समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, September 27, 2009

मुख में राम, बगल में रावण का साया-हास्य व्यंग्य कविता (mukh men ram, pas me ravan-hasya vyangya kavita)

सुनते हैं मरते समय
रावण ने राम का नाम जपा
इसलिये पुण्य कमाने के साथ
स्वर्ग और अमरत्व का वरदान पाया।
उसके भक्त भी लेते
राम का नाम पुण्य कमाने के वास्ते,
हृदय में तो बसा है सभी के
सुंदर नारियों को पाने का सपना
चाहते सभी मायावी हो महल अपना
चलते दौलत के साथ शौहरत पाने के रास्ते,
मुख से लेते राम का नाम
हृदय में रावण का वैभव बसता
बगल में चलता उसका साया।
.........................
गरीब और लाचार से
हमदर्दी तो सभी दिखाते हैं
इसलिये ही बनवासी राम भी
सभी को भाते हैं।
उनके नायक होने के गीत गाते हैं।
पर वैभव रावण जैसा हो
इसलिये उसकी राह पर भी जाते हैं।

....................................
पूरा जमाना बस यही चाहे
दूसरे की बेटी सीता जैसी हो
जो राजपाट पति के साथ छोड़कर वन को जाये।
मगर अपनी बेटी कैकयी की तरह राज करे
चाहे दुनियां इधर से उधर हो जाये।
सीता का चरित्र सभी गाते
बहू ऐसी हो हर कोई यही समझाये
पर बेटी को राज करने के गुर भी
हर कोई बताये।
....................

यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

Monday, September 21, 2009

ब्लॉग का bounce % भी देखना जरूरी-आलेख ( a article on hindi blog)

किसी ब्लॉग की लोकप्रियता का एक आधार यह भी है कि उसका bounce % क्या है. जब यह कहा जाता है कि केवल एक आदमी ही ब्लॉग पढता है तब अपने ब्लॉग पर अनेक पाठक देखकर भ्रम पालना ठीक नहीं लगता है. इसलिए गूगल विश्लेषण को अपने ब्लॉग से अवश्य जोड़ना चाहिए.
यह bounce % प्रतिशत जितना कम होगा उतनी ही लोकप्रियता प्रमाणिक होगी. इस ब्लॉग लेखक के अनेक ब्लॉग हैं उनमें हिंदी पत्रिका का bounce % 56 जो कि अलेक्सा द्वारा बताया गया है. यह वर्ड प्रेस का ब्लॉग है और सच तो यह है कि ब्लागस्पाट से अधिक वर्डप्रेस के ब्लॉग की पाठकों तक अधिक पहुँच का प्रमाण कि उनका bounce % कम होना ही है. गूगल विश्लेषण में इस बात की सुविधा है कि वह आपको bounce % बताकर वास्तविकता से अवगत कराता है.
हमारे अन्दर सफलता का भ्रम में रहना नहीं चाहिए क्योंकि असफलता के कड़वे सच का सामना करने से ही आत्मविश्वास आता है. हिंदी पत्रिका अन्य ब्लॉग से बहुत आगे बढ़ता जा रहा है. अलेक्सा की इस पर नज़र है, इसका प्रमाण यह है कि इस लेखक के केवल इसी ब्लॉग की भारतीय रैकिंग बताते हुए उस पर भारतीय झंडे का चिह्न लगा दिया है. भारतीय रैकेंग में भी यह ब्लॉग १३१०० से ऊपर है. इसके बावजूद अलेक्सा पर विश्वास करना कठिन है क्योंकि उसके निर्माण और सुधार का काम चल रहा है. चूंकि गूगल विश्लेषण वर्डप्रेस पर काम नहीं कर रहा है, इसलिए अलेक्सा के bounce % प्रतिशत पर दृष्टिपात करना बुरा नहीं है.
bounce % में भी एक कमी दिखाई देती है. वह यह कि उसमें अगर किसी पाठक ने केवल एक ही पृष्ठ देखा है तो वहां bounce % १०० आ जाता है, यानी की पाठक ने देखा पर रुका नहीं यही कारण है कि हिंदी के ब्लॉग एक जगह दिखने वाले फोरमों से bounce % कभी कम नहीं होता. संभव है आपको इन फोरमों पर दस पाठकों ने पढा हो पर bounce % १०० हो, पर अन्यत्र कहीं २ ने पढ़ा हो और वहां bounce % ४० हो. bounce का मतलब वही है जो चेक bounce होने का है. अंतर यह है चेक 100 % bounce होता है पर ब्लॉग में यह घटता बढ़ता है.
यहाँ स्पष्ट कर दें कि यह लेखक कोई तकनीक विशेषज्ञ नहीं है पर bounce % का अवलोकन करने से यही निष्कर्ष निकलता है. हिंदी पत्रिका शुरू में हिंदी फोरमों पर पंजीकृत नहीं थी पर उसने हमेशा ही अग्रता ली. इसका कारण यह था कि फोरमों पर न दिखने के कारण उस पर अनेक बार अन्य ब्लॉग से उठाकर पाठ सुधार कर रखे गए. सर्च इंजिनों पर पहुँचने के लिए सर्वाधिक प्रयोग उस पर करने के साथ ही उस पर अच्छे पाठ भी उस समय रखे गए जब वह ब्लोगवाणी पर दिखता था. यह गूगल की पेज रैंक ४ से नीचे तीन पर कैसे आया पता नहीं क्योंकि इसने पाठकों के मामले में उतरोत्तर प्रगति की है. वैसे तो इस लेखक के तीन ब्लॉग को इस समय चार की रैंक मिली है पर हिंदी पत्रिका और ईपत्रिका जिस तरह चार से तीन पर आये उससे गूगल पेज रैंक पर भी संदेह होने लगा है-क्योंकि इस लेखक के यही दो ब्लॉग निरंतर आगे बढ़ते जा रहे हैं. हिंदी पत्रिका का bounce % ५६ होने का आशय यह है कि वहां पाठक सबसे अधिक रुक रहे हैं और एक पाठ के बाद दूसरे पाठों को भी क्लिक कर रहे हैं. 100 % पाठक गूगल से आ रहे हैं. बिना फोरमों के सहायता के वहां २१५ पाठकों (पाठ पढने की संख्या ५०० से ऊपर) का आना इस बात का प्रमाण है कि हिंदी में अब खोज होने लगी है. इस खोज में विविधता है इसलिए यह कहना कठिन है कि किस तरह के लोग ढूंढ रहे हैं. अलबता लोग चर्चित विषयों को पसंद करते हैं क्योंकि उनके हिट्स बहुत होते हैं.इस लेखक का ब्लागस्पाट का अग्रता प्राप्त ब्लॉग शब्दयोग सारथि पत्रिका है जिसका bounce % 60.40 बाकी सभी ८० का ८५ के बीचे में हैं.
कुल मिलाकर जिन लोगों को अपने ब्लॉग का स्तर सही रूप से देखना हो उनको यह भी देखना चाहिए कि उनका bounce % कितना है. अगर वह १०० है तो वह ठीक नहीं है पर यह दावा करना इसलिए भी कठिन है क्योंकि वह के पाठक द्वारा एक ही पृष्ठ देखने पर bounce % 100 बताता है. हालांकि हमारा मानना है कि अगर वह १०० है तो इसका अर्थ यह है कि हमें उस ब्लॉग पर मेहनत करने की आवश्यकता है. आखरी बात यह कि यह अंतर्जाल है इसलिए दावे से कोई बात नहीं कही जा सकती, पर अपना विचार लिखना भी बुरा नहीं है. खासतौर से जब लिखने से कमाई नहीं हो तब इस तरह के खेल को बुरा भी नहीं कहा जा सकता, जो कि गूगल विश्लेषण से पता लगता है.
-----------------------------
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

Thursday, September 17, 2009

दूसरे की सोच के गुलाम-व्यंग्य कविता (soch ke gulam-vyangya kavita)

हम यूं तन्हा नही रह जाते
अगर उस भीड़ में शामिल होते।
सभी चले जा रहे थे
उम्मीदों के गीत गा रहे थे
हमने वजह पूछी
पर किसी ने नहीं बताई
ऐसा लगा किसी के खुद ही समझ नहीं पाई
हम भी बढ़ाते उनके साथ कदम
अगर दूसरे की सोच के गुलाम होते।
.......................
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

Sunday, September 13, 2009

सविता भाभी, छद्म ब्लागर और सच का सामना-हिन्दी हास्य कविता (savita bhabhi,chhadma blogger aur sach ka samana-hasya kavita)

नाम कुछ दूसरा था पर
नायिका सविता भाभी रखकर वह
सच का सामना प्रतियागिता में पहुंची
और एक करोड़ कमाया।
प्रतिबंधित वेबसाईट की कल्पित नायिका को
अपने में असली दर्शाया।
यह देखकर उसका रचयिता
छद्म नाम लेखक कसमसाया।
पीसने लगा दांत
भींचने लगा मुट्ठी और
गुस्से में आकर एक जाम बनाया।
पास में बैठे दूसरे
पियक्कड़ ब्लाग लेखक से बोला
‘‘यार, कैसी है यह अंतर्जाल की माया।
अपनी नायिका तो कल्पित थी
यह असल रूप किसने बनाया।
हम जितना कमाने की सोच न सके
उससे ज्यादा इसने कमाया।
हमने इतनी मेहनत की
पर टुकड़ों के अलावा कुछ हाथ नहीं आया।’

दूसरे पियक्कड़ ब्लाग लेखक ने
अपने मेहमान के पैग का हक
अदा करते हुए उसे समझाया
‘यार, अच्छा होता हम असल नाम से लिखते
अपने कल्पित पात्र के मालिक तो दिखते
हम तो सोचते थे कि
यौन विषय पर लिखना बुरा काम है
पर देखो हमारे से प्रेरणा ले गये
यह टीवी चैनल
कर दिया सच का सामना का प्रसारण
जिसमें ऐसी वैसी बातें होती खुलेआम हैं
हम तो हिंदी भाषा के लिये रास्ता बना रहे थे
यह हिंदी टीवी चैनल अंग्रेजी का खा रहे थे
हमारी हिंदी की कल्पित पात्र
सविता भाभी को असली बताकर
अपना कार्यक्रम उन्होंने सजाया,
पर हम भी कुछ नहीं कर सकते
क्योंकि अपना नाम छद्म बताया।
जब लग गया प्रतिबंध तो
हम ही नहीं गये उसे रोकने तो
कोई दूसरा भी साथ न आया।
हमारी कल्पित नायिका ने
हमको नहीं दिया कमाकर जितना
उससे ज्यादा टीवी चैनल वालों ने कमाया।
यह टीवी वाले उस्ताद है
ख्यालों को सच बनाते
और सच को छिपाते
नकली को असली बताने की
जानते हैं कला
इसलिये सविता भाभी का भी पकड़ लिया गला
अपने हाथ तो बस अपना छद्म नाम आया।

..............................
नोट-यह हास्य कविता एक काल्पनिक रचना है और किसी भी घटना या व्यक्ति से इसका लेनादेना नहीं है। अगर संयोग से किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
...............................
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

Wednesday, September 9, 2009

इश्क और मंदी का दुःखड़ा-हास्य व्यंग्य कविता (ishq and economy-hindi comedy satire poem

आशिक ने माशुका को समझाया
‘‘मोबाईल पर इतनी बात मत करो
मैं नहीं उठा सकता खर्चा
हर हफ्ते कपड़े भी न मांगो
रोज होटल में खाने की जिद छोड़ दो
मोटर साइकिल पर
इतनी सवारी करना मुश्किल है
पैट्रोल हो गया है महंगा
मेरे वेतन में भी हो गयी कटौती
अब शादी कर लेते हैं तो
कई समस्याओं से बच जायेंगे
क्योंकि मंदी की पड़ी रही है मुझ पर छाया।‘’

हाथ पकड़ कर साथ चल रही
माशुका ने तत्काल उसे छुड़ाया।
और गुस्से में बोली
‘‘अखबारे में मैंने पढ़ा था
सब जगह है मंदी
पर इश्क पर नहीं पड़ी इसकी छाया।
लगता है तुम अब कंजूस बन रहे हो
तुम्हें देखकर नहीं लगता कि
मंदी के जुर्म सहे हो
कहीं तुमने शादी करने के लिये
उसका बहाना तो नहीं बनाया।
अभी तो हमारे खेलने खाने के दिन है
जब अभी इश्क में खर्चा नहीं उठा सकते तो
शादी के बाद क्या कहर बरपाओगे
घर का काम भी मुझसे ही करवाओगे
इसलिये अगर वाकई मंदी है तो
फिर शादी ही नहीं इश्क को भी भूल जाओ
बस मंदी का दुःखड़ा गाओ
जब बढ़ जाये वेतन तब शादी के सोचना
उससे पहले कोई मिल गया मुझे साथी
तो अपने बाल नोचना
अब मेरा मूड खराब है
जब तेजी आये तब मेरे पास आना
अब न करो मेरा और अपना वक्त जाया।’’

-----------
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’

Sunday, September 6, 2009

जिन्न और पियक्कड़-हास्य व्यंग्य कविता (jinna aur drunkar-hasya kavita)

शराब की बोतल से जिन्न निकला
और उस पियक्कड़ से बोला
-"हुकुम मेरे आका!
आप जो भी मुझसे मंगवाओगे
वह ले आउंगा
बस शराब की बोतल नहीं मंगवाना
वरना मुझसे हाथ धोकर पछताओगे.


सुनकर पियक्कड़ बोला
-"मेरे पास बाकी सब है
उनसे भागता हुआ ही शराब के नशे में
घुस जाता हूँ
दिल को छु ले, ऐसा कोई प्यार नहीं देता
देने से पहले प्यार, अपनी कीमत लेता
तुम भी दुनिया की तमाम चीजें लेकर
मेरा दिल बहलाओगे
मैं तो शराब ही मांगूंगा
मुझे मालूम है तुम छोड़ जाओगे.
जाओ जिन्न किसी जरूरतमंद के पास
मुझे नहीं खुश कर पाओगे..
-------------------------
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’

Wednesday, September 2, 2009

बिजली का आना और जाना-हिंदी हास्य कविता (bijli par hindi hasya kavita)

अच्छे विषय पर सोचकर
कविता लिखने बैठा युवा कवि
कि बिजली गुल हो गयी।
कागज पर हाथ था उसका
कलम अंधेरे में हुई लापता
जो सोचा था विषय
उसका भी नहीं था अतापता
अब वह बिजली पर पंक्तियां सोचने लगा
‘कब आती और जाती है
यह तो बहुत सताती है
इसका आसरा लेकर जीना खराब है
इससे तो अच्छा
तेल से जलने वाला चिराग है
जिंदगी की कृत्रिम चीजें अपनाने में
पूरे जमाने से भूल हो गई।’

कुछ देर बाद बिजली वापस आई
कवि की सोच में भी
बीभत्स रस की जगह श्रृंगार ने जगह पाई
उसकी याद में
अपने साथ पढ़ने वाली
बिजली नाम की लड़की
पहले ही थी समाई
बिजली आने पर भूल गया वह दर्द अपना
अब उसने लिखा
‘मैं उसका नाम नहीं जानता
उसकी अदाओं को देखकर
बिजली ही मानता
जब भी जिंदगी अंधेरे से बोझिल हो जाती
उसकी याद मेरे अंदर रौशनी जैसे आती
उसका चेहरा देखकर दिल का बल्ब जल उठता है
कोई दूसरा उसे देखे तो
करंट जैसा चुभता है
मेरी कविताओं के हर शब्द की
ट्यूबलाईट उसकी याद के बटन से जलती है
उसके आंखों की चमक बिजली जैसी
चारों तरफ मरकरी जैसी रौशनी दिखती
जब वह चलती है
उसकी याद में मेरे दिल का मीटर तो
बहुत तेजी से चलता है
पर वह बेपरवाह
मुझे समझने में भूल करती है।

.................................
यह आलेख/हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग
‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’
पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्दयोग
कवि और संपादक-दीपक भारतदीप

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर