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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, September 24, 2013

आतंकवाद और आम लोग-हिन्दी कविता(atankwad aur aam admi-hindi kavita or poem)



कहीं होटल और कहीं मॉल जल रहे हैं,
आतंकवाद के दृश्य रुपहले पर्दे पर चल रहे हैं,
हर हाथ में  कैमरा, कुछ के हाथ बंदूक भी हैं,
गोलियां चलाने वाले भी प्रचार पर पल रहे हैं।
कहें दीपक बापू कातिलों में ढूंढते हैं  वह खूबसूरती
जिनके रुपहले  पर्दे पर  दर्दनाक समाचार चल रहे हैं।
आतंकवाद बन गया है सबसे बड़ा पेशा दुनियां में
कातिलों के लिये सफेदपोश भी कई बार रंग बदल रहे है।
छोटे हादसों से बड़ी जंग की तरफ बढ़ते कदम
बेबस आंखों से देखते आम लोग हाथ मल रहे हैं।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Sunday, September 22, 2013

कातिल ही फरिश्ते बने-हिन्दी व्यंग्य कविता (Qatil bane farishey-hindi satire poem)




जंग के लिये जो अपने  घर में हथियार बनाते हैं,
बारूद का सामान बाज़ार में  लोगों को थमाते हैं।
दुनियां में उठाये हैं वही शांति का झंडा अपने हाथ
खून खराबा कहीं भी हो, आंसु बहाने चले आते हैं।
कहें दीपक बापू, सबसे ज्यादा कत्ल जिनके नाम
इंसानी हकों के समूह गीत वही दुनियां में गाते हैं।
पराये पसीने से भरे हैं जिन्होंने अपने सोने के भंडार
गरीबों के भले का नारे वही जोर से सुनाते हैं।
अपनी सोच किसको कब कहां और  कैसे सुनायें
चालाक सौदागरों के जाल में लोग खुद ही फंसे जाते हैं।
खरीद लिये हैं उन्होंने बड़े और छोटे रुपहले पर्दे
इसलिये कातिल ही फरिश्ते बनकर सामने आते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

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Saturday, September 14, 2013

आस्तीन के सांप-हिन्दी व्यंग्य कविता(asteen ke saanp-hindi vyangya kavita)

आस्तीनों में कभी सांप पलते नहीं देखे हैं,
शायद इंसानों की बही में दर्ज
अपनी कारनामों के ऐसे ही लेखे हैं,
जिनके लिये भले आदमी ने की दुआ
शिखर पर चढ़ने के लिये लिये
उसके कंधे पर पांव रखकर बढ़ गये,
उनके नाम के स्तंभ जमीन पर गढ़ गये,
इतना होता तो ठीक था
दुआ करने वालों ने कुछ पाया नहीं,
सिवाय वादों के कुछ उनके हिस्से में आया नहीं।
कहें दीपक बापू
क्यों परेशान हो
खजूर के पेड़ों से
खडे़ किये तुमने
क्षमा करो और भूल जाओ
बड़ा होना लिखा रहता है  उनकी किस्मत में
बांटने का बल आया नहीं,
इसलिये उनके  हिस्से में कभी
फल होता नहीं
साथ निभाती छाया नहीं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

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Sunday, September 8, 2013

एक दिन की महफिल-हिन्दी दिवस पर हास्य व्यंग्य कविता (ek din ki mahafil-hindi diwas par hasya vyangya kavita




हिन्दी दिवस हर बार
यूं ही मनाया जायेगा,
राष्ट्रभाषा का महत्व
अंग्रेजी में बोलेंगे बड़े लोग
कहीं हिंग्लिश में
नेशनल लैंग्वेज का इर्म्पोटेंस
मुस्कराते समझाया जायेगा।
कहें दीपक बापू
पता ही नहीं लगता कि
लोग तुतला कर बोल रहे हैं
या झुंझला कर भाषा का भाव तोल रहे हैं,
हिन्दी लिखने वालों को
बोलना भी सिखाया जायेगा,
हमें तसल्ली है
अंग्रेजी में रोज सजती है महफिलें
14 सितम्बर को हिन्दी के नाम पर
चाय, नाश्ता और शराब का
दौर भी एक दिन चल जायेगा।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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