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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, December 30, 2007

क्या लिखूं ''ब्लोगश्री कि ब्लोगरश्री''

दरवाजे पर दस्तक हुई तो ब्लोगर की पत्नी ने खोला सामने वह शख्स खडा था जिसके बारे में उसे शक था कि वह भी कोई ब्लोगर है-उस समय उसके गले में फूलों की माला शरीर पर शाल और हाथ में नारियल और कागज था। इससे पहले कुछ कहे वह बोल पडा-''नमस्ते भाभीजी!
''आप कहीं ब्लोगर तो नहीं है? आप पहले भी कई बार आए हैं पर अपना परिचय नहीं दिया-'' उस भद्र महिला में कहा।

"कैसी बात करती हैं?मैं तो ब्लोगरश्री हूँ अभी तो यह सम्मान लेकर आया हूँ-''ऐसा कहकर वह सीधा उस कमरे में पहुंच गया जहाँ पहला ब्लोगर बैठा था। उसे अन्दर आते देख वह बोला-"क्या बात है यह दूल्हा बनकर कहाँ से चले आये। ''
दूसरे ब्लोगर ने कहाँ-''आपको बधाई हो। मेरा सम्मान हुआ है।''
पहले ब्लोगर ने कहा-''सम्मान तुम्हारा हुआ है, बधाई मुझे दे रहे हो?''
दूसरा-''तुम तो मुझे दोगे नहीं क्योंकि मुझसे जलते हो.''
पहले ब्लोगर उससे कुछ कहता उसकी पत्नी बोल पडी-बधाई हो भाईसाहब, चलो आपका सम्मान तो हुआ। जरूर आप अच्छा लिखते होंगे। इनकी तरह फ्लॉप तो नहीं है।'
दूसरा ब्लोगर-''भाभीजी, आप खुश हैं तो आज चाय का एक कप पिला दीजिये।''
वह बोली-'आप आराम से बैठिये, मैं चाय के साथ बिस्कुट भी ले आती हूँ।''
पहला ब्लोगर बोला-"चाय तक तो ठीक है पर बिस्कुट बाद में ले आना पहले देख तो लूं इसे सम्मान कैसा मिला है?''
पत्नी ने कहा-'चाहे कैसा भी है मिला तो है। आपके नाम तो कुछ भी नहीं है वैसे भी घर मेहमान का सम्मान करना चाहिए ऐसा कहा जाता है।''
वह चली गयी तो दूसरा बोला-''यार, तुम में थोडा भी शिष्टाचार नहीं है, मुझे सम्मान मिला है तो तुम थोडी भी इज्जत भी नहीं कर सकते।

पहला-''यार, जितनी करना चाहिऐ उससे अधिक ही करता हूँ, पहले यह बताओं यह सम्मान का क्या चक्कर है? तुमने अभी तक लिखा क्या है?''

दूसरा-''जिन्होंने दिया है उनको क्या पता?मोहल्ले के लोगों में यह बात फ़ैल चुकी है कि मैं इंटरनेट पर लिखता हूँ। इस वर्ष से उन्होने अपने कार्यक्रम में किसी को सम्मानित करने का विचार बनाया था। मैंने कुछ लोगों को समझाया कि देखो अपने यहाँ भी कई प्रतिभाशाली लोग हैं उनको सम्मानित करना शुरू करो इससे हमारी इज्जत पूरे शहर में बढेगी और अखबारों में खबर पढ़कर अपने नाम भी लोगों की जुबान पर आ जायेंगे।''

पहला ब्लोगर-'यह माला, शाल और नारियल कहाँ से आये इसका खर्चा किसने दिया? और यह हाथ में कौनसा कागज पकड रखा है?''

दूसरा ब्लोगर-''हमारे पास एक मंदिर है उसके बाहर जो आदमी माला बेचता है उससे ऐसे ही ले आया। यह नारियल बहुत दिन से घर में उसी मंदिर में चढाने के लिए रखा था पर भूल गए थे। यह शाल सेल से मेरी पत्नी ले आयी थी पर पहन नहीं पायी, और यह कागज़ नहीं है, उपाधि है, इसे मैंने खुद अपने कंप्यूटर पर टाईप किया है अब इस पर भाभीजी के दस्तक कराने हैं। वहाँ मुझे इस लायक कोई नहीं लगा जिससे इस पर दस्तक कराये जाएं। ''
पहला ब्लोगर हैरानी से उसकी तरह देख रहा था। इतने में वह भद्र महिला उसके लिए बिस्कुट ले आयी तो वह बोला-''भाभीजी, आप मेरे इस सम्मान-पत्र पर दस्तक कर दें तो ऐसा लगेगा कि मैं वाकई सम्मानित हुआ। आपने इतनी बार मुझे चाय पिलाई है सोचा इस बहाने आपका कर्जा भी उतार दूं। ''

वह खुश हो गयी और बोली-''लाईये, मैं दस्तक कर देती हूँ, हाँ पर इनको पढ़वा दीजिये तब तक मैं चाय बनाकर लाती हूँ।''
वह दस्तक कर चली गयी तो पहला ब्लोगर कागज़ अपने हाथ में लेते हुए बोला-''मुझसे क्यों दस्तक नहीं कराये?

दूसरा बोला-''क्या पगला गए हो? एक ब्लोगर से दस्तक करवाकर अपनी भद्द पिट्वानी है। आखिर ब्लोगरश्री सम्मान है?''
पहले ब्लोगर ने पढा और तत्काल दूसरे ब्लोगर के सामने रखी बिस्कुट के प्लेट हटाते हुए बोला-''रुको।
दूसरे ब्लोगर ने हैरान होते हुए पूछा-''क्या हुआ?''
पहले ब्लोगर ने कहा-''इसमें एक जगह लिखा है ब्लोगश्री और दूसरी जगह लिखा है ब्लोगरश्री। पहले जाकर तय कर आओ कि दोनों में कौनसा सही है? फिर यहाँ चाय पीने का सम्मान प्राप्त करो।'
दूसरा ब्लोगर बोला-''अरे यार, यह मैंने ही टाईप किया है। गलती हो गयी।''
पहला ब्लोगर--''जाओ पहले ठीक कर आओ। दूसरा कागज़ ले आओ।
दूसरा ब्लोगर-अरे क्या बात करते हो? ब्लोग पर तुम कितनी गलतिया करते हो कभी कहता हूँ।'
पहला-"तुम मेरा लिखा पढ़ते हो?''
दूसरा-''नहीं पर देखता तो हूँ।'
पहले ब्लोगर की पत्नी चाय ले आयी और बोली-''हाँ, इनको पढ़वा लिया?''
दूसरा ब्लोगर-''हाँ भाभीजी इनको कैसे नहीं पढ़वाता। इनकी प्रेरणा से ही यह सम्मान मिला है।''
पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ बोलता उसकी पत्नी ने पूछा-''आप लिखते क्या हैं?''
दूसरा ब्लोगर चाय का कप प्लेट हाथ में लेकर बोला--''बस यूं ही! कभी आप पढ़ लीजिये आपके पति भी तो ब्लोगर हैं।''
वह बोली-''पर आप तो ब्लोगरश्री हैं।''
पहला ब्लोगर बोला-''ब्लोगरश्री कि ब्लोगश्री।''
दूसरे ब्लोगर ने उसकी बात को सुनकर भी अनसुना किया और चाय जल्दी-जल्दी प्लेट में डालकर उदरस्थ कर उठ खडा हुआ और बोला-''बस अब मैं चलता हूँ। और हाँ इस ब्लोगर मीट पर रिपोर्ट जरूर लिखना।''
पहले ब्लोगर ने पूछा-''क्या लिखूं ब्लोगरश्री या ब्लोगश्री?''
दूसरा चला गया और पत्नी दरवाजा बंद कर आयी और बोली-''आप कुछ जरूर लिखना।''
पहले ब्लोगर ने पूछा-''तुमने दस्तक तो कर लिया अब यह भी बता तो क्या लिखूं..........अच्छा छोडो।

जब वह लिखने बैठा तो सोच रहा था कि मैंने तो उससे पूछा ही नहीं कि इस पर कविता लिखनी है या नहीं चलो इस बार भी हास्य आलेख लिख लेता हूँ

Saturday, December 29, 2007

साधू और शैतान ने ब्लोग बनाया

साधू ने अंतर्जाल पर धर्म प्रचार के लिए
चेलों की प्रार्थना पर एक ब्लोग बनाया
और ''सत्य दर्शन" का शीर्षक लगाया
खबर लगी शैतान को तो
उसे भी ब्लोग बनाने का ख्याल आया
उसने उस पर 'सैक्स दर्शन' नाम लगाया
साधू के ब्लोग पर
कभी-कभी कभार कोई कमेंट टपकता
वरना फ्लॉप श्रेणी में जमा रहता
उधर शैतान का ब्लोग हिट होता गया
एक के बाद एक 'वंस मोर' जैसी आवाज में
कमेन्ट बटोरता गया
आखिर उसने साधू के ब्लोग पर
एक कमेन्ट लगाया और लिखा
''काहे तुम लिखते हो
हमें तो फ्लॉप दिखते हो
आ जाओ
ऐसा ब्लोग बनाओ
जैसा मैंने बनाया
वैसे भी हूँ तभी तुम्हारी पहचान है
मेरे बिना कौन साधू को जान पाया''

साधू ने भी लगाई कमेन्ट और लिखा
''तुम्हारी सफलता से कोई दुख नहीं है
मैं तुम्हारी तरह ब्लोग नहीं बना सकता
क्योंकि मैंने तो धर्म के लिए
काम करने का ठाना है
लोग जब ऊब जाते हैं
तब मेरे ब्लोग पर भी आते हैं
जब छोड़ जाती तुम्हारी माया
तब कुछ अच्छा पढें इसीलिए
चेलों के कहने पर मैंने यह ब्लोग बनाया"
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नोट-यह काल्पनिक हास्य-व्यंग्य रचना है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं है
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पूर्व में प्रकाशित एक रचना अब पुन:प्रसारित

साधू, शैतान और इंटरनेट
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शैतान ने दी साधू के आश्रम पर दस्तक
और कहा
'महाराज क्या ध्यान लगाते हो
भगवान के दिए शरीर को क्यों सुखाते हो
लो लाया हूँ टीवी मजे से देखो
कभी गाने तो कभी नृत्य देखो
इस दुनिया को भगवान् ने बनाया
चलाता तो मैं हूँ
इस सच से भला मुहँ क्यों छुपाते हो'

साधू ने नही सुना
शैतान चला गया
पर कभी फ्रिज तो कभी एसी ले आया
साधू ने कभी उस पर अपना मन नहीं ललचाया
एक दिन शैतान लाया कंप्यूटर
और बोला
'महाराज यह तो काम की चीज है
इसे ही रख लो
अपने ध्यान और योग का काम
इसमें ही दर्ज कर लो
लोगों के बहुत काम आयेगा
आपको कुछ देने की मेरी
इच्छा भी पूर्ण होगी
आपका परोपकार का भी
लक्ष्य पूरा हो जायेगा
मेरा विचार सत्य है
इसमें नहीं मेरी कोई माया'

साधू ने इनकार करते हुए कहा
'मैं तुझे जानता हूँ
कल तू इन्टरनेट कनेक्शन ले आयेगा
और छद्म नाम की किसी सुन्दरी से
चैट करने को उकसायेगा
मैं जानता हूँ तेरी माया'

शैतान एकदम उनके पाँव में गिर गया और बोला
'महाराज, वाकई आप ज्ञानी और
ध्यानी हो
मैं यही करने वाला था
सबसे बड़ा इन्टरनेट तो आपके पास है
मैं इसलिये आपको कभी नहीं जीत पाया'
साधू उसकी बात सुनकर केवल मुस्कराया

Friday, December 28, 2007

जब मोबाइल पर क्लर्क की जगह बोस आया

अपने ऑफिस में बोस से बात
करते हुए क्लर्क के पास मोबाइल पर
उसकी गर्लफ्रेंड का फोन आया
क्लर्क ने उससे कहा
'अभी मीटिंग में बिजी हूँ
बाद में फोन करना
मेरे पास ऐक अर्जेंट काम आया'
गर्लफ्रेंड ने रखा फोन और फिर बोस के
हुक्म पर वह निकला बाहर
अपना मोबाइल वहीं भूल आया

आते ही लग गया अपने काम में
उधर फिर बजी घंटी
मोबाइल उसके बोस ने उठाया
गर्लफ्रेंड ने कहा
''जानू ऐसा भी क्या काम है
जो मुझसे बात करने की फुर्सत नहीं है
तुम बहुत निष्ठुर हो
इससे तो अच्छा बोस न होकर
कोई क्लर्क होते
काम में इतने बिजी तो नही होते
इतना ऊंचा पद तुमने क्यों पाया'

इधर बोस भी युवा था उसे
अपने क्लर्क पर गुस्सा आया
वह बोला
'जिसका है यह मोबाइल वह तो क्लर्क है
मैं उसका बॉस बोल रहा हूँ
अगर बॉस समझ कर प्रेम किया है
तो बन्दा खिदमत में हाजिर है
वह क्लर्क है उसे तो मैंने काम में फंसाया'

गर्लफ्रेंड बोली
'उसने मुझे अपने बोस होने का
यकीन दिलाकर मुझे फंसाया
मैं नहीं कर सकती एक क्लर्क से प्यार
झूठा हो तो बिल्कुल नहीं
मुझे तुम्हारा प्रपोजल रास आया'

बोस ने किया अपना कमरा बंद और
चला गया दौरे के बहाने
दो घंटे बाद लॉट आया
उसके पीछे क्लर्क भी आया
और बोला
'सर मैं अपना मोबाइल आपके कमरे में
भूलकर चला गया था
आपके जाने के बाद मुझे याद आया'

बोस ने दो मोबाइल उसकी तरफ
बढाते हुए कहा
'तुम एक नहीं दो मोबाइल लो
एक तुम्हारा और एक उसे जो दिया तोहफे में
पचास रूपये के टाक टाइम की सिम वाला
सस्ता-घटिया यह मोबाइल
तुम्हारे जाने के बाद उसका फोन आया
बोस मैं हूँ तुम क्लर्क
जब मैंने उसे बताया
उसे तुम पर गुस्सा आया
जब मैंने उसे दिया प्रपोजल
वह खुश हो गयी
मैं अभी उससे मिलकर लौटा हूँ
उसने तुम्हारा मोबाइल भी लौटाया'

दुखी क्लर्क बाहर आया और
ऑफिस की छत की तरफ
देखकर चिल्लाया
अरे यह भी भला प्रेम है
या मोबाइल हो गया है
रोंग नंबर तो इतने आते हैं
पर मेरे मोबाइल पर तो रोंग पर्सन आया
अभी तक मैं अपने प्रेम के
मोबाइल नंबर बदलता था
उसने मेरे शाश्वत प्रेम का
मोबाइल नंबर ही बदलवाया
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Wednesday, December 26, 2007

फ्लॉप और हिट का खेल

क कवि पहुंचा ब्लोगर के घर और बोला
'यार, कवि सम्मेलनों में होने लगी है
हुटिंग ज्यादा
मुझे किसी ने अंतर्जाल पर जाकर
अपनी कविता की दुकान सजाने का
आइडिया सुझाया
तो मुझे तुम्हारा नाम याद आया'

ब्लोगर बहुत खुश हुआ
उसने सोचा अब तक मिलती थी
उनचास टिप्पणियां
अब पचास का जुगाड़ खुद मेरे पास आया
तत्काल उसे कम्प्यूटर के सामने बिठाकर
अंतर्जाल पर काम करने का
पूरा आइडिया समझाते हुए
उसका भी एक ब्लोग बनवाया
जाते-जाते कवि गुरूदक्षिणा में
कवि ने दिया ज्ञान
'क्या यह अगड़म-बगडम लिखते हो
कुछ कवितायेँ और कहानियां लिखा करो
अपनी हिन्दी के ज्ञान का विस्तार करो
जिसकी वजह से इतना तुमने नाम पाया'

ब्लोगर ने बाँध ली कवि की बात गाँठ बांधकर
जुट गया साहित्य सृजन में
पर होता गया फ्लॉप
रचनाएं तो बहुत होने लगीं
टिप्पणियां होती गईँ कम
फिर भी वह लिखने से बाज नही आया
एक दिन पहुँचा कवि के घर
और बोला
'बहुत दिन से न तुम्हें देखा
न तुम्हारा ब्लोग
जो तुमने मुझसे बनवाया '

कवि ने उसे अपना ब्लोग दिखाया
और बोला
'तुमसे बनाने के बाद मैंने
ब्लोग को छद्म नाम से बनाया
क्योंकि चुराई हुई कविताओं के लिए
मैं तो पहले ही बदनाम था
उससे बचने का यही रास्ता नजर आया
देखो मेरे नाम पर पुरस्कार भी आया'
ब्लोगर ने देखा कवि का ब्लोग
उसमें कवि के कतरनों के नीचे
उसकी कविताओं के ही अंश लगे थे
जिनमें कवि ने जोडा था अपना नाम
जिनमें पचास-पचास से
ज्यादा कमेन्ट जड़े थे
फिर कवि ने दिखाए
दूसरे ब्लोग
उनमें भी टिप्पणियों में
ब्लोगर की कविताओं की छबि थी
उसने कवि से कहा
'यहाँ भी तुम बाज नहीं आये
मेरी कतरन से हिट पाए
तुम्हारे रास्ते पर चलाकर मैं
तो हो गया फ्लॉप ब्लोगर
तुमने मेरी रचनाओं से ही
इतना बड़ा पुरस्कार पाया'

कवि घबडा गया और बोला
'यार, मैं क्या करता
मैंने तो अखबार की कतरनों और
तुम्हारी कविताओं के अंशों से ही काम चलाया
यही आइडिया मेरी समझ में आया
अब तुम किसी और से मत कहना
मेरी जिन्दगी में तो पहला
पुरस्कार आया'

ब्लोग वहाँ से निकल बाहर आया
और आसमान में देख कर बोला
'अजब है दुनिया
मैं कवितायेँ लिखकर हिट से
फ्लॉप ब्लोगर हो गया
और वह ब्लोग पर मेरी कवितायेँ लिखकर
हिट कवि कहलाया'
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जिसने जो माँगा मिल जाता हो
यह जरूरी नहीं
अगर ऐसा होता धरती पर
स्वर्ग होता हर कहीं

Tuesday, December 25, 2007

प्यार की सप्लाई में कट

इंटरनेट पर चैट करते हुए
दोनों के बीच शुरू हो गया प्रेम
कई दिनों तक चला यह
साइबर पर लव गेम
अचानक प्रेमिका के शहर
और घर में शुरू हो गया
बिजली का संकट

इधर प्रेमी सन्देश पर सन्देश भेजता
उधर प्रेमिका कभी घर के कमरे में
तो कभी छत पर टहलते हुए
झेलती घोषित पावर कट
बिजली आती तो वह इंटरनेट पर आती
पर उधर प्रेमी के घर पर
परिवार वाले लगा देते थे
कंप्यूटर पर काम करने में कट

आखिर प्रेमी के कहने पर
एक जनरेटर से चलने वाले
साइबर कैफे में जाने लगी
फिर उनकी प्रेम कहानी पटरी पर आने लगी
पर प्रेमी की खुशी ज्यादा दिन नहीं रही
प्रेम सन्देश अचानक मिलने हो गए बंद
उसकी हो गई हालत विकट

कई सन्देश उसने भेजे पर जवाब नहीं आया
आखिर उसने आत्महत्या की धमकी देते हुए
अपने ईमेल का बटन दबाया
दिल रहा था फट

उधर प्रेमिका के नये प्रेमी ने भी उसे पढा
और भेजा जवाब
'यार, पावर कट की वजह से
हम दोनों साइबर कैफे में आये
वह तुमसे बात करती
मैं अपनी दोस्त से
करता था चैट
एक दिन हो गए इससे मेरी भेंट
हम दोनों के लिए किश्तों में प्रेम
करना कठिन हो गया था
दोनों के यहाँ बिजली की आने-जाने का
समय एक हो गया था
दोनों का दर्द एक जैसा था
और दिल में प्यार भी वैसा ही था
एक दूसरे की हालत देखकर
दोनों का दिल गया फट
एक दूसरे का दुख बांटते हुए
हम एक-दूजे के हो गए
हमें दोष न देना
पावर कट ने ही किया
तुम्हारे प्यार की सप्लाई में कट

बौद्धिकता का धंधा

एक विचारक पहुंचा दूसरे के पास
और बोला
'यार आजकल कोई
अपने पास नहीं आता है
हमसे पूछे बिना यह समाज
अपनी राह पर चला जाता है
हम अपनी विचारधाराओं को
लेकर करें जंग
लोगों के दिमाग को करें तंग
ताकि वह हमारी तरफ आकर्षित हौं
और विद्वान की तरह सम्मान करें
नहीं तो हमारी विचारधाराओं का
हो जायेगा अस्तित्व ही खत्म
उसे बचने का यही रास्ता नजर आता है'

दूसरा बोला
'यार, पर हमारी विचारधारा क्या है
यह मैं आज तक नहीं समझ पाया
लोग तो मानते हैं विद्वान पर
मैं अपने को नही मना पाया
अगर ज्यादा सक्रियता दिखाई
तो पोल खुल जायेगी
नाम बना रहे लोगों में
इसलिये कभी-कभी
बयानबाजी कर देता हूँ
इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं आता है'

विचारक बोला
'कहाँ तुम चक्कर में पड़ गये
विचारधाराओं में द्वंद में भला
सोचना कहाँ आता है
लड़कर अपनी इमेज पब्लिक में
बनानी है
बस यही होता है लक्ष्य
किसी को मैं कहूं मोर
तो तुम बोलना चोर
मैं कहूं किसी से बुद्धिमान
तुम बोलना उसे बैईमान
मैं बजाऊँ किसी के लिए ताली
तुम उसके लिए बोलना गाली
बस इतने में ही लोगों का ध्यान
अपनी तरफ आकर्षित हो जाता है'

दूसरा खुश होकर उनके पाँव चूने लगा
और बोला
'धन्य जो आपने दिया ज्ञान
अब मुझे अपना भविष्य अच्छा नजर आता है'

विचारक ने अपने पाँव
हटा लिए और कहा
'यह तो विचारों के धंधे का मामला है
सबके सामने पाँव मत छुओ
वरना लोग हमारी वैचारिक जंग पर
यकीन नहीं करेंगे
मुझे तो लोगों को भरमाने में ही
अपना हित नजर आता है।
दिनभर हम झगडा करेंगे
रात को किसी होटल में बोतल खोलेंगे
बेबात के मुद्दे उठाएंगे
अपने बौद्धिक धंधे यह रास्ता तो
दौलत और शौहरत के तरफ जाता है
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Sunday, December 23, 2007

तुम्हारी विरह में हास्य कविता लिखता हूँ

ब्लोगर उस दिन एक पार्क में घूम रहा था तो उसकी पुरानी प्रेमिका सामने आकर खडी हो गयी। पहले तो वह उसे पहचाना ही नहीं क्योंकि वह अब खाते-पीते घर के लग रही थी और जब वह उसके साथ तथाकथित प्यार (जिसे अलग होते समय प्रेमिका ने दोस्ती कहा था) करता था तब वह दुबली पतली थी। ब्लोगर ने जब उसे पहचाना तो सोच में पड़ गया इससे पहले वह कुछ बोलता उसने कहा-''क्या बात पहचान नहीं रहे हो? किसी चिंता में पड़े हुए हो। क्या घर पर झगडा कर आये हो?"
''नहीं!कुछ लिखने की सोच रहा हूँ।''ब्लोगर ने कहा।

''मुझे पता है कि तुम ब्लोग पर लिखते हो। उस दिन तुम्हारी पत्नी से भेंट एक महिला सम्मेलन में हुई थी तब उसने बताया था। मैंने उसे नहीं बताया कि हम दोनों एक दूसरे को जानते है।वह चहकते हुए बोली-''क्या लिखते हो? मेरी विरह में कवितायेँ न! यकीनन बहुत हिट होतीं होंगीं।'
ब्लोगर ने सहमते हुए कहा-''नहीं हिट तो नहीं होतीं फ्लॉप हो जातीं हैं। पर विरह कवितायेँ मैं तुम्हारी याद में नहीं लिखता। वह अपनी दूसरी प्रेमिका की याद में लिखता हूँ।''
''धोखेबाज! मेरे बाद दूसरी से भी प्यार किया था। अच्छा कौन थी वह? वह मुझसे अधिक सुन्दर थी।''उसने घूरकर पूछा।
''नहीं। वह तुमसे अधिक खूबसूरत थी, और इस समय अधिक ही होगी। वह अब मेरी पत्नी है। ब्लोगर ने धीरे से उत्तर दिया।
प्रेमिका हंसी-''पर तुम्हारा तो उससे मिलन हो गया न! फिर उसकी विरह में क्यों लिखते हो?'
''पहले प्रेमिका थी, और अब पत्नी बन गयी तो प्रेम में विरह तो हुआ न!''ब्लोगर ने कहा।
पुरानी प्रेमिका ने पूछा -''अच्छा! मेरे विरह में क्या लिखते हो?"
''हास्य कवितायेँ और व्यंग्य लिखता हूँ।" ब्लोगर ने डरते हुए कहा।

''क्या"-वह गुस्से में बोली-''मुझे पर हास्य लिखते हो। तुम्हें शर्म नहीं आती। अच्छा हुआ तुमसे शादी नहीं की। वरना तुम तो मेरे को बदनाम कर देते। आज तो मेरा मूड खराब हो गया। इतने सालों बाद तुमसे मिली तो खुशी हुई पर तुमने मुझ पर हास्य कवितायेँ लिखीं। ऐसा क्या है मुझमें जो तुम यह सब लिखते हो?'
ब्लोगर सहमते हुए बोला-"मैंने देखा एक दिन तुम्हारे पति का उस कार के शोरूम पर झगडा हो रहा था जहाँ से उसने वह खरीदी थी। कार का दरवाजा टूटा हुआ था और तुम्हारा पति उससे झगडा कर रहा था। मालिक उसे कह रहा था कि''साहब। कार बेचते समय ही मैंने आपको बताया था कि दरवाजे की साईज क्या है और आपने इसमें इससे अधिक कमर वाले किसी हाथी रुपी इंसान को बिठाया है जिससे उसके निकलने पर यह टूट गया है और हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। तुम्हारा पति कह रहा था कि'उसमें तो केवल हम पति-पत्नी ने ही सवारी की है', तुम्हारे पति की कमर देखकर मैं समझ गया कि...............वहाँ मुझे हंसी आ गई और हास्य कविता निकल पडी। तब से लेकर अब जब तुम्हारी याद आती है तब......अब मैं और क्या कहूं?''
वह बिफर गयी और बोली-''तुमने मेरा मूड खराब किया। मेरा ब्लड प्रेशर वैसे ही बढा रहता है। डाक्टर ने सलाह दी कि तुम पार्क वगैरह में घूमा करो। अब तो मुझे यहाँ आना भी बंद करना पडेगा। अब मैं तो चली।"
ब्लोगर पीछे से बोला-''तुम यहाँ आती रहना। मैं तो आज ही आया हूँ। मेरा घर दूर है रोज यहाँ नहीं आता। आज कोई व्यंग्य का आइडिया ढूंढ रहा था, और तुम्हारी यह खुराक साल भर के लिए काफी है। जब जरूरत होगी तब ही आऊँगा।''
वह उसे गुस्से में देखती चली गयी। ब्लोगर सोचने लगा-''अच्छा ही हुआ कि मैंने इसे यह नहीं बताया कि इस पर मैं हास्य आलेख भी लिखता हूँ। नहीं तो और ज्यादा गुस्सा करती।''

ब्लोगर*जो अंतर्जाल पर लिखते हैं उनको ब्लोगर कहा जाता है
नोट-यह एक स्वरचित और मौलिक काल्पनिक व्यंग्य रचना है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई लेना देना नहीं है और किसी का इससे मेल हो जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा.

Friday, December 21, 2007

धीरज रखो वह दिन भी आयेंगे, सबके ब्लोग हिट हो जायेंगे

इस समय हिन्दी जगत में चार चौपालें हैं-नारद, ब्लोगवाणी, चिट्ठा जगत और हिन्दी ब्लोग। एक ब्लोगर के रूप में मैं इनमें सभी के प्रति एक जैसा भाव रखता हूँ और जो अन्य ब्लोगर हैं उनको भी यह सुझाव देता हूँ की वह चारों पर बराबर चहलकदमी करें ताकि इसके कर्णधारों और तकनीशियनों का मनोबल बना रहे। ऐसा नहीं है कि इनमें किसी का महत्व कम है। जब हम एक साथ यहाँ लिख रहे हैं तो आत्मीय भाव बनता ही है और किसी के प्रति कम और अधिक हो सकता है पर इसका यह आशय कदापि नहीं है कि हम सार्वजनिक रूप से उसे प्रदर्शित करें।
मैं कंप्यूटर तकनीकी के बारे में अधिक नहीं जानता पर अंतर्जाल पर निरंतर घूमते- फिरते कई ऐसी चीजें दिखाईं देती हैं जो कई तरह के नये आभास देती हैं। इनके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि इन चारों की आपस में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। चारों में बस एक ही समानता है वह यह कि हिन्दी के ब्लागर इनसे जुडे हैं और वह इनके साथ भानात्मक रूप से लगाव अनुभव करते हैं । वैसे इन सबके मार्ग अलग-अलग हैं और उनके सामने चुनौतियां भी अलग हैं। मेरा ब्लोग कई और जगह भी है फिर मैं इन चौपालों की बात ही क्यों कर रहा हूँ। इन चौपालों का महत्व मैं समझता हूँ। आपने देखा की ब्लोगर ने वेबसाईट बना ली पर इन चौपालों पर बने हुए हैं। इसका कारण यहाँ बने रहने का मतलब है कि आपकी ब्लोग भी वेब साईट जैसी ताकत रखते हैं। इन चौपालों के कार्य और परिणाम अलग-अलग है पर उस पर मैं अभी प्रकाश नहीं डालूँगा क्योंकि इस समय कई ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि अब इन सबको जो सामूहिक चुनौती मिलने वाली है।
चिट्ठाजगत के कर्णधार ने कल चिट्ठजगत पर एक वेबसाईट डाली थी और बताया था कि वह उनके सामने परेशानी पैदा करने आ जाती है-और यह नये परिवर्तन करने के बाद आ रही हैं। वह इसका मतलब जो भी समझे पर मैं कुछ और ही समझ रहा हूँ। चिट्ठजगत से मेरा संवाद रहा है और मैंने उनको साहित्य और आध्यात्म की श्रेणी का विचार बताया था। उनका जवाब था कि हमारी श्रेणियां अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार हैं। मेरी बताई श्रेणियों में में मेरी दिलचस्पी नहीं है क्योंकि उनमें मेरे ब्लोग स्वत: हे चहलकदमी कर रहे हैं पर यह अंतराष्ट्रीय मानक ज़रा विचार का विषय था। क्या चिट्ठजगत की श्रेणियां दूसरी वेबसाईटों पर भी हैं और वह क्या नहीं चाहतीं की कोई चौपाल इसका उपयोग करे। याद रखना इन श्रेणियों का मतलब यह है कि हमारे ब्लोग वहाँ होंगे और हो सकता है वह किसी को चुनौती देते हों। मेरे अपने ब्लोगों की पोस्टें सवा सौ से ऊपर श्रेणियों में हैं और वह उतनी जगह प्रकट होती हैं वेब साईटों के बाद। कहीं-कहीं तो अकेले ही मेरी पोस्टें धक्के खातीं हैं। चिट्ठाजगत के वेब साईट है और वह अपनी श्रेणियों के साथ चलकर कई वेब साईटों को चुनौती दे सकता है पर उनका यह संकट अकेले का नहीं है। बाकी चौपालें भी ऐसे संकटों का सामना कर सकती हैं। वजह हिन्दी के ब्लागर यहाँ है तो पाठक भी यहाँ आ रहे हैं और आयेंगे।
जो इस समय ब्लोगर हैं वह अपने श्रम की वजह से हैं वरना क्या जरूरत पडी हैं कि ब्लोगर अपनी पोस्टों पर लिखकर एक-दूसरे को सिखाते हैं? क्या वह लिखने में श्रम नहीं लगता। जैसे हिन्दी चौपालों पर रौनक बढेगी उसमें अपने लिए लाभ तलाशने वाले आयेंगे। दूसरी बात यह है कि यहाँ पाठक बने तो उसे अपने यहाँ खींचने की प्रतियोगिता शुरू होगी। जो लोग आर्थिक लाभ उठाते हैं वह अपनी तरफ से कोई नया स्त्रोत नहीं बनाते बल्कि पहले मौजूद स्त्रोतों का उपयोग करते हैं। हमारे ब्लोगरों ने अपने श्रम से जो ढांचा खडा किया है उसका दोहन करने के लिए लोग सक्रीय होंगे। वहाँ श्रीश शर्मा, सागर चंद नाहर, रवि रतलामी, उन्मुक्त और देवाशीष की तरह कोई सिखाने वाला नहीं है बल्कि इनके सिखाये का अपने हित के लिए उपयोग करनी की उन लोगों में इच्छा होगी।
मुझे यहाँ लोगों ने सिखाया है पर कई चीजों का उन्हें भी अंदाजा नहीं है और है तो जाहिर नहीं कर रहे हों। अपने मेरे कुछ ब्लोगों पर ऐसे नोट देखे होंगे जिसमें मैंने केवल ब्लोगर को ही अपने ब्लोग लिंक करने की छूट दी है। ब्लोगर में वह चौपालें भी जहाँ मैं पंजीकरण कराता हूँ। इसके बावजूद कुछ वेब साईट जिन पर विज्_ंजापन भी है मेरे ब्लोग लिंक कर रहीं हैं। अभी अधिक व्युज नहीं है पर हो सकता है कि मैं उन पर आगे चलकर आपत्ति उठाऊँ। बहरहाल अभी आपस में मतभेद हों कोई बात नही पर मनभेद मत करना। इन चौपालों के ब्लोगरों को अपना पाठक बनाने के लिए कई प्रयास होंगे पर उन्हें कोई आथिक फायदा हो यह सिर्फ चौपालों की सहायता से संभव होगा-क्योंकि तकनीकी और व्यवसायिक जानकारी हमें यहीं से मिल सकती है। मैं आपसी टकराव में कोई हित नहीं देखता। चौपालों के कर्णधार भी यह समझें कि उनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है और ज़रा-ज़रा सी बात पर कोई कड़ी कार्यवाही करना कोई उचित नहीं है। वह ऐसे ब्लोग आन्दोलन की सफलता से अपने हाथ धो बैठेंगे जिसे बडे परिश्रम से शुरू किया है। चौपाल को बनाने मैं कितनी मेहनत होती हैं वह जानते हैं और मैं परिश्रमी लोगों को देखता हूँ तो सोचता हूँ कि उनको अधिक से अधिक लाभ हो क्योंकि मुझे आज दिमागी और शारीरिक दोनों दृष्टि से परिश्रम करना पड़ता है और यही कहना कि धीरज रखो अपने दिन भी आयेंगे, जब सबके ब्लोग हिट हो जायेंगे।

Thursday, December 13, 2007

कंप्यूटर पर काम करने के साथ योग साधना करने से लाभ

अक्सर मैं सोचता हूँ कि लोग कंप्यूटर से इतना चिपके कैसे रहते हैं। अगर देखा जाये तो मैं भी कंप्यूटर पर दिन में दो से तीन घंटे काम करता हूँ पर उसके तरफ निगाह तभी जाती है जब उस पर कुछ पढ़ना हो या कोई फोटो देखना हो नहीं तो मैं अपने लिखने में मस्त हो जाता हूँ और कभी कभार त्रुटि देखने के लिए नजर फेर कर देखता हूँ। मैं कंप्यूटर पर टाईप में बिलकुल नहीं थकता। हाँ, पर अगर इस पर पढ़ना देखना मुझे बहुत थका देता है। जब थक जाता हूँ तो अपनी कुर्सी पर भी बैठ कर अपनी आँखे बंद कर शरीर को ढीला छोड़ते हुए ध्यान कर लेता हूँ। जब लगता है कि आराम है तब फिर पढता हूँ। पर यह आलेख कोई आत्मप्रन्चना के लिए नहीं लिख रहा।

चिट्ठाकार की चर्चा में मैं जब कल एक सक्रिय और आज उसके साथ दूसरे ब्लोगर के चौपाल पर न दिखने की चर्चा पढी तो मुझे याद आया कि ऐसे एक नहीं तीन चार ब्लोगर हैं और एक तो हर जगह कमेन्ट लगाते थे पर अब इतने सक्रिय नहीं हैं । एक महाशय कनाडा से अपने देश आये तो फिर उनके मुझे दर्शन ही नहीं हुए। यह सब ब्लोगर मुझे इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित करने वाले मेरे मित्र है और मुझे लग रहा था कि कहीं थकावट की वजह से आराम तो नहीं कर रहे। इसमें कोई सन्देश नहीं है कि कंप्यूटर पर काम करते थकावट बहुत होती है और उसका विकल्प यही है कि हम योग साधना कर उसका मुकाबला कर सकते हैं।
इसी बात पर विचार करते सोच रहा था। कंप्यूटर पर निरंतर काम करने से बहुत सारी व्याधियां पैदा होतीं हैं और कई ब्लोग लेखक अपने को थका हुआ अनुभव करते होंगे। कंप्यूटर पर काम करने के जो दुष्परिणाम होते हैं मैं उनको पहले ही भुगत चुका हूँ और आज से पांच वर्ष पूर्व जब योग साधना शुरू नहीं की होती हो वह सब नहीं लिख सकता था। कंप्यूटर पर काम करते हुए उच्च रक्तचाप की वजह से अपने स्वास्थ्य की लगभग हारी हुई लड़ाई जीतकर खडा हुआ। मैंने कई ब्लोग देखे हैं और उनमें लोगों की उदास रचनाएं मुझे बहुत कुछ कह जातीं हैं। मैं तो उन लोगों की तारीफ करूंगा को जो योग साधना नहीं करते और ब्लोग लिख रहे हैं या वह लोग मनोरंजन के लिए अंतर्जाल पर चिपके रहते हैं जैसे कभी देखा ही नहीं हों क्योंकि मैं ऐसा बिना योगसाधना के नहीं कर सकता।

सुबह योग साधना, प्राणायाम, ध्यान, और प्रार्थना करने के बाद मैं ब्लोग पर आता हूँ, और उस समय कल की लिखी गयी पोस्ट मुझे याद नहीं रहती। दिमाग में केवल यही रहता है कि आज कुछ नया लिखूंगा। जब आप कंप्यूटर पर आते हैं और आपको कल के कुछ पल याद आते हैं या आपको लग रहा है कि कल मैंने यह किया था तो आप समझ लीजिये कि वह विकार है। योग साधना जीवन जीने की कला है और नहीं करते तो उसे ढोना कहते हैं। हम मीठा खाएं या कड़वा, पका खाएं या कच्चा वह गंदगी में बदल जाता है वैसे ही आँखों से देखे गए अच्छे-बुरे दृश्य, कानों से सुने गए अच्छे-बुरे स्वर और देह को स्पर्श करने वाले अच्छी और बुरी हवाएं भी वैसे ही विकार पैदा करतीं हैं। खाने से उत्पन्न विकार हमें लगता है कि सुबह शरीर से एकदम निकला गए हैं तो गलत हैं। कुछ लोग सुबह घूमने जाते हैं और सोचते हैं कि सब ठीकठाक हो गया। नहीं ऐसा नहीं है। शरीर के विकार सुबह सैर करने से कुछ हद तक निकल सकते हैं पर मन और विचार के विकारों का क्या? जो आँखों, कानों और देह से उत्पन्न होते हैं। फिलहाल तो इतना ही कहूंगा कि कंप्यूटर पर सतत काम करना है तो योग साधना करें इसके बिना अगर काम चला रहे तो मैं कहूंगा कि बहुत बहादुर हो।
योगासन से शरीर, प्राणायाम से मन और ध्यान से विचारों के विकार निकलते हैं।अगर आप सुबह उठते हैं और सुबह सैर करते हैं तो आकर थोडा प्राणायाम करें, और कुछ नहीं तो अनुलोम--विलोम प्राणायाम करें और नहाधोकर ध्यान लगाएं। पहले ओम का जाप करें और फिर उसे मन में कुछ देर दोहराने के बाद अपना ध्यान नासिका के बीच केन्द्रित करें-भृकुटी पर रखें। आरंभ में आपके अन्दर विचार अधिक आयेंगे और उन्हें आने दें और आखें बंद कर बैठे रहें। जो विचार आपके आ रहे होंगे वह वास्तव में मन के विकार हैं जो भस्म हो रहे होते हैं। कुछ दिनों के बाद आब देखने कि आप शून्य में जायेंगे जब आप अपने ध्यान को भृकुटी पर अधिक समय तक केन्द्रित कर सकेंगे। दूकान, आफिस, यात्रा और घर में जहाँ भी अवसर मिले शरीर को ढीला छोड़ते हुए आँखें बंद कर भृकुटी पर ध्यान लगाएं। साथ में महसूस भी करें कि आपके मानसिक विकार भस्म हो रहे हैं।

कुछ समय के बाद आपको लगने लगेगा कि आपको शरीर और मन में अत्यधिक सहजता का अनुभव हो रही है और आप तब जान पायेंगे कि तनाव किस तरह का होता है-अभी तो आपको जब लग रहा है कि कोई तनाव नहीं है तब भी है,पर इसका अनुभव जब आप योग साधना करेंगे तब आपको नई-नई अनुभूतियाँ होंगीं। मैं अपने ब्लोगों पर अपना ज्ञान बघारने के लिए यह सब नहीं लिखता बल्कि अपने विचारों से अपने साथियों को इससे अवगत कराते रहना है।
नोट-भारतीय योग संस्थान द्वारा प्रकाशित 'योग-मंजरी'के नवीनतम अंक में 'दीपक राज' के नाम से मेरा लेख प्रकाशित हुआ जिन सज्जन के पास हो उसे पढें।

Friday, December 7, 2007

सच से अपने को कैसे छिपाऊँ

कभी-कभी यह ख्याल आता है
की सब छोड़ कर वन में चला जाऊं
फिर सोचता हूँ कि
अपने मन से दूर कहाँ जाऊं
यह सफर जिन्दगी का हम तय करते हैं
अपने मन के कहे पर
भ्रम यह है कि हम चल रहे हैं
इस सच को अपने से कैसे छिपाऊँ

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