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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
आशिक ने माशुका से कहा
‘कल गुरूपूर्णिमा है
इसलिये तुमसे नहीं मिल पाऊंगा,
जिसकी कृपा से हुआ तुमसे मिलन
उस गुरु से मिलने
उनके गुप्त अड्डे पर जाऊंगा,
क्योंकि उन पर एक प्रेम प्रसंग को लेकर
कसा है कानून का शिकंजा
पड़ सकता है कभी भी उन पर धाराओं का पंजा
इसलिये इधर उधर फिर रहे हैं,
फिर भी चारों तरफ से घिर रहे हैं,
उन्होंने ही मुझे तुमसे प्रेम करने का रास्ता बताया,
इसलिये तुम्हें बड़ी मुश्किल से पटाया,
वही प्रेम पत्र लिखवाते थे,
बोलने का अंदाज भी सिखाते थे,
जितनी भी लिखी तुम्हें मैंने शायरियां,
अपने असफल प्रेम में उनसे ही भरी थी
मेरे गुरूजी ने अपनी डायरियां,
इसलिये कल मेरी इश्क से छुट्टी होगी।’
सुनकर भड़की माशुका
और लगभग तलाक की भाषा में बोली
‘अच्छा हुआ जो गुरुजी की महिमा का बखान,
धन्य है जो पूर्णिमा आई
हुआ मुझे सच का भान,
कमबख्त, इश्क गुरु से अच्छा किसी
अध्यात्मिक गुरु से लिया होता ज्ञान,
ताकि समय और असमय का होता भान,
मैं तो तुम्हें समझी थी भक्त,
तुम तो निकले एकदम आसक्त,
मंदिर में आकर तुमने मुझे अपने
धार्मिक होने का अहसास दिलाया,
मगर वह छल था, अब यह दिखाया,
कविता की बजाय शायरियां लिखते थे,
बड़े विद्वान दिखते थे,
अपनी और गुरुजी की असलियत बता दी,
इश्क की फर्जी वल्दियत जता दी,
इसलिये अब कभी मेरे सामने मत आना
कल से तुम्हारे इश्क से मेरी कुट्टी,
मैं तुमसे और तुम मुझसे पाओ छुट्टी।।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
किस प्रदेश का नाम लिखें,
किस शहर को याद रखें,
जहां बरसों तक विकास का रथ सड़क और पुलों पर चला,
बिजली के खंभों पर चढ़ा,
और सुंदर इमारतों को अपना निवास बनाया।
मगर कमबख्त हर बरस की तरह
इस बार भी बरसात की पहली फुहार ने ही
विकास के चेहरे से
भ्रष्टाचार का नकाब हटाया।
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बरसात की पहली फुहार ने
मन में ढेर सारी उमंग जगायी।
मगर पल भर का सुख ही रहा
क्योंकि नाला आ गया सड़क पर
नाली घर में घुस गयी
बिजली ने कर ली अंधेरे से सगाई।
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शहर में हर जगह कागज़ पर सड़क बन गयी,
सभी गांवों मे तालाब खुद गया,
और हर कालोनी में हराभरा पार्क खिलाखिलाता
नज़र आया।
शायद आम आदमी आंखों से देख नहीं पाते
वरना तो हर अखबार की
छपी रिपोर्टों में सुखद समाचारों का
झुंड हर रोज आया।
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कागज़ की ताकत
आम आदमी की जुबान से बढ़ी है,
वह चाहे कुछ भी बोले
सच है वही कारनामा
जिसकी कलम से लिखापढ़ी है।
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3.अनंत शब्दयोग
कहीं बनते हैं
कहीं उजड़ जाते हैं आशियाने,
छत के नीचे खड़े हैं
इस भरोसे कि सदा सिर पर रहेगी
मगर कहीं कुदरत उजाड़ देती है
कहीं बुलडोजर चला आता है
तो कहीं इंसानी बुत चले आते लतियाने।
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भरोसा कर हमेशा धोखा खाया,
मगर मजबूर हुए, तब फिर जताया,
धोखा करने से डरे हैं हम हमेशा,
हैरानी है तब भी किसी का भरोसा न पाया।
