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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, January 26, 2011

बेईमानों से भरे समाज में ईमानदार का हश्र-हिन्दी आलेख (beiman samaj mein imandar-hindi article)

मालेगांव के उपजिलाधीश श्रीयशवंत सोनावने को जिंदा जला दिया गया। वह तेल माफियाओं को अपने दुष्कर्मों से रोकने की कार्यवाही कर रहे थे। एक आम आदमी के लिये यह खबर डरावनी है पर प्रचार माध्यमों में सक्रिय प्रायोजित बुद्धिजीवी शायद ही इसकी अनुभूति कर पायें। एक आदमी को जिंदा जला देना वैसे ही डराने वाली खबर है। अगर किसी दूरस्थ गांव में किसी आम इंसान को जिंदा जलाने की घटना होती है तो शायद यह सोचकर संवेदनायें व्यक्त कर काम चलाया जा सकता है कि वहां असभ्य और कायर लोगों का निवास होगा। अगर किसी सरकारी अधिकारी को जला दिया जाये तो यह भी कहा जा सकता है कि बिना सुरक्षा के वह वहां गया क्यों? मगर नासिक जैसा भीड़ वाला शहर और वहां भी अगर उपजिलाधिकारी को जिंदा जला दिया जाये तो देश के लिये खतरनाक संकेत हैं।
आधुनिक व्यवस्था में जिलाधिकारी एक तरह से अपने जिले के राजा होता है। आयुक्त, राज्य के गृह सचिव तथा मंत्रियों का पद उससे बड़ा होता है पर जहां तक प्रत्यक्ष राज्य संