्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु के समान होता है।
३.वृद्ध व्यक्ति यदि किसी युवा कन्या से विवाह कर लेता है तो उसका जीवन मरण के समान हो जाता है। कहा जाता है कि पुरुषों के अपेक्षा स्त्रियों में काम की शक्ति आठ गुना अधिक होती है। हब वृद्ध पति से पत्नी को संतुष्टि नहीं होती वह गुप्त रूप से कहीं और मन लगाने की सोचती है। इसलिए वृद्ध पुरुष को किसी तरुणी से विवाह कर अपना जीवन नरकमय नहीं बनाना चाहिऐ।
४.प्रत्येक अच्छी बुरी वस्तु के लिए सीमा होती है और और उसका अतिक्रमण उसे दुर्गति का शिकार बना देता है.
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