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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, May 25, 2008

बेआबरू होने का लेकर लौटे गम-हिन्दी शायरी

अपनों में गैर
और गैरों में अजनबी हो जाना
कितना सताता है
जब आदमी अपने को अकेला पाता है

भरी दोपहर में
शरीर से बहता पसीना
चलते जा रहे पांव
चंद पलों के मन के सुख की खातिर
जिस घर के अंदर झांका
वहीं जंग का मैदान पाता है

मांगने पर थोड़ा प्यार
इतराने लगते हैं लोग
देते हैं नसीहतें तमाम
पर चंद प्यार के लफ्ज बोलकर
हमदर्दी जताने का ख्याल
किसी को नहीं आता है

ऊपर से बरसाता आग सूरज
नीचे जलती धरती
नंगे पांव चलता आदमी
ढूंढता है सभी जगह मन की शीतलता
पर भी नजर डाले
लोगों का मन छल से भरा
स्वयं को ही धोखा देता नजर आता है

कुछ पल प्यार की चाह
जलते पांव के लिये शीतलता की राह
मांग कर अपने आपको
शर्मिंदा करने से तो
जलती आग मे चलते रहना ही भाता है
भला आदमी भी कभी आदमी को
सुख के पल दे पाता है
..................................
उस महफिल में चंद पल सुकून से
बिताने की खातिर रखा था कदम
हमें मालुम नहीं था दिलजलों ने
अपने लिये उसे सजाया हैं
उनके मसले देखकर ख्याल आया कि
इससे तो घर ही अच्छे थे हम
पहले भी कम नहीं थे साथ हमारे
वहां से बेआबरू होने का लेकर लौटे गम
......................................

Saturday, May 10, 2008

इस तरह कवि ने पूरा नहाया-हास्य कविता

सुबह एक कवि नहाते हुए गुनगुनाया
‘ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए
गाना आये या ना, गाना चाहिए’

उधर से पत्नी बेलन लेकर दौड़ी आयी
करने लगी उसकी पिटाई
’कमबख्त! पंद्रह दिन बाद टैंकर
अपने घर के बाहर आया
मुश्किल से एक बाल्टी भरी
उसे भी तुमने गाने में बहाया
अभी करती हूं
इसी बची आधी बाल्टी में
तुम्हारे गानों की कापी डालकर उनका सफाया’

कवि ने पिटते हुए भी गाया
‘क्या खूब लगती हो
बहुत सुंदर लगती हो
कैसा रूप तुमने पाया’

पत्नी के बदल गये तेवर और
मुस्कराते हुए बोली
‘ठीक है इस बार माफ कर देती हूं
पर अगली बार ध्यान रखना
तुम्हारे गाने से मेरा मन भाया’

इस तरह कवि ने पूरा नहाया
...........................

Wednesday, May 7, 2008

एक पोस्ट साथियों के नाम

ब्लागस्पाट पर मेरे सात ब्लाग ऐसे हैं जो हिंदी फोरमों पर पंजीकृत है और इन पर तीन बार ऐसा अवसर आया है जब एक दिन में 99 तक व्यूज पहूंचे हैं आज यह ब्लाग है जो 100 की संख्या पार कर गया। पंजीकृत ब्लागों से आशय मेरा यह है कि जिनको मैंने स्वयं इन फोरमों पर ईमेल भेजकर कराये हैं। वैसे मेरे दो ब्लाग नारद और चिट्ठाजगत ने मुझसे पूछे बगैर पंजीकृत कर लिये बिना यह जाने कि मैंने उनको प्रयोग के लिये शुरू किया था और उनमें एक ब्लाग ने एक दिन में 183 व्यूज लेकर मुझे हिला दिया जबकि उसकी पोस्टें नगण्य हैं। मैने उसका जिक्र इसलिये नहीं किया क्योंकि मुझे लगा कि मेरे प्रयोग पर भी कोई प्रयोग कर रहा है-और मैं भी अभी प्रयोग जारी रखूंगा। आजकल हिंदी के एग्रीगेटरों के कर्णधार अधिक सक्रिय हो गये है, और किसी भी ब्लाग को खुला नहीं छोड़ते अपने यहां खींच ले जाते हैं। बहरहाल यह कोई शिकायतनामा नहीं लिख रहा।

आज ही मेरे वर्डप्रेस के एक ब्लाग ने बीस हजार की संख्या पार की और उस पर पोस्ट लिखी और स्टेट काउंटर खोलकर जब अपने इस ब्लाग की संख्या देखी तो सोच में पड़ गया। कल लिखी गयी पोस्ट ने अपेक्षा से अधिक पोस्ट जुटाये। यह पोस्ट मैंने आधी अपने विंडो पर और आधी ब्लागस्पाट पर लिखी। वही हुआ जिसकी संभावना थी। कुछ हिस्से मैने कुछ लिखे लोगों ने कुछ और समझे। मैंने देर गये रात यह पोस्ट डाली और मुझे लग रहा था कि अब भला कौन पढ़ेगा? मगर ऐसा लगता है कि कई ब्लाग लेखक तो ताक में बैठे रहते हैं कि कोई अच्छा या अलग हटकर विषय आये तो पढ़ें। सहमति या असहमति एक अलग विषय है पर एक बात तो सिद्ध होती है कि ब्लाग और ब्लाग लेखकों से अलग हटकर लिखे विषय भी यहां हिट पा सकते हैं। कुछ लोग केवल ब्लाग लेखकों से हिट लेने के लिये उनसे संबंधित विषय ही उठाते हैं और हिट लेने में सफल होते हैं और जो ब्लागर अन्य विषय लिखते हैं उनको वैसे हिट नहीं मिलते पर उसके लिये किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

कल की पोस्ट यौन शिक्षा और ब्रह्मचर्य पर थी, जिसमें कुछ हास्य तो कुछ चिंतन था. वैसे यौन शिक्षा और ब्रह्मचर्य जैसे विषयों पर मैंने अधिक अध्ययन किया नहीं किया है और यह जरूरी नहीं है कि मैं किताबों में लिखी हर बात को वैसे ही मान लूं। अपने चिंतन और मनन से मैं कोई नई परिभाषा या अर्थ भी वर्तमान संदर्भों में गढ़ भी सकता हूं। सरस्वती माता की कृपा और अपने प्राचीनतम ग्रंथों के अध्ययन और गुरूजनों की शिक्षा के साथ कुछ नवीनतम विचार और रचना के सृजन करने की प्रेरणा ने मुझे इतना सक्षम बनाया है कि अपने मौलिक विचार व्यक्त कर सकता हूं। मेरे निजी मित्र और साथी कभी मेरे विचारों से सहमत होते हैं और नहीं भी, पर एक बात सभी कहते हैं कि तुम्हारी बात में दम तो है। आशा है कि अपने ब्लाग लेखक साथियों की प्रेरणा से ऐसे ही मेरे ब्लाग बढ़ते रहेंगे।
दीपक भारतदीप

Tuesday, May 6, 2008

यौन शिक्षा चाहिए या ब्रह्मचर्य का ज्ञान-व्यंग्य

अगर कोई मार्ग में आंखें खोलकर चलता हो तो उसे अनेक बार कई पशु कामक्रीड़ा में लिप्त दिखाई देंगे। उनको कोई यौन शिक्षा नहीं देता। पक्षी भी यौन क्रीड़ायें करते हैं। कामक्रीड़ा हर जीव की दैहिक क्रिया का एक भाग है और यदि कहें कि यह जीवन का आधार है तो भी गलत नहीं होगा। फिर मनुष्य को यौन शिक्षा देने की बात क्यों कही जाती है?
देश में कई लोग इस बहस में लिप्त हैं कि बच्चों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए कि नहीं। जब जलचर, नभचर और थलचर समस्त जीव यौन क्रीड़ा में पारंगत हैं तो फिर मनुष्य में क्या कोई कमी है या उसकी बुद्धि पर विद्वानों का भरोसा नहीं रहा है-इस प्रकार की बहस देखकर मेरे मन में यह विचार आता है।

एक बात स्पष्ट है कि इस देश में अपनी प्राचीनतम समृद्ध ज्ञान की विरासत को त्याग दिया इसलिये अब आधुनिक पीढ़ी के लिये पाश्चात्य सभ्यता के नये ज्ञान को अपनाने में समय लग रहा है। शायद इस देश को कामक्रीड़ा के कुछ नये तरीका सीखने की आवश्यकता है। कहते हैं कि नया मुल्ला प्याज अधिक खाता है। पाश्चात्य संस्कृति और विचारधारा के पोषक विद्वानों की पीढ़ी अभी नयी है इसलिये वह ऐसे अनोखे सुझाव देती है जिस पर केवल व्यंग्य ही लिखा जा सकता है। यहां मैंने पीढ़ी शब्द इसलिये इस्तेमाल किया क्योंकि कुछ मर खप गये और अब उनके शिष्य पाश्चात्य सभ्यता में अभी नये नये रंगे हैं। जिस तरह आदमी पर नयेपन का नशा चढ़ता है उसी तरह पीढि़यों पर भी चढ़ता है। यह विद्वानों की नयी पीढ़ी अपने देश के प्राचीनतम ज्ञान को पढ़े बिना ही उसे बेकार मान लेती है।

भारत में गरीबी का कारण बढ़ती जनसंख्या को माना जाता है। जनसंख्या वृद्धि का कारण यहां के मौसम का गर्म होना भी कहा जाता है। अर्थशास्त्र के अनुसार यहां ग्रीष्म जलवायु होने के कारण लोग अधिक परिश्रम नहीं कर पाते और करते हैं तो थक जाते हैं और फिर गरीबी के कारण उनके पास मनोरंजन के साधन न होने और उस पर शरीर की अधिक गर्मी से उनके पास कामक्रीड़ा करने के अलावा कोई साधन नहीं है। भारत के लोगों को यौन शिक्षा देने का मतलब है कि किसी ज्ञानी को सिखाना। अगर आप कहीं लड़कों के झुंड में यह चर्चा शुरू करें तो सभी अपना ज्ञान प्रदर्शित करेंगे।

हमारे ऋषि मुनियों ने यहां ब्रहम्चर्य के प्रचार किया। अब उसका कोई गलत अर्थ ले या न समझे तो उसमें उनका क्या दोष? ब्रहम्चर्य शब्द सुनते ही यहां के लोग-जिसमें कथित ज्ञानी संत भी शामिल हैं-मानने लगते हैं कि किसी पुरुष द्वारा किसी स्त्री को पूरे जीवन में हाथ न लगाना। हां, यह ब्रह्मचर्य का चरम शिखर है पर केवल यही नहीं है। ब्रह्मचर्य एक औषधि है जो आप अपने अनुसार उपयोग कर सकते हैं। ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप अपने द्वारा तय अवधि में अपने अंदर काम के भाव को कतई स्थान न दें। यह स्वयं पर नियंत्रण करने के विधि है। अधिक गहराई से सुनना चाहें तो आपकी एक भी इंद्रिय इससे पीडित नहीं होना चाहिए तभी आप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर सकते हैं। पर यह ब्रह्मचर्य का व्रत आखिर रखना क्यों चाहिए? ब्रहम्चर्य का अर्थ यह कदापि नहीं है कि विवाह न करें पर अपनी इंद्रिय पर नियंत्रण रखें ताकि जीवन में अभ्युदय के लिए आपकी देह में पर्याप्त शक्ति बनी रहे।
कामक्रीड़ा में मनुष्य की समस्त इंद्रिय पूरी शक्ति के साथ काम करतीं हैं उसमें शरीर से जो रस निकलता है वह अमृत की तरह होता है। उसका अधिक क्षय देह और मन को कमजोर करता है और उसमे आत्मविश्वास की कमी आती है। कामक्रीड़ा कोई हमारी देह से पृथक नहीं है बल्कि उसके अंग ही इसमें काम आते हैं। मुख से हम भोजन और जल ग्रहण करते हैं, आंखें से दृष्य देखते हैं और कानों से सुनते हैं, नाक से सूंघते हैं और हाथ से स्पर्श करते है। यह हमारी देह में आने के द्वार हैं और फिर उसमें जाने के र्भी द्वार है जिनसे अंदर आयी वस्तु कचड़े के रूप में निकलती है। कोई भोजन करने, दृश्य देखने, कानों से सुनने और शरीर से कचड़ा निकालने की बात नहीं करता? आखिर क्यों। शरीर मे बनने वाला यह वीर्य रस बहुत अनमोल है और इसको क्षय से बचाने के लिये ही ब्रह्मचर्य का नियम बनाया गया। एक ऐसी अवधि जिसमें मनुष्य अपने इस कीमती रस को क्षय रोके-यही ब्रह्मचर्य है। जिस वीर्य रस को केवल कामक्रीड़ा के लिये समझा जाता है वह हमारे शरीर में रहकर आत्मविश्वास भी बढ़ाता है और कम होने पर आदमी कायर भी हो जाता है। जिस तरह भोजन और जल ग्रहण करने से शरीर में रक्त और जल का निर्माण होता है उसी तरह वीर्य का भी निर्माण होता है। अगर इसके बारे में बच्चों को शुरू में बताया जाये कि उनके शरीर में मौजूद यह रस कितने काम का है तो वह इसका महत्व समझेंगे। जो लोग अधिक कामक्रीड़ा में लिप्त रहते हैं उनके अंदर साहस और आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। खासतौर से नये युवक जिनको जीवन पथ पर अपनी पुरानी पीढ़ी से अधिक संघर्ष करना है उनके लिये इस वीर्यरस का बहुत महत्व है क्योंकि इसकी मौजूदगी आदमी में आत्मविश्वास और स्फूर्ति उत्पन्न करती है। हमारे समाज में बलात्कार बहुत बड़ा अपराध माना जाता है पर साथ ही यह भी बलात्कारी को कभी बहादुर नहीं माना जाता। अपना वीर्य निकलने के बाद पुरुष की इंद्रियां शिथिल हो जातीं हैं। जो युवावस्था में इसमें अधिक लिप्त होते हैं वह जीवन में विकास वैसा नहीं कर पाते जैसा कम लिप्त होने वाले कर पाते हे।

सच तो यह है कि समाज में जो यौन अपराध बढ़ रहे हैं उसका कारण यौन शिक्षा की कमी नहीं बल्कि माता पिता द्वारा अपने लड़कों की शादी में अधिक दहेज लेने की इच्छा से उनके विवाह में देरी करना है। उनको यौन शिक्षा देने की बजाय आधे बूढ़े हो चुके उन युवकों के माता पिता से यह पूछना चाहिए कि ‘तुम्हारा लड़का अपना वीर्य रस का इस्तेमाल कैसे करता है’। यह भी वास्वविकता है कि अगर ब्रह्मचर्य का भाव नहीं है तो युवकों की देह में इस रस की अधिकता उन्हें कुमार्ग पर जाने के लिये बाध्य करती है-अब आप वह कुमार्ग मत पूछ लेना, बहुत से हैं-और जब आप उनके माता पिता से यह सवाल करेेंगे तो वह शर्मिंदा होंगे पर यह इस समाज का सच है। मैंने वीर्य रस शब्द का उपयोग कर कोई गलत नहीं किया क्योंकि हमारे धर्मग्रंथों में इसका उल्लेख है यह अलग बात है कि लोग इस शब्द का उपयोग बातचीत में करने में सकुचाते हैं। इसके बावजूद यह वास्तविकता है कि यह वीर्यरस पुरुष के अंदर मौजूद रहते हुए उसे आत्मविश्वासी और बुद्धिमान बनाता है। इसकी कमी से व्यक्ति युवावस्था में भी मानसिक रूप से वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाते है। अभी इस विषय पर बहुत कुछ लिखना है। शेष किसी अगले अंक में

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