समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, March 31, 2008

वह ज्ञानी-लघुकथा

वह ज्ञानी थे और अभी प्रवचन कार्यक्रम कर लौटे थे। मेरे से उनकी मुलाकात उनके यजमान के घर पर जो कि मेरे मित्र थे के घर पर हुई जहां मै किसी काम से गया था।

मित्र ने मुझसे कहा कि ‘‘तुम प्रवचन कार्यक्रम में क्यों नहीं आये? आना चाहिए भई। यह ठीक है कि तुम आजकल योग साधना कर रहे हो पर कभी-कभी सत्संग भी सुना करो।’’

वह प्रवचनकर्ता कोई साधु संत नहीं थे बल्कि गृहस्थ थे पर ऐसे ही उनका नाम हो गया था तो लोग समय पास करने के लिये उनका बुला लेते थे। मैं मित्र की बात सुनकर हंस पड़ा तो वह सज्जन बोले-‘‘हां इस दुनियां में सुबह बहुत तेजी से सांस लेने वाले भी कई योगी न रहे। कबीरदास जी यही कहते हैं इसलिये भगवान भजन में मन लगाना चाहिये। योग साधना से क्या होता है।’’

मैं थोड़ा जोर से हंसा तो वह बोले-‘‘आप इसे मजाक मत समझिये मैं आपको सही ज्ञान की बात बता रहा हूं।’’

इसी बीच मेरे मित्र की पत्नी भी एक थाली में फल और मिठाई रखकर आ गयी तो वह उसे देखते हुए बोले-‘‘मिठाई तो अभी नहीं खाउंगा। एक सेव अभी खा लेता हूं बाकी थैले में रख दो घर ले जाता हूं।

मैं भी मुस्कराते हुए उन्हें देख रहा था। मेरा मित्र होम्योपैथी का डाक्टर था और अधिक प्रसिद्ध न होने के बावजूद उसका काम ठीक चल रहा था और अपने मोहल्ले की तरफ के वह इस कार्यक्रम का मुख्य कर्ताधर्ता था।

वह सेव खाते हुए उससे बोले-‘भाई, हमें कम से कम महीने भर की दवाई दे दो ताकि हमारी और पत्नी की डायबिटीज कंट्रोल में रहे।’’

मेरा मित्र दवाई लेने चला गया तो उसकी पत्नी भी वहंा से चली गयी। तब वह मुझसे बोले-योगसाधना से कोई सिद्ध नही होता। यह कहने की बात है। इसलिये आप भगवान में मन लगाया करो। उनकी भक्ति से सब ठीक हो जाता है।’’


मैने उनसे कहा-‘यह मेरा मित्र डाक्टर है और पोच वर्ष पूर्व उच्च रक्तचाप की शिकायत के कारण इलाज कराने आया था । तब इसने मुझे खूब डांटा था। इसके पास अब कभी मरीज का तरह दवाई नहीं लेने न आना पड़े इसलिये ही योगसाधना करता हूं। यकीन करिये केवल उसके बाद दो वर्ष पहले बुखार की शिकायत लेकर आया था यह अलग बात है कि यह उस दिन घर पर नहीं था तो इसके पोर्च में पलंग पर सो गया और मेरा बुखार चला गया। इससे बचने के लिये ही मैं योगसाधना, ध्यान और मंत्रजाप करता हूं।’’

तब तक मेरा मित्र कमरे के अंदर आ गया था और मैने उसके सामने ही कहा-‘‘एक डाक्टर के रूप में मुझे इसकी शक्ल पसंद नहीं है।’’

उनका मूंह उतरा हूआ था। उन्होंने अपना मिठाई और फल को थैला उठाया और वहंा से चले गये। जाते वक्त उन्होंने मेरे मित्र और उसकी पत्नी से बात की पर मेरी तरफ देखा भी नहीं। उनके जाने के बाद मैने अपने मित्र से पूछा-‘‘कौन सज्जन थे ये?’’

