समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, April 27, 2011

जिंदगी और मौत में पैसे की ताकत-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (zindagi aur maut mein paise ki takat-hindi vyangya kavitaen)

उनकी अर्थी 
डोली की तरह सजाई गयी
जिन्होंने उम्र भर
गरीबों के दर्द बांटने का
दावा करते हुए बिताया,
इंसानियत की करते रहे सेवा
पाया जमकर मेवा
इसलिये उनके मिट्टी हो चुके जिस्म को
चमकते हुए दिखायाा।
अमीर की जिंदगी और मौत
हमेशा खास होती है,
गरीब का कभी भाग्य उदय नहीं होता
और देह भी गरीबी में सोती है,
आखिर में यही संदेश सिखाया।
-----------
उन्होने अपनी पूरी जिंदगी
लोगों को यही सिखाया,
दौलत मरने पर साथ नहीं चलती है,।
मगर जब उनकी पार्थिव देह को
चेलों ने कांच के महल में सजाया,
मिट्टी हो चुकी देह को फिर चमकाया,
गरीबों का भला करने वाले जिस्म को
देवताओं जैसा मिला मान
दर्द बांटने में पूरा ज़माना महसूस कर रहा था शान,
तब लगा कि
गरीब की अर्थी तो कफन को तरसती है,
मगर उसकी जिंदगी के भला करने वालों पर
दौलत कुछ यूं बरसती है,
उनकी अर्थी पर भी
देशी घी के चिरागों से रौशनी जलती है,
------------

जिंदगी भर लोगों को
सादगी बरतने का संदेश वह देते रहे,
मगर उनकी अर्थी
शहंशाहों की तरह सजायी गयी।
कहते थे वह
‘मरने के बाद
संसार के दौलत साथ नहीं चलती’
मगर उनके कफन की
कीमत ऊंची थी,
कहते हैं उनको चमत्कारी पुरुष थे,
जो पलट सकते थे संसार कई कायदे
इसलिये उनकी अर्थी भी
रत्नों के साथ डोली की तरह सजायी गयी।
पैसे की ताकत जिंदगी से ज्यादा यूं बतायी गयी।
------------------
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

4.दीपकबापू   कहिन
५.ईपत्रिका 
६.शब्द पत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
९शब्द योग पत्रिका 
१०.राजलेख पत्रिका 

Friday, April 22, 2011

भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन-हास्य कविता (bhrashtachar ke virodh mein andolan or anti corruption movement-hasya kavita)

समाज सेवक ने अपने चेले को
बुलाकर डांटते हुए कहा
‘‘ यह अखबार में मैंने खबर पढ़ी है
तुम्हारी बीवी भ्रष्टाचार के विरोध में
चौराहे पर आंदोलन लिये खड़ी है,
उसे जाकर बताना
मेरे ही दम पर तुम्हारी रोटी बनाने वाली आग जल रही है
मेरे ही पैसे से खरीदे मेकअप के सामान से
उसकी खूबसूरत शक्ल पल रही है,
उससे कहो भ्रष्टाचार का विरोध छोड़कर,
आंदोलनकारियों से नाता तोड़कर,
अपना घर संभाले
या फिर यहां से होकर विदा तुम संभालो।’

चेला बोला
‘महाराज,
लगता है कि
आप नयी राजनीति समझ नहीं पाये,
इसलिये आपके विरोधी सभी जगह छाये,
आजकल भ्रष्टाचार का विरोध बन गया फैशन,
नहीं उसका रिश्वत रोकने से कोई कनेक्शन,
इधर समाज सेवा संभालने के लिये
पैसा जरूरी है
तो गरीब से भी नहीं रखना दूरी है,
अगर समाज पर काबू रखना है,
प्रसिद्धि और पैसे की मलाई चखना है,
तो आम लोगों के लिये
भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन चलाकर
उनका मन भी बहलाना है,
अपनी हरकतें छिपाने के लिये
उनका समर्थन करने का भी करना जरूरी बहाना है,
कुछ ईमानदार दिखने वाले चेहरे
आंदोलन में सजाये गये हैं,
सोच से पैदल हैं पर विद्वान बताये गये हैं,
मैं आपका सेवक हूं वहां नहीं जा सकता,
वरना मेरे साथ आपका भी नाम
बदनामी की दलदल में फंसता,
इसलिये बीवी को वहां भेजकर
आपका अस्तित्व वहां बचाया है,
इससे हम चाहे जैसे आंदोलन को मोड़ देंगे
मन में आया तो तोड़ देंगे,
इसलिये आप बेफिक्र रहो
अपना घर भी भरते रहो, हमें भी पालो।’’
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

4.दीपकबापू   कहिन
५.ईपत्रिका 
६.शब्द पत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
९शब्द योग पत्रिका 
१०.राजलेख पत्रिका 

Saturday, April 16, 2011

दिल का घाती-हिन्दी हाइकु (dil ka ghati hai-hindi haiku)

(1)
मुख में हंसी
दिल रखे खंज़र
बने थे मित्र।
(2)
ज़ंग शुरू की
मतलब फँसते
बदला चित्र।
__________
(1)
आँखें नम हैं
दिल में रख विष
ढोंगी साथी हैं।
(2)
हमराह है
मगर मित्र नहीं
दिल का घाती है
------------

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

4.दीपकबापू   कहिन
५.ईपत्रिका 
६.शब्द पत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
९शब्द योग पत्रिका 
१०.राजलेख पत्रिका 

Monday, April 4, 2011

नकली कप की खुशी भी नकली-हिन्दी व्यंग्य लेख (nakli cup ki khushi bhi nakli-hindi vyangya lekh)

मुंबई में संपन्न विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता 2011 के फायनल या अंतिम मुकाबले में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की टीम की जीत पर नकली कप दिया जाना कोई बिना सोची समझी बात नहीं थी अब इस पर विश्वास करना कठिन है। कप लाने वाले जानते थे कि उसे कस्टम वाले रोक लेंगे। अधिकारियों के टीवी चैनलों पर दिये गये बयान की बात माने तो उसे वापस लेने के कोई प्रयास नहीं किये गये। उनको शुल्क मुक्त के लिये कोई आवेदन भी नहीं मिला। आईसीसी का बयान है कि उस नकली कप को अब वह दुबई में अपने मुख्यालय ले जायेगी। इसका मतलब कि कोई ऐसी चाल है जिसका पता नहीं चल पा रहा।
यह सही है कि वह कप भारत में नहीं  रहना था। केवल प्रतीक के रूप में कप्तान को दिया जाना था। यह नियम भी है कि असली कप एक बार कप्तान अपने हाथ में लेता है और अपने खिलाड़ियों से मिलकर फोटो खिंचवाता है। फिर उसे वापस करने दूसरा कप दिया जाता है जो विजेता देश के पास रह जाता है। जो कप मिल गया वही मिलना था पर सवाल है कि औपचारिकता क्यों नहंी निभाई गयी?
इस विषय पर लिखे गये लेख का सर्च इंजिन पर पीछा करते हुए गये तो पता चला कि पाकिस्तान के कुछ लोगों ने एसएमएस अभियान चला रखा है। मतलब वहां खुशी का माहौल है कि भारतीयों को नकली कप मिला। वह निहायत मूर्ख हैं, उनको यह मालुम नहीं कि यह घटना भी उनको खुश करने के लिये प्रायोजित की गयी हो सकती है। पाकिस्तान सेमीफायनल में भारत से हारा जो कि विश्वकप मुकाबलों में उसकी पांचवीं हार है। बीस ओवरीय विश्व कप प्रतियोगिता का मैच जोड़ा जाये तो यह उनकी छठवीं हार है। अब यह अलग बात है कि वह स्वयं अपने खिलाड़ियों पर ही हार फिक्स करने का आरोप लगाते हैं। यह नकली कप भी फिक्सिंग का मामला लगता है। यह असली है या नकली यह अलग विषय है पर पाकिस्तान की हार एक सच है जो वहां के लोगों को माननी ही पड़ेगी।
आईसीसी का मुख्यालय दुबई में हैं जहां के शिखर पुरुषों की पाकिस्तान से हमदर्दी जगजाहिर है। पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधियों को मिलने वाला उनका संरक्षण भी किसी से छिपा नहीं है। क्रिकेट को काला करने में दुबई के धनपतियों का हाथ रहा है और भारत इसी कारण उनके यहां मैच नहीं खेलता। कहीं न कहीं यह बात दुबई के धनपतियों को अखरती है। फिर पाकिस्तान में बैठे कुछ लोगों को भारत की हार से चिंता है क्योंकि वह भारत विरोध के कारण ही वहां रह रहे हैं। कहीं न कहीं क्रिकेट की फिक्सिंग में भी उनका नाम आता है। ऐसे में संभव है कि गोरे अंग्रेजों के साथ मिलकर उन्होंने भारत की खिल्ली उड़ाने की यह घटिया योजना बनाई हो हालांकि इससे इतिहास पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। भारत का विश्व कप जीतना उनके लिये असहनीय घटना है। फिर क्रिकेट का भारत सबसे बड़ा धनदाता है पर धनपतियों के तार कहीं न कहीं दुबई और पाकिस्तान से भी निकलते हैं।
यकीनन यह प्रचार में स्कोर का मामला है। इस विश्व कप में पाकिस्तान पिट गया, संयुक्त अरब अमीरात की टीम को शामिल होने का अवसर ही नहीं मिला। दुबई में धनपतियों को अपने दो नंबर के धंधे चलाने हैं। सो यह दुबई और पाकिस्तान के लोगों को खुश करने के लिये किया गया नाटक लगता है कि भारत को नकली कप थमा दिये जाने का समाचार रचा गया। सच यह है कि इसे नकली कप नहीं कहा जा सकता। मिलना तो यही था अलबत्ता औपचारिकता वश आईसीसी का मूल कप न दिया जाना अच्छी बात नहीं है। मगर यह इतनी भी नहीं कि इसे तूल देकर विरोधियों को खुश किया जाये। अलबत्ता असली बात सामने नहीं आ पायेगी क्योंकि हमारे देश में क्रिकेट और उसका व्यापार अलग अलग अभी तक नहीं माने गये पर सच यही है कि क्रिकेट के व्यापारी सभी को खुश रखने का प्रयास कर रहे हैं। व्यापारी आदमी सभी को खुश करता है। वह यहां भी देता है वहां भी देता है। यहां भी लोगों को खुश करता है वहां भी करता है। पाकिस्तान के लोगों को हिन्दी देवनागरी नहीं आती और हम रोमन में लिखने वाले नहीं है जैसा कि वह लिख रहे हैं। वह हम पर हंस सकते हैं पर ऐसा करके हमेें भी अपने पर हंसने का अवसर दे रहे हैं। अगर कोई पाकिस्तानी इसे रोमन में पढ़े तो यह जान ले कि इस पाठ का लेखक प्रतिदिन सुबह हास्यासन करता है और अगले कुछ दिन तक पाकिस्तानी एक विषय रहेंगे। वैसे उन्हें भी खुश होने का हक है भले ही वह नकली कारण से क्यों न हो?
------------------

लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग

4.दीपकबापू   कहिन
५.ईपत्रिका 
६.शब्द पत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८,हिन्दी सरिता पत्रिका 
९शब्द योग पत्रिका 
१०.राजलेख पत्रिका 

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर