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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, November 30, 2015

महंगाई से लाचार-हिन्दी कविता(Mahangai se lachar-HindiPoem)

इंसान से टूटी उम्मीद
काबलियत पर
सवाल उठाती है।

ताकत से पूजा भले ही होती
मगर दिल पर लगी ठेस
बवाल लुटाती है।

कहें दीपकबापू दौलतमंदों से
कमजोर जनता की
नाराजगी के खतरे बहुत
खुशियों के सौदे का दाम चुकाती
महंगाई से लाचार होते ही
बदले का जाल जुटाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, November 21, 2015

ध्यान में आनंद-हिन्दी कविता (Dhyan mein Anand-Hindi kavita)


कोई घर नहीं मिलता
जहां दर्द का
बसेरा नहीं पाते।

भीड़ में मिलता नहीं
एक भी इंसान
इर्दगिद जिसके तनाव का
घेरा नहीं पाते।

कहें दीपकबापू घ्यान में
आनंद का मिले ऐसा प्रकाश
वैसा सवेरा भी नहीं पाते।
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हिन्दी और ट्विटर-व्यंग्य कविता
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हिन्दी में लेते चुटकी
कुछ मजा आता
अंग्रेजी में तुम
लिखने के मजे लूट लो
पाठक को नहीं भाता।
कहें दीपकबापू
ट्विटरिस्ट बंधुओ
हिन्दी टूल से लिखना
तुम्हें क्यों नहीं भाता।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Tuesday, November 10, 2015

जिंदगी का सफर-हिन्दी कविता(Zindagi ka Safar-Hindi Kavita)

जिंदगी के सफर में
कभी पर्वत पर चढ़े
कभी पांव खाई में आये।

कहीं मित्रों ने मुंह फेरा
कहीं अजनबी
दर्द की दवा लाये।

कहें दीपकबापू चलते रहो
अपने कदमों का हिसाब
आंखों से न देखो
न रखो खोये पाये का लेखा देखो
अमीर महलों में कैदी होते देखे
गरीब भी बिन पैसे मजे पाये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Monday, November 2, 2015

चालाकी ठगी जाती है-हिन्दी व्यंग्य कविता(Chalaki Thagi jaati hai-Hindi Satire Poem)

दर्द भोगते इंसान की
कमियां गिनाते हुए
भीड़ लग ही जाती है।

क्षणिक खुशी के मेले में
भीड़ के बीच खड़े अकेले में
किसी की किस्मत
जग ही जाती है।

कहें दीपकबापू जिंदगी की राह में
कर्म करते फल की चाह में
किसी ने पाई कामयाबी
किसी की चालाकी भी
ठगी जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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