वह बोला-‘‘कोई अधिक प्रसिद्ध तो नहीं है मेरे मरीज है और मोहल्ले के लोगों ने कहा कि सत्संग कराना है। सो बुलवा लिया। वैसे बहुत ज्ञानी हैं।’’
तुम्हें कैसे लगे?’

मित्र और मेरे बीच अनेक बार अध्यात्म पर जोरदार बहसें सुन चुकी उसकी पत्नी को मेरे से इस उत्तर की आशा नहीं थी। इसलिये उसने हंसते हुए पूछा-‘‘क्या सोच बोल रहे हैं या हमारा मन रख रहे हैं।’’

वह गलत नहीं थी पर मैं मित्र द्वारा दिये गये महत्वपूर्ण कागज के लिफाफे को लेकर वहां से बाहर निकल गया। पीछे से मेरा मित्र मुझसे कह रहा था-सच बोलना। क्या तुंम हमारा दिल रखने के लिये मान रहे हो कि वह वास्तव में ज्ञानी हैं।’’

मैने पलटकर उसे मुस्कराते हुए देख और वहां से बिना उत्तर दिये चला आया।

Tuesday, March 18, 2008

सामान भी आदमी की तरह पुराने हो जाते हैं-हिन्दी शायरी

अपनी रौशनी बेचने के लिए
पहले अँधेरे वह करवाते हैं
सौदागरों को जमाने से क्या मतलब
उन्हें तो अपनी चीज के दाम सुहाते हैं
आग लगाने का सामान हो या बुझाने का
दोनों ही वह बाजार में सजाते हैं

चैन और अमन कभी बाजार में नहीं मिलते
सुख और प्यार कहीं सजता नहीं
पर सौदागर इनको भी सजाते हैं
डुगडुगी बजाकर सन्देश सुनाने वाले
उनके प्रचार में झूठ को ही सच बताते हैं
ए, बाजारमें सौदा लेने वालों
पैसे के साथ अपनी अक्ल भी साथ ले जाना
चीजें खरीदना पर दिल न लगाना
सामान भी आदमी की तरह पुराने हो जाते हैं
-------------------------------------

Monday, March 17, 2008

यादों से तोड़ लो दोस्ती-हिन्दी शायरी

यादों से तोड़ लो दोस्ती
भूलने की जहमत क्यों उठाते हो
समय के साथ चलते जाओ
जो छोड़ गए साथ उनको क्यों बुलाते हो
अपने मतलब के लिए लोग साथ आते
और फिर छोड़ जाते
किस-किसका हिसाब रखें
कब तक बिछड़ने का गम पालें
और अपने दर्द को चखें
यादों से समय नहीं कटता
भूलने की कोशिश करना कठिन लगता
इसलिए अपनी जिन्दगी की
राह पर नजर रखते चलते जाओ
---------------------------------------

Friday, March 14, 2008

आदमी व्यस्त नजर आता है-साहित्यक कविता

एक बच्चे के पैदा होने पर
घर में खुशी का माहौल छा जाता है
भागते हैं घर के सदस्य इधर-उधर
जैसी कोई आसमान से उतरा हो
ढूढे जाते हैं कई काम जश्ने मनाने के लिए
आदमी व्यस्त नजर आता है

एक देह से निकल गयी आत्मा
शव पडा हुआ है
इन्तजार है किसी का, आ जाये तो
ले जाएं और कर दें आग के सुपुर्द
तमाम तरह के तामझाम
रोने की चारों तरह आवाजें
कई दिन तक गम मनाना
दिल में न हो पर शोक जताना
आदमी व्यस्त नजर आता है

निभा रहे हैं परंपराएं
अपने अस्तित्व का अहसास कराएं
चलता है आदमी ठहरा हैं मन
बंद हैं जमाने के बंदिशों में
लगता है आदमी काम कर रहा है
पर सच यह है कि वह भाग रहा है
अपने आपसे बहुत दूर
जिंदा रहने के बहाने तलाशता
आदमी व्यस्त नजर आता है
--------------------------

Monday, March 10, 2008

संत कबीर वाणी-मीठी वाणी से सब प्रसन्न होते हैं

कागा काको धन हरै कोयल काको देत
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनी करि लेत

              संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि कौवा किसका धन चोरी करता है और कोयल किसको क्या देती है, जबकि वह अपनी मीठी वाणी से सभी लोगों का मन हर लेती है।
            आज के सन्दर्भ में संपादकीय व्याख्या- इस संसार में कई लोग ऐसे हैं जो हमेशा कलुषित वाणी बोलते हैं और लोग उनसे बहुत नाराज रहते हैं जबकि कुछ लोग अत्यंत मधुर वाणी बोलते हैं जिससे सभी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भगवान् ने सबको वाणी दी है पर उसका इस्तेमाल हर कोई अपने ज्ञान और विवेक के अनुसार करता है। कौवा जब आवाज करता है तो कई लोग विचलित होते है और उनके मन में गुस्सा भर जाता है जबकि वह किसी से कुछ माँगता नहीं है और कोयल भी किसी को कुछ देती नहीं पर उसकी मधुर और कर्ण प्रिय वाणी मन मोह लेती है। इसलिए जितना हो सके मधुर बोलना चाहिए। इसके लिए थोडा ध्यान देने की जरूरत है और एक बार अभ्यास हो जाये तो फिर स्वत: मधुर बोल फ़ुट पड़ते हैं।
          किसी भी वाक्य को रूखे और कटु स्वर में बोलना सहज लगता है पर उसीको मीठा बोलने के लिए थोडा विचार करना पड़ता है इसलिए आलस्य वश उससे बचना चाहते हैं और इससे उनकी वाणी कटु हो जाती है। जैसे हमें अपने किसी मित्र से पेन मांगनी है और हम उसे सीधे कहें-''तुम्हारे पास पेन होगा, ज़रा देना तो।''
        इसी वाक्य को हम थोडा प्रेम से कहें -''यार, तुम्हारे पास एक पेन हो तो मुझे देना।''
आप देखें इसका प्रभाव क्या होता है। पहले वाक्य में मित्र पेन तो देगा पर उसके दिमाग में गुस्सा होगा या वह बहुत निकटस्थ हुआ तो उसके ह्रदय में कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी । अगर आप दूसरा वाक्य बोलेंगे तो उसके मन में खुशी का भाव उत्पन्न होगा-भले वह आपसे कभी कहे नहीं। इसलिए सामान्य व्यव्हार में आप दूसरों को प्रसन्न कर सकते हैं।

Sunday, March 9, 2008

मनुस्मृति:अपने नौकर से वफादारी निभाएं

आर्तस्तु कुर्यात्स्वस्थ: सन्यथाभाषितमादित:।
स: दीर्घस्यापि कालस्य तल्लभेतैव वेतनम।।


मनु स्मृति के इस श्लोक के अनुसार जो नौकर स्वस्थ अवस्था में ईमानदारी व निष्ठा से स्वामी के आदेश का पालन करता है वह रोगादि के कारण यदि लंबे समय तक अनुपस्थित रहे तो भी उसे वेतन प्रदान करना चाहिए।

आज के संदर्भ में व्याख्या- आज हम अक्सर ऐसी घटनाएँ देखते हैं जिसमें नौकर द्वारा मालिक के प्रति तमाम तरह के अपराध किये जाते हैं। दरअसल आज के भौतिक युग में सब जगह अविश्वास का माहौल है और ऐसे में किसी का विश्वास जीतना है तो उसकी सहायता कर ही यह संभव है। जो लोग धनी हैं उन्हें अपने नौकरों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि विपति में वह उसकी सहायता करेंगे। कोई भी मालिक जब अपने नौकर को कोई काम कहता है तो वह उसे ईमानदारी से करता है तो उसकी प्रशंसा करना चाहिए। जब कई लोग बेईमानी से काम करते हैं उनको भी वेतन मिलता है तो और ईमानदार को भी वही तो न्याय कहाँ रह जाता है।

जो धनिक लोग चाहते हैं कि उनके नौकर ईमानदार रहें उन्हें उनके लिए नियत वेतन के साथ उसकी ईमानदारी के लिए एक राशि अपने मन में रख लेना चाहिए जो उसे बीमार पड़ने, बच्चों की शिक्षा और बेटी के विवाह आदि के समय उपहार के रूप में देनी चाहिए। अगर वह कभी स्वयं बीमार पड़ जाता है तो उसका वेतन तो देना चाहिए बल्कि उसका इलाज भी कराना चाहिए। उसे विश्वास दिलाना चाहिऐ कि वह अगर नौकर के रूप में वफादारी निभाएगा तो हम मालिक की तरह भी निभाएंगे। याद रखना श्रम खरीदा जा सकता है पर ईमानदारी नहीं।

Thursday, March 6, 2008

विदुर नीति: संयम के अलावा शांति का कोई रास्ता नहीं

  1. विद्या, तप, इन्द्रियों पर संयम और लोभ के त्याग के अलावा मनुष्य के पास शांति का कोई मार्ग नहीं है ।
  2. बुद्धि से मनुष्य अपने भय को दूर करता है, तपस्या से श्रेष्ठता और उच्च स्थान प्राप्त करता है। गुरु की ह्रदय से सेवा और नित्य योग साधना करते हुए तन और मन में शांति पाता है।
  3. जिसे मोक्ष की इच्छा होती है वह मनुष्य पुण्य का भी आश्रय भीं नहीं लेते। वह वेद पढ़कर भी उसके पुण्य का आश्रय नहीं लेते और निष्काम और निर्लिप्त भाव से इस लोक में विचरण करते हुए सारे काम कर आनंद लेते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
  4. जो परस्पर भेदभाव करते हैं वे कभी धर्म का आचरण नहीं करते। सुख भी नहीं पाते। उन्हें कभी इस संसार में गौरव प्राप्त नहीं होता और कभी शांत नहीं रह पाते।
  5. जैसे गाय में दूध, विद्वान में तप और युवा स्त्रियं में चंचलता का भाव होना स्वाभाविक है , वैसे ही अपनी जाति के लोगों से भय होना स्वाभाविक है।

Sunday, March 2, 2008

फटे हुए मामले पर कुछ नहीं लिखा-हास्य व्यंग्य

चेले को हमें एक निबंध लिखने को दिया और कहा-''कम से कम आधा घंटा तंग मत करना। हम अंतर्जाल पर लिख रहे हैं। बहुत दिन हुए कोई हिट होने वाला मसाला नहीं बना पाए। ''

उसके बाद हम कुर्सी पर आलथी-पालथी मारकर टाईप करने लगे। तो चेला बोला-''बढिया, गुरूजी। वाह मजा आ गया।''

हमने चौंक कर कहा-''क्या बात हैं अभी तो हमने तुम्हें ब्लोग लिखना और कमेन्ट देना सिखाया ही नहीं और तू देखते-देखते सीख गया। देख हमारे पास पढ़ने का तुझे कितना फायदा हो गया। अब तू अपने घर से डबल फीस ले आया कर। यह ब्लोग का विषय मुफ्त में नहीं सीखने दूंगा।''

चेला बोला-''गुरूजी, में ब्लोग की बात नही कर रहा हूँ। आप जिस तरह करवटें बदलकर लिख रहे हैं ऐसे अंग्रेज लेखक करते हैं। मेरे पापा बता रहे थे एक अंग्रेज लेखक ३२ प्रकार की कुर्सियों पर ६४ प्रकार की बैठक आकर लिखते थे। अब आप भी भी जिस तरह करवट बदलकर लिख रहे हैं उससे तो लगता है आप भी देश के नंबर वन हिन्दी ब्लोगर बन जायेंगे। ''

हमें गुस्सा आ गया-''तो तू हमारे जले पर नमक छिड़क रहा है जरूर गुरु माता ने तुझे हमारी फजीहत के बारे में बता दिया है। सुन पहली बात तो यह है कि वह लोग हमारे हलके ब्लोग को उड़ाकर ले गए और पांच रेटिंग रख दी। भारी ब्लोग तो वह लोग उठा ही नहीं पाए। उसके बाद जो हमने हास्य कवितायेँ बरसाईं वह भी बेमिसाल थीं और जमकर हिट हुईं थीं। तेरी गुरु माता तो बस हमारा मजाक बनातीं हैं। दूसरा यह अंग्रेज लेखकों की बात तो मेरे सामने किया ही मत कर। हम भारत के लोग जमीन पर जमीन के और देखते हुए लिखते हैं और इसलिए आज भी हमारा पुराना लिखा दुनिया में सम्मान पाता है। तीसरा यह है कि हम फटे हुए मामले पर लिख रहे हैं और इसलिए सुखासन में बैठकर लिख रहे हैं ताकि कहीं 'फटे में टांग न फंस जाये'।

चेला पहले तो देखने लगा फिर आश्चर्य चकित होते हुए बोला-''इस तरह फटे मामले पर लिखेंगे तो टांग नहीं फंसेगी?''

हमने कहा-''कैसे फंसेगी? कम अक्ल कहीं के! देख नहीं रहा आलथी-पालथी मारकर लिख रहे हैं।''

फिर बोला-''गुरु जी, पर मामला फटा कैसे है?''
हमने कहा-''हमें खुद नहीं मालुम? बस फटा हुआ है। लोग एक दूसरे पर बरस रहे हैं। उनको मिल रहे हैं जोरदार हिट बाकी तरस रहे हैं। ऐसा लगता है कि फटा हुआ मामला ही पढा जा रहा है। लोगों को फुरसत ही नहीं है कुछ और पढ़ने से।''
चेले ने पूछा-''गुरु जी, फिर आप क्यों झमेले में पढ़ रहे हैं। वैसे वह लोग लिख क्या रहे हैं।''
हमने कहा-''यही समझ में नहीं आ रहा है। हमने कल खूब प्रयास किया पर समझ में नहीं आया। कंप्यूटर के सामने उल्लुओं की तरह बैठे रहे।''

चेले ने पूछा-''फिर आप क्या लिख रहे हैं?''
हमने कहाँ-''हम भी लिख रहे हैं पर क्या हमको नहीं मालुम। अगर कुछ पढ़कर समझ में आता समझने वाली बात लिखते। अब हम भी लिख रहे हैं और किसी के समझ में आएगा इसमें हमें भी शक है। बात समझ में आये तो समझ वाली बात लिखें।''
उधर से गुरु माता की आवाज सुनकर किचन में चाय लेने चला गया। वहाँ उसकी गुरुमाता ने पूछा--''तेरे गुरूजी तुझे पढा रहे हैं कि कंप्यूटर से चिपके हुए हैं।''
चेले ने कहा--''गुरु जी फटे मामले पर कुछ आलथी-पालथी मारकर लिख रहे हैं।''
गुरुमाता ने पूछा-''क्यों? आलथी-पालथी मारकर क्यों?
चेले ने कहा-''इसलिए के फटे में टांग न फस जाये।''
गुरुमाता वहीं से जोर से चिल्लाकर बोली-''गुरु जी से कहो, दूसरों के मामले में टांग मत फंसाओ।

चेला चाय के दो कप लेकर आया और बोला-''गुरु जी, आखिर आप लिख क्या ले रहे हो। मुझसे गुरुमाता ने कहा है कि पूछ कर आओ।''

हमने कहा-'' बोल दे। कुछ नहीं लिख रहे। तुझे वहाँ सब कहने की क्या जरूरत थी? जाकर कह दे गुरूजी फटे मामले पर कुछ नहीं लिख रहे हैं।''

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर