समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, January 27, 2012

बसंत पंचमी पर विशेष हिन्दी लेख-पहला काम अपने शरीर में ऊर्जा संचय का करें (basant panchami par vishesh hindi lekh or special hindi article-apni urja ka sanchaya karen save -self energy or power))

       बसंत पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य नारायण के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। हालांकि विश्व में बदले हुए मौसम ने अनेक प्रकार के गणित बिगाड़ दिये हैं पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। एक बार सूर्य नारायण अगर उत्तरायण हुए तो सर्दी स्वतः अपनी उग्रता खो बैठती है। यह अलग बात है कि धीमे धीरे यह परिवर्ततन होता है। फिर अपने यहां तो होली तक सर्दी रहने की संभावना रहती है। पहले दीवाली के एक सप्ताह के अंदर स्वेटर पहनना शुरु करते थे तो होली के एक सप्ताह तक उनको ओढ़ने का क्रम चलता था। अब तो स्थिति यह है दीवाली के एक माह बाद तक मौसम गर्म रहता है और स्वेटर भी तब बाहर निकलता है जब कश्मीर में बर्फबारी की खबर आती है।
         हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है। ऐसे में दीपावली, होली, रक्षाबंधन, रामनवमी, दशहरा, मकरसक्रांति और बसंतपंचमी के दिन अगर आदमी की संवेदनाऐं सुप्तावस्था में भी हों तब ही वायु की सुगंध उसे नासिका के माध्यम से जाग्रत करती है। यह अलग बात है कि इससे क्षणिक सुख मिलता है जिसे अनुभव करना केवल चेतनाशील लोगों का काम है।
         हमारे देश में अब हालत बदल गये हैं। लोग आनंद लेने की जगह एंजायमेंट करना चाहते हैं जो स्वस्फूर्त नहीं बल्कि कोशिशों के बाद प्राप्त होता है। उसमें खर्च होता है और जिनके पास पैसा है वह उसके व्यय का आनंद लेना चाहते है। तय बाद है कि अंग्रेजी से आयातित यह शब्द लोगों का भाव भी अंग्रेजियत वाला भर देता है। ऐसे में बदलती हवाओं का स्पर्श भले ही उसकी देह के लिये सुखकर हो पर लोग अनुभूति कर नहीं पाते क्योंकि उनका दिमाग तो एंजॉजमेंट पाने में लगा है। याद रखने वाली बात यह है कि अमृत पीने की केवल वस्तु नहीं है बल्कि अनुभूति करने वाला विषय भी है। अगर श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित विज्ञान को समझें तो यह पता लगता है कि यज्ञ केवल द्रव्य मय नहीं बल्कि ज्ञानमय भी होता है। ज्ञानमय यज्ञ के अमृत की भौतिक उत्पति नहीं दिखती बल्कि उसकी अनुभूति करनाी पड़ती है यह तभी संभव है जब आप ऐसे अवसरों पर अपनी देह की सक्रियता से उसमें पैदा होने वाली ऊर्जा को अनुभव करें। यह महसूस करें कि बाह्य वतावररण में व्याप्त सुख आपके अंदर प्रविष्ट हो रहा है तभी वह अमृत बन सकता है वरना तो एक आम क्षणिक अनुभूति बनकर रह जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि आपकी संवदेनाओं की गहराई ही आपको मिलने वाले सुख की मात्रा तय करती है। यह बात योग साधकों से सीखी जा सकती है।
           जब हम संवेदनाओं की बात करें तो वह आजकल लोगों में कम ही दिखती हैं। लोग अपनी इंद्रियों से व्यक्त हो रहे हैं पर ऐसा लगता है कि उथले हुए हैं। वह किसी को सुख क्या देंगे जबकि खुद लेना नहीं जानते। अक्सर अनेक बुद्धिजीवी हादसों पर समाज के संवेदनहीन होने का रोना रोते हैं। इस तरह रोना सरल बात है। हम यह कहते हैं कि लोग दूसरों के साथ हादसे पर अब रोते नहीं है पर हमारा सवाल यह है कि लोग अपने साथ होने वाले हादसों पर भी भला कहां ढंग से रो पाते है। उससे भी बड़ी बात यह कि लोग अपने लिये हादसों को खुद निमंत्रण देते दिखाई देते है।
       यह निराशाजनक दृष्टिकोण नहीं है। योग और गीता साधकों के लिये आशा और निराशा से परे यह जीवन एक शोध का विषय है। इधर सर्दी में भी हमारा योग साधना का क्रम बराबर जारी रहा। सुबह कई बार ऐसा लगता है कि नींद से न उठें पर फिर लगता था कि अगर ऐसा नहीं किया तो फिर पूरे दिन का बंटाढार हो जायेगा। पूरे दिन की ऊर्जा का निर्माण करने के लिये यही समय हमारे पास होता है। इधर लोग हमारे बढ़ते पेट की तरफ इशारा करते हुए हंसते थे तो हमने सुबह उछलकूद वाला आसन किया। उसका प्रभाव यह हुआ है कि हमारे पेट को देखकर लोग यह नहीं कहते कि यह मोटा है। अभी हमें और भी वजन कम करना है। कम वजन से शरीर में तनाव कम होता है। योग साधना करने के बाद जब हम नहाधोकर गीता का अध्ययन करते हैं तो लगता है कि यही संसार एक बार हमारे लिये नवीन हो रहा है। सर्दियों में तेज आसन से देह में आने वाली गर्मी एक सुखद अहसास देती है। ऐसा लगता है कि जैसे हमने ठंड को हरा दिया है।
          यह अलग बात है कि कुछ समय बाद वह फिर अपना रंग दिखाती है पर क्रम के टूटने के कारण इतनी भयावह नहीं लगती। बहरहाल हमारी बसंत पंचमी तो एक बार फिर दो घंटे के शारीरिक अभ्यास के बाद ही प्रारंभ होगीं पर एक बात है कि बसंत की वायु हमारे देह को स्पर्श कर जो आंनद देगी उसका बयान शब्दों में व्यक्त कठिन होगा। अगर हम करें भी तो इसे समझेगा कौन? असंवदेनशील समाज में किसी ऐसे आदमी को ढूंढना कठिन होता है जो सुख को समझ सके। हालाकि यह कहना कि पूरा समाज ऐसा है गलत होगा। उद्यानों में प्रातः नियमित रूप से धूमने वालों को देखें तो ऐसा लगता है कि कुछ लोग ऐसे हैं जिनके इस तरह का प्रयास एक ऐसी क्रिया है जिसके लिये वह अधिक सोचते नहीं है। बाबा रामदेव की वजह से योग साधना का प्रचार बढ़ा है पार्कों में लोगों के झुड जब अभ्यास करते दिखते हैं तो एक सुखद अनुभूति होती है उनको सुबह पार्क जाना है तो बस जाना है। उनका क्रम नही टूटता और यही उनकी शक्ति का कारण भी बनता है। इस संसार में हम चाहे लाख प्रपंच कर लें पर हम तभी तक उनमें टिके रह सकते हैं जब तक हमारी शारीरिक शक्ति साथ देती है। इसलिये यह जरूरी है कि पहला काम अपने अंदर ऊर्जा संचय का करें बाकी तो सब चलता रहता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Thursday, January 12, 2012

विकास का पथ-हिन्दी शायरी (vikas ka path-hindi shayri,kavita or poem)

उजाड़ के खेत खलिहान
वह पत्थरों के महल बनाएंगे,
जहां खड़े हैं पेड़ पौधे
वहाँ सभ्य इंसान बसाएँगे।
कहें दीपक बापू
जिन पथों पर आती थी
अश्वों के पदचाप की आवाज,
वहाँ विचर रहे रंगो से सजे लोहे के बाज़,
अंधेरे में चिराग की रोशनी
दिखाती रही राह बरसों तक,
अब उगलती हैं बाज़ की आँखें
भ्रमित करने वाली आग
अपने नज़र पर भी होता शक,
इस छोर से उस छोर तक
वह विकास का पथ ऐसे ही बनाएंगे,
जरूरत पड़ी तो
जिंदा इंसानों को लाशों की तरह सजाएँगे।
------------------
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Sunday, January 8, 2012

जिंदगी के रास्ते पर चलना संभाल कर-हिन्दी शायरी (zindagi ke raste par chalana sanbhal kar)

ज़िंदगी के रास्ते
कहीं समतल हैं
कहीं टूटे हैं पुल 
कहीं कीचड़ है
कभी धीमा चलना है
कभी तेज चलना है।
हम मंज़िल तय कर सकते हैं
हालतें तय करती हैं
हमारी सवारी का साधन
जहां हमने तय किया
जज़्बातों के सहारे चलने का
वहाँ हादसों का खतरा है,
सच यह है
इंसान के हाथ में कुछ नहीं है
सिवाय खुद को काबू रखने के,
बेकाबू लोगों को गड्ढों में गिरते हमने देखा है।
--------------
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Sunday, January 1, 2012

नया वर्ष आया यानि कैलेंडर बदल गया-हिन्दी लेख (new year meens change of calengder naya varsha ya sal ka ana yani celader ka badlana-hindi lekh aur kavita or article or poem)

              1 जनवरी 2012 सुबह से ही बरसात की बूंदों की आवाज घंटी की तरह सुनाई दे रही थी। ऐसा भी लगा कि शायद ओले गिर रहे हों। ईसवी संवत् के नये वर्ष का नया दिन इस तरह ही शंखनाद करता हुआ बता रहा था कि वह आ गया है। 31 दिसम्बर 2011 रात्रि ग्यारह बजे हम सोये तो प्रातः निद्रा खुलते ही हमारा यह अनुभव था। बिस्तर से उठने का मन इसलिये नहीं हुआ कि सर्दी लग रही थी बल्कि हम न तो उस समय योग साधना कर सकते थे न ही उद्यान में जा सकते थे जो कि हमारे लिये प्रतिदिन शुरुआत की पहली प्रक्रिया है।
             घर की बिजली भी जा चुकी थी और इस तरह धुप अंधेरे में घड़ी में समय देखना भी मुश्किल था। अलबत्ता साढ़े चार बजे का टाईम लगाकर हम जिस ट्रांजिस्टर को रखते हैं वह बज रहा था। इसका मतलब यह था कि समय उससे आगे निकल चुका है। आखिर थोड़ी उहापोह के बाद हमनें बिस्तर का त्याग किया और कमरे में ही आसन लगाकर योग साधना प्रारंभ की। वहीं कुछ सूक्ष्म व्यायाम के साथ आसन किये जिसमें देह विस्तार रूप न ले। सूक्ष्म व्यायाम, जांधशिरासन तथा सर्वांगासन करने के पश्चात् पदमासन पर बैठकर प्राणायाम किया। प्राणायाम प्रारंभ करते हुए मनस्थिति बदलने लगी। प्रतिदिन आने वाली नवीनता ने धीरे धीरे अंदर पदार्पण किया। तब नव वर्ष जैसा आभास नहंी रहा। फिर ध्यान तथा नहान के बाद अन्य नियमित अध्यात्मिक प्रक्रिया संपन्न की। अब हमारा नवीन दिन आरंभ हो चुका था मगर वर्षा ने बता दिया कि अभी हमें घर से बाहर निकलने नहीं देगी।
         कुछ देर बरसात रुकी तो हम आश्रम चले गये। वहां से कई दूसरी जगह जाने का विचार मौसम की वजह से नहीं बन सका।
       अपने वाहन पर बैठकर हम बाहर निकले तो अपने ही वाहन पर जा रहे एक मित्र ने हाथ उठाकर अभिवादन में कहा-‘‘हैप्पी न्यू ईयर’।
        हमने औपचारिकता निभाई-‘‘आपको भी बधाई’।
वह बोले-‘‘आज तो जमकर बरसात हो रही है।’’
    हमने कहा-‘‘हां, दक्षिण में थाने नाम का तूफान आया है उसका परिणाम यहां दिखाई दे रहा है। मौसम विशेषज्ञों ने बता दिया था कि इस तरह की बरसात होगी।’
       वह बोले-‘‘पर दक्षिण तो बहुत दूर है।’’
      हमने कहा‘‘हवाओं को कौन हवाई जहाज या रेल में सवार होना होता है। न ही वह किलोमीटर की माप जानती हैं जो डर जायें। वह तो चलती हैं तो चलती हैं। बादलों को भी कुछ नहंी दिखता। जहां मौका मिला पानी गिरा दिया। वैसे अपने इलाके में पानी की जरूरत है। एक तरह से कहें तो यह नये वर्ष के पहले ही दिन अमृत बरस रहा है।’’
       भले ही सर्दी बढ़ती है पर मावठ की बरसात हमारे उत्तर भारत में अमृत मानी जाी है। यही बरसात न केवल फसलों के लिये सहायक है बल्कि गर्मी तक के लिये भूजल स्तर को भी बनाये रखती है। इस दृष्टि से ईसवी संवत 2012 का नया दिन एक शुभ संदेश लेकर आया है। इतना जरूर है कि ऐसे में घर के बाहर मौज मस्ती करने में बाधा आती है। फिर हमारे देश की सड़कें इस तरह की हैं कि सामान्य स्थिति में भी वहां रात्रि को चलना खतरनाक होता है ऐसे में बरसात का पानी वहां संकट बन जाता है तब दुर्घटनाओं का भय अधिक दिखता है। फिलहाल भारत के दक्षिण के साथ ही जापान में यही दिन खतरनाक परिणामों वाला रहा है। जिस थाने ने उत्तर भारत में अमृतमयी बरसात की है वही दक्षिण में भयंकर उत्पात मचाता रहा है। जापान में भूकंप के तेज झटके अनुभव किये गये हैं। वैसे उत्तर भारत में भी सभी के लिये आरामदायक स्थिति केवल स्वस्थ लोगों के लिये हो सकती है अगर वह संयम के साथ रहें तो, मगर अनेक प्रकार रोगियों के लिये यह ठंड अत्यंत दर्दनाक हो जाती है। कुल मिलाकर हम नया वर्ष या नया दिन पर खुशियां जो मनाते हैं वह केवल मन को बहलाने के लिये है जीवन और प्रकृत्ति का जो रिश्ता है उसका इससे कोई संबंध नहीं है। इस अवसर पर प्रस्तुत है कल लिखी गयी एक कविता-
दिन बीतता है
देखते देखते सप्ताह भी
चला जाता है
महीने निकलते हुए
वर्ष भी बीत जाता है,
नया दिन
नया सप्ताह
नया माह
और नया वर्ष
क्या ताजगी दे सकते हैं
बिना हृदय की अनुभूतियों के
शायद नहीं!
रौशनी में देखने ख्वाब का शौक
सुंदर जिस्म छूने की चाहत
शराब में जीभ को नहलाते हुए
सुख पाने की कोशिश
खोखला बना देती है इंसानी दिमाग को
मौज में थककर चूर होते लोग
क्या सच में दिल बहला पाते हैं
शायद नहीं!
-------------
             वर्ष का बदलना तो कैलेंडर बदलने से ही हो जाता है। हमने कैलेंडर नया खरीदा आज सुबह लगा दिया ताकि अवसर पड़ने पर तारीखें देख सकें। शादी विवाह के निमंत्रण मिलने पर वहां जाने के कार्यक्रम बनाने या किसी त्यौहार पर उसे बाहर मनायें या घर में ही, यह फैसला करने में कैलेंडर बड़ा सहायक होता है। उसमें दूध का हिसाब लिखने का भी काम किया जा सकता है। मन चाहे तो अपना भविष्य फल भी देखा जा सकता है। पुराने साल का जो समय था वह निकल गया। अब नया इसलिये लाये कि शायद उसमें हमारे लिये नया मामला बन जाये। हां मन को बहलाने के लिये यह ख्याल बुरा नहीं है। यह मन ही तो है जो मनुष्य को चलाता है। मनुष्य की बुद्धि को यह भ्रम होता है कि वह उसे चला रही है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर