अगर कोई मार्ग में आंखें खोलकर चलता हो तो उसे अनेक बार कई पशु कामक्रीड़ा में लिप्त दिखाई देंगे। उनको कोई यौन शिक्षा नहीं देता। पक्षी भी यौन क्रीड़ायें करते हैं। कामक्रीड़ा हर जीव की दैहिक क्रिया का एक भाग है और यदि कहें कि यह जीवन का आधार है तो भी गलत नहीं होगा। फिर मनुष्य को यौन शिक्षा देने की बात क्यों कही जाती है?
देश में कई लोग इस बहस में लिप्त हैं कि बच्चों को यौन शिक्षा दी जानी चाहिए कि नहीं। जब जलचर, नभचर और थलचर समस्त जीव यौन क्रीड़ा में पारंगत हैं तो फिर मनुष्य में क्या कोई कमी है या उसकी बुद्धि पर विद्वानों का भरोसा नहीं रहा है-इस प्रकार की बहस देखकर मेरे मन में यह विचार आता है।
एक बात स्पष्ट है कि इस देश में अपनी प्राचीनतम समृद्ध ज्ञान की विरासत को त्याग दिया इसलिये अब आधुनिक पीढ़ी के लिये पाश्चात्य सभ्यता के नये ज्ञान को अपनाने में समय लग रहा है। शायद इस देश को कामक्रीड़ा के कुछ नये तरीका सीखने की आवश्यकता है। कहते हैं कि नया मुल्ला प्याज अधिक खाता है। पाश्चात्य संस्कृति और विचारधारा के पोषक विद्वानों की पीढ़ी अभी नयी है इसलिये वह ऐसे अनोखे सुझाव देती है जिस पर केवल व्यंग्य ही लिखा जा सकता है। यहां मैंने पीढ़ी शब्द इसलिये इस्तेमाल किया क्योंकि कुछ मर खप गये और अब उनके शिष्य पाश्चात्य सभ्यता में अभी नये नये रंगे हैं। जिस तरह आदमी पर नयेपन का नशा चढ़ता है उसी तरह पीढि़यों पर भी चढ़ता है। यह विद्वानों की नयी पीढ़ी अपने देश के प्राचीनतम ज्ञान को पढ़े बिना ही उसे बेकार मान लेती है।
भारत में गरीबी का कारण बढ़ती जनसंख्या को माना जाता है। जनसंख्या वृद्धि का कारण यहां के मौसम का गर्म होना भी कहा जाता है। अर्थशास्त्र के अनुसार यहां ग्रीष्म जलवायु होने के कारण लोग अधिक परिश्रम नहीं कर पाते और करते हैं तो थक जाते हैं और फिर गरीबी के कारण उनके पास मनोरंजन के साधन न होने और उस पर शरीर की अधिक गर्मी से उनके पास कामक्रीड़ा करने के अलावा कोई साधन नहीं है। भारत के लोगों को यौन शिक्षा देने का मतलब है कि किसी ज्ञानी को सिखाना। अगर आप कहीं लड़कों के झुंड में यह चर्चा शुरू करें तो सभी अपना ज्ञान प्रदर्शित करेंगे।
हमारे ऋषि मुनियों ने यहां ब्रहम्चर्य के प्रचार किया। अब उसका कोई गलत अर्थ ले या न समझे तो उसमें उनका क्या दोष? ब्रहम्चर्य शब्द सुनते ही यहां के लोग-जिसमें कथित ज्ञानी संत भी शामिल हैं-मानने लगते हैं कि किसी पुरुष द्वारा किसी स्त्री को पूरे जीवन में हाथ न लगाना। हां, यह ब्रह्मचर्य का चरम शिखर है पर केवल यही नहीं है। ब्रह्मचर्य एक औषधि है जो आप अपने अनुसार उपयोग कर सकते हैं। ब्रह्मचर्य का अर्थ है कि आप अपने द्वारा तय अवधि में अपने अंदर काम के भाव को कतई स्थान न दें। यह स्वयं पर नियंत्रण करने के विधि है। अधिक गहराई से सुनना चाहें तो आपकी एक भी इंद्रिय इससे पीडित नहीं होना चाहिए तभी आप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर सकते हैं। पर यह ब्रह्मचर्य का व्रत आखिर रखना क्यों चाहिए? ब्रहम्चर्य का अर्थ यह कदापि नहीं है कि विवाह न करें पर अपनी इंद्रिय पर नियंत्रण रखें ताकि जीवन में अभ्युदय के लिए आपकी देह में पर्याप्त शक्ति बनी रहे।
कामक्रीड़ा में मनुष्य की समस्त इंद्रिय पूरी शक्ति के साथ काम करतीं हैं उसमें शरीर से जो रस निकलता है वह अमृत की तरह होता है। उसका अधिक क्षय देह और मन को कमजोर करता है और उसमे आत्मविश्वास की कमी आती है। कामक्रीड़ा कोई हमारी देह से पृथक नहीं है बल्कि उसके अंग ही इसमें काम आते हैं। मुख से हम भोजन और जल ग्रहण करते हैं, आंखें से दृष्य देखते हैं और कानों से सुनते हैं, नाक से सूंघते हैं और हाथ से स्पर्श करते है। यह हमारी देह में आने के द्वार हैं और फिर उसमें जाने के र्भी द्वार है जिनसे अंदर आयी वस्तु कचड़े के रूप में निकलती है। कोई भोजन करने, दृश्य देखने, कानों से सुनने और शरीर से कचड़ा निकालने की बात नहीं करता? आखिर क्यों। शरीर मे बनने वाला यह वीर्य रस बहुत अनमोल है और इसको क्षय से बचाने के लिये ही ब्रह्मचर्य का नियम बनाया गया। एक ऐसी अवधि जिसमें मनुष्य अपने इस कीमती रस को क्षय रोके-यही ब्रह्मचर्य है। जिस वीर्य रस को केवल कामक्रीड़ा के लिये समझा जाता है वह हमारे शरीर में रहकर आत्मविश्वास भी बढ़ाता है और कम होने पर आदमी कायर भी हो जाता है। जिस तरह भोजन और जल ग्रहण करने से शरीर में रक्त और जल का निर्माण होता है उसी तरह वीर्य का भी निर्माण होता है। अगर इसके बारे में बच्चों को शुरू में बताया जाये कि उनके शरीर में मौजूद यह रस कितने काम का है तो वह इसका महत्व समझेंगे। जो लोग अधिक कामक्रीड़ा में लिप्त रहते हैं उनके अंदर साहस और आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। खासतौर से नये युवक जिनको जीवन पथ पर अपनी पुरानी पीढ़ी से अधिक संघर्ष करना है उनके लिये इस वीर्यरस का बहुत महत्व है क्योंकि इसकी मौजूदगी आदमी में आत्मविश्वास और स्फूर्ति उत्पन्न करती है। हमारे समाज में बलात्कार बहुत बड़ा अपराध माना जाता है पर साथ ही यह भी बलात्कारी को कभी बहादुर नहीं माना जाता। अपना वीर्य निकलने के बाद पुरुष की इंद्रियां शिथिल हो जातीं हैं। जो युवावस्था में इसमें अधिक लिप्त होते हैं वह जीवन में विकास वैसा नहीं कर पाते जैसा कम लिप्त होने वाले कर पाते हे।
सच तो यह है कि समाज में जो यौन अपराध बढ़ रहे हैं उसका कारण यौन शिक्षा की कमी नहीं बल्कि माता पिता द्वारा अपने लड़कों की शादी में अधिक दहेज लेने की इच्छा से उनके विवाह में देरी करना है। उनको यौन शिक्षा देने की बजाय आधे बूढ़े हो चुके उन युवकों के माता पिता से यह पूछना चाहिए कि ‘तुम्हारा लड़का अपना वीर्य रस का इस्तेमाल कैसे करता है’। यह भी वास्वविकता है कि अगर ब्रह्मचर्य का भाव नहीं है तो युवकों की देह में इस रस की अधिकता उन्हें कुमार्ग पर जाने के लिये बाध्य करती है-अब आप वह कुमार्ग मत पूछ लेना, बहुत से हैं-और जब आप उनके माता पिता से यह सवाल करेेंगे तो वह शर्मिंदा होंगे पर यह इस समाज का सच है। मैंने वीर्य रस शब्द का उपयोग कर कोई गलत नहीं किया क्योंकि हमारे धर्मग्रंथों में इसका उल्लेख है यह अलग बात है कि लोग इस शब्द का उपयोग बातचीत में करने में सकुचाते हैं। इसके बावजूद यह वास्तविकता है कि यह वीर्यरस पुरुष के अंदर मौजूद रहते हुए उसे आत्मविश्वासी और बुद्धिमान बनाता है। इसकी कमी से व्यक्ति युवावस्था में भी मानसिक रूप से वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाते है। अभी इस विषय पर बहुत कुछ लिखना है। शेष किसी अगले अंक में