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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, July 14, 2017

मुफ्त माल पाने के लिये सब होते गरीब-दीपकबापूवाणी-(muft mal ki liye garib hote-Deepakbapuwani)

चाहत कर अपना संकट आप बुलाते, लोभ में अपनी अपनी चेतना आप सुलाते।
दीपकबापूसिर से पांव तक नाटकीयता भरी, नाकामियों से अपना सिर धुलाते।।
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मुफ्त माल पाने के लिये सब होते गरीब, प्रभाव जताने दबंग के हो जाते करीब।
दीपकबापूकभी ताकत दिखाते कभी औकात, जीत पर हंसे हारें तो कोसें नसीब।।
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कहानी सुना दिल बहलाने की करें तैयारी, जज़्बाती दिखते पर होती लूट से यारी।
दीपकबापूनज़र लगाते पराये माल पर, मुफ्त चीज पाने पर ही लगें उनको प्यारी।।
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किसी को पता नहीं उसका पैसा ही दम है, हैरान है वह भी जिसके पास कम है।
दीपकबापूखजाने पर बैठकर होते बेहोश, नहीं देख पाते गरीब की आंख नम है।।
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जिस पर घाव हुआ वही दर्द सहता है, पाखंडी हमदर्द तो बस दो शब्द कहता है।
दीपकबापूइंसानी भेष में पशु भी हैं, खुश होते जब रक्त सरेराह बहता है।।
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बिकने के लिये हर इंसान तैयार है, पैसा पास हो तो हर बंदा अपना यार है।
दीपकबापूजज़्बात की बात करते बेकार, दिल से नहीं पर जिस्म से प्यार है।।
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लोगों को भय दिखाकर साहस सिखाते, कायरों की महफिल में वीरता दिखाते।
दीपकबापूदूरदेश में मची देखी खलबली, घर में अपनी कूटनीति के नाम लिखाते।।
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Thursday, July 6, 2017

बंद दिल पर मुंह सभी के खुले हैं-दीपकबापूवाणी (Band dil uh munh sabhi ki khule hain-DeepakbapuWani

अपनों से धोखा कर आगे बढ़ जाते, मित्रों कंधे तोड़ तख्त पर चढ़ जाते।
‘दीपकबापू’ पर्दे पर छाते नायक बनकर, जब गिरते जमीन में गढ़ जाते।।
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बातों के वीर कभी लात नहीं चलाते, बुझाये चिराग कहते रात नहीं जलाते।
‘दीपकबापू’ पुरानी विरासत पर डाका डाल, स्वर्ण पट्टिका पर नाम ढलाते।।
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लोहे का ढांचा रंग से सजा दिया, मौज में बदहवास सवार ने मजा लिया।
‘दीपकबापू’ तीव्र ध्वनि से कान खो बैठे, एक करे बंद दूसरे ने बजा दिया।।
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देशभक्ति का जोर से नारा लगाते, थकेमांदे इंसान में जोश की धारा जगाते।
‘दीपकबापू‘ जज़्बात के सौदे में खाते मलाई, चौराहे पर भलाई का चारा लगाते।।
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बंद दिल पर मुंह सभी के खुले हैं, नीयत मैली पर चेहरे पूरी तरह धुले हैं।
‘दीपकबापू’ आदर्श की बात बोलते रोज, चरित्र सब के सस्ते में ही तुले हैं।।
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जिसका जितना बड़ा पद उतनी कमाई, कप में दूध नीचे ऊपर जमती मलाई।
‘दीपकबापू’ जब भी लिया पीने का मजा, कलम ने र्डंडे की तरह अपनी चलाई।।
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कोई अच्छी बात भी बुरी तरह कहें, किसी की अच्छी बात भी बुरी तरह सहें।
‘दीपकबापू’ बात की बात में खेल बिगाड़े, बड़बोलों की संगत से बचकर रहें।।
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स्वतंत्र मुख से बह रही अभद्र नालियां, बहती शब्द धारा में सजी ढेर गालियां।
‘दीपकबापू’ मूर्खों में बाट रहे स्वर्णिम उपाधि, आंख कान बंदकर भीड़ बजाये तालियां।।
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याचना करने पर भीख मिल जाती हैं, संकल्प हो तो कर्मठता की सीख मिल पाती है।
‘दीपकबापू’ चीजों के नीचे दबाई जिंदगी, इंसान के दिल में ही चीख हिल पाती है।।
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