खबर यह थी कि
बत्तीस रुपये खर्च करने वाले लोग
गरीब नहीं माने जायेंगे,
किसी तरह की मदद नहीं पायेंगे।
तब तय किया भिखारियों की यूनियन ने
अब दानदाताओं से पांच दस रुपया मांगने की बजाय
पांच सौ और हजार रुपयें का नोट
मांगने के लिये हाथ बढ़ायेंगे,
खाना तो मिल जाता है कहीं भी
मगर दवा दारु के लिये
अब हमारा जिम्मा हमारे ही कटोरे पर है
उनको समझायेंगे।
बत्तीस रुपये खर्च करने वाले लोग
गरीब नहीं माने जायेंगे,
किसी तरह की मदद नहीं पायेंगे।
तब तय किया भिखारियों की यूनियन ने
अब दानदाताओं से पांच दस रुपया मांगने की बजाय
पांच सौ और हजार रुपयें का नोट
मांगने के लिये हाथ बढ़ायेंगे,
खाना तो मिल जाता है कहीं भी
मगर दवा दारु के लिये
अब हमारा जिम्मा हमारे ही कटोरे पर है
उनको समझायेंगे।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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