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शराब गम भुलाती है,
मगर यह बात केवल लुभाती है,
सच यह है कि
इंसान ज़ाम दर ज़ाम पीते हुए
हो जाता है गुलाम
मर जाती है रूह उसकी
जो नशे में कभी उसे नहीं बुलाती है।
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3.अनंत शब्दयोग
अपने देश के लोग
हर नई चीज को दहेज के
लेन देने में जोड़ जाते हैं,
हर पश्चिमी फैशन की धारा को
अपने संस्कारों के समंदर की तरफ मोड़ जाते हैं।
बुद्धिमान कर रहे धर्म और संस्कारों को लेकर
लंबी चौड़ी बहसें
दुनियां में अपनी संस्कृति का
झंडा फहराने की व्यर्थ होड़ लगाते हैं।
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टूट जाता है मन
रोज झूठ सुनते सुनते
हर कदम पर फरेब और बेईमानी की बोली
लोग बोलने लग जाते हैं,
कसम उठती है
पर खामोशी एक हथियार की तरह
अपने पास रख ली है हमने
हल्का कर लेते हैं अपना दिमाग
जब पाते है लोगों को हल्का
उनके शब्दों के सच को तोलने लग जाते हैं।
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चमचे ने कहा
‘विकास पुरुष जी
आप भी कमाल का कर रहे विकास,
इधर हो रहा है विनाश,
कारों के उत्पादन को
विकास का प्रतीक बता रहे हैं,
उत्पादन में ही हित जता रहे हैं,
मगर घटिया सड़कें बनवा देते हैं,
जिसके प्राण दो मिनट की बरसात के छींटे ही ले लेते हैं,
हो जाता है जिससे रास्ता जाम,
जहां सुबह पहुंचना हो
हो जाती है वहां शाम,
कारों के नये नये माडल बनवाने से अच्छा है
पहले सड़कें बनवायें
सच में विकास पुरुष की छबि बनायें।’
सुनकर भड़के विकास पुरुष
‘अरे ओए थकेले चमचे
अब तेरा दिमाग फिर गया है,
इसलिये जनता के कल्याण की
गंदी सोच में घिर गया है,
अगर हम तेरी तरह सोचते,
तो चमचे होकर किसी के अपने ही बाल नौंचते,
कारों के नये नये कारखानों से
हमें चंदा मिलता है,
पेट्रोल की बिक्री से भी
कमीशन का धंधा खिलता है,
सड़कों पर जाम लगने से भी हमें फायदा है,
क्योंकि अपने लाभ लेने की कायदा है,
जाम से पेट्रोल ज्यादा बिकता है
धूल और झटकों से कार होती जल्दी पुरानी
नया माडल जल्दी बाजार में दिखता है,
फिर दुनियां के प्रचार माध्यमों में
जाम में फंसी रंग बिरंगी कारों के झुंड
के फोटो छपने से
अपने विकास का मंजर प्रचार पाता है
पहियों तले दबी फटेहाल सड़कों का
हाल कौन देख पाता है,
सड़के चमचमाती बन जायेंगी,
तो हर साल कमीशन भी नहीं दिलवायेंगी,
अभी तो विकास के नाम पर
वहां से भी अच्छा पैसा आता है,
विकास तो वही श्रेष्ठ होता हमारे लिये
जो कभी लक्ष्य नहीं पाता है,
यह बात तुम्हें कितनी बार समझायें।’’
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3.अनंत शब्दयोग
मेरी नाकामी पर ताने न मारो
क्योंकि तुम्हारी कामयाबी
किसी को क्या खुशी देगी
जब तुम्हें ही न दे सकी
क्योंकि उसके नीचे कई लोगों की
सिसकी दफन है
तुम्हारे घर बिछे कालीन के नीचे
मरे हुए इंसानों का चुराया कफन है।
बोझिल होकर मुस्कराते हो,
हवा के एक झौंके से डर जाते हो,
मुझसे हमदर्दी जताने वाले, तुम नहीं जानते
ढेर सारे दर्द के साथ जीते हुए
खुलकर हंसना भी एक बहुत बड़ा फन है।
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