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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, July 30, 2015

दिल का बाज़ार-हिन्दी कविता(Dil ka bazar-hindi poem)


रुपहले पर्दे पर
रौशनी की तेज चमक में
सोच खो जाती है।

आंखें दृश्य देखती जरूर
मगर दृष्टि खो जाती है।

कहें दीपक दिल का बाज़ार
जागते दिमाग में नहीं लगता
नाचकर बेचते भांड सामान
कम कीमत के वादे में
शुद्धता खो जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, July 26, 2015

योगी के समक्ष सभी सम्मान लघुस्तरीय-हिन्दी चिंत्तन लेख(yogi sa samaksha sabhi samman laghu stariya-hindi though article)

             
                              एक समाचार के अनुसार हमारे देश के एक प्रतिष्ठत योगाचार्य को एक विश्वविद्यालय ने सम्मानित करने की घोषणा की है।  इसमें हमारी कोई आपत्ति नहीं है पर आशंका लगती है कि आगे कहीं सम्मानित करने वाली संस्थायें कहीं अपनी छवि चमकाने के लिये योगियों को सम्मान देकर भ्रमित तो नहीं करेंगी। हमारी दृष्टि से जिस व्यक्ति से योगाचार्य की उपाधि स्वयं धारण की हो उसे बाद में जनमानस ने स्वीकार भी कर लिया हो उसकी छवि फिर इस संसार में कोई अन्य सम्मान,उपाधि  और पुरस्कार नहीं चमका सकता।  अन्य सम्मान तो सांसरिक विषयों में कार्यरत शिखर पुरुष देते हैं वह योगी की जनमानस में स्थापित छवि के पास धब्बे की तरह दिखाई दे सकती हैं भले ही वह सोने का रूप क्यों न लिये हों।
                              हमारे देश में जनमानस के हृदय में सन्यासी और योगी की छवि इस तरह बसी है कि उसके सामने राजकीय संस्थाओं, प्रतिष्ठित शैक्षणिक विश्वविद्यालयों और बड़े आर्थिक प्रतिष्ठानों के सम्मान राजसी वृत्ति के कारण दिये जाने कारण फीके लगते हैं।  आमतौर से यह सम्मान, उपाधियां, और पुरस्कार कथित समाज सेवक को सेवा, व्यवसायिक फिल्मों के अभिनेताओं को कथित कला सेवा और कभी चाटुकारिता या सामायिक लेखन से जुड़े लोगों साहित्य सेवा के नाम पर दिये जाते हैं। उनकी प्रतिष्ठा जब कम हो जाती है या वह चर्चा में प्रभाव खो बैठते हैं तो फिर धर्म के क्षेत्र में प्रतिष्ठत लोगों को इस भावना से दिये जाते हैं देने वाली संस्था का नाम चर्चित हो।  अध्यात्मिक ज्ञानी इस बात को जानते हैं इसलिये कभी सम्मान की आशा न करते हैं न दिये जाने पर  लेते हैं।  हमारे देश में योग का प्रभाव बढ़ रहा है। अनेक  योगाचार्य  सक्रिय हैं जिन्हें इस तरह क सम्मान दिये जाने के प्रयास हो सकते है। उन्हें इससे बचने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि उनकी जनमानस में जो छवि है वह इससे छोटी भी हो सकती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Tuesday, July 21, 2015

सभी गरीब नहीं है-हिन्दी कविता(SABHI GARIB NAHIN HAI-HINDI POEM)

यह ठीक है
सभी इंसान
अमीरी के करीब नहीं है।

यह भी सच है
जिनकी जेब खाली
वह गरीब नहीं है।

कहें दीपक बापू दौलत के ढेर पर
कुछ इंसान चढ़ गये हैं,
उन पर  शक भी बढ़ गये हैं,
बिना पसीने कैसे पाया दाम
यह सवाल भी कम अजीब नहीं है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Friday, July 17, 2015

सपनों की अर्थी-हिन्दी कविता(sapanon ki arthi-hindi poem)


सपने जिनके टूटे
वह उनकी अर्थी सजाये
ज़माने को दिखा रहे हैं।

जज़्बातों के सौदागरों रखते
वादों में धोखे का जाल
सभी को सिखा रहे हैं।

कहें दीपकबापू सच्चाई से
मूंह छिपाते लोग
अंधेरे में चलाते तीर,
अपने कीमती पसीने से
बना देते चालाकों की  मुफ्त में खीर,
चले जो अपनी दम पर
जीत कर मनाया जश्न
दूसरों के भरोसे रखा काम
वह हारने वालों में नाम लिख रहे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Sunday, July 12, 2015

बुद्धिमान लोग वर्तमान में ही जीते हैं-चाणक्य नीति के आधार पर चिंत्तन लेख(A hindu hindi religion thought based on chankya neeti)


                              हर कल जो बीत गया उस पर हमारा बस नहीं था। कल जो होने वाला है उस पर भी हमारा बस नहीं होगा। मगर जो चल रहा है उसे हम भोग रहे हैं। प्रकृत्ति ने हमें हाथ पांव, आंखें, कान, नाक और बृद्धि दी है इसलिये वर्तमान स्थिति से ही जूझ सकते हैं।  जो दृश्य बीत गया वह हमारी इच्छा से सामने नहीं आया था जो कल आयेगा उसका आभास भी हमें नहीं है पर वर्तमान में जो दृश्य है उसी पर हम विश्लेषण कर सकते हैं। अनेक लोग बीते कल के दुःख और आने वाले दिन की चिंता में नष्ट करते हैं परिणाम यह होता है कि वर्तमान उनके लिये भूत बनकर संकट बनता है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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गते शोक न कर्त्तव्यो भविष्यं नैव चित्नयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः।।
                              हिन्दी में भावार्थ-बीती हुई घटना का शोक नहीं करना चाहिए। भविष्य की चिन्ता भी नहीं करनी चाहिए। बुद्धिमान लोग वर्तमान काल के अनुसार कार्य करते हैं।

                              मनुष्य के पास बहुत बुद्धि यह उसका गुण है पर वह इसके उपयोग का वैज्ञानिक तरीका नहीं जानता यह  उसका दुर्गुण है।  मनुष्य की इंद्रिया बाहर केंद्रित रहने के कारण दृष्यव्य तत्वों से प्रभावित होती है। उसमें अंतर्मन की शक्ति का ज्ञान नहीं रह जाता।  इसका एक मात्र उपाय है कि योग साधना के माध्यम से अपनी देह, मन, बुद्धि तथा विचारों का शुद्धिकरण किया जाये।  अनेक लोग योग साधना को केवल दैहिक शुद्धि का माध्यम समझते हैं पर अनुभवी साधक जानते हैं कि इससे न केवल आंतरिक विकार नष्ट होते हैं वरन् समस्त इंद्रिया बाहर प्रभावी होकर सक्रिय होती है।  जो इंद्रिया बाह्य वातावरण से प्रभाव होकर काम करती हैं योग साधना के अभ्यास से वह शक्तिशाली होने के बाद हर तरह के वातावरण को अपने अनुकूल बनाती हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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Thursday, July 9, 2015

अपना दर्द बाज़ार न लाओ-हिन्दी कविता(apana dard bazar n lao-hindi poem)

भरोसा करते जिन पर
वही इंसान
मुंह फेर जाते हैं।

जिंदगी का सच कठिन हो
जागते हुए भी
सपने ढेर आते हैं।

कहें दीपक बापू मुक्त भाव से
जीने आदत डालना जरूरी है,
रिश्तों पर क्या भरोसा
हर इंसान के साथ मजबूरी है,
अपना बाज़ार न लाओ
 हमदर्दी की दवा लिये
सौदागर घेर जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Saturday, July 4, 2015

जिंदगी के रंग-हिन्दी कविता(zindagi ke rang)


तरक्की के रास्ते पर
दौलत की चमक
सभी को बुलाती है।

दिल और दिमाग से
सोने का कोई वास्ता नहीं
खजाने की चाहत इंसान की
नींद को भी सुलाती है।

कहें दीपक बापू जिंदगी में
दिखते हैं तरह तरह के रंग
कोई तय नहीं कर पाता
चाहत छोड़े कि रखे संग
सूखी रोटी भी देती है चैन
चिकली बोटी पेट में जाकर भी
बेचैनी से रुलाती है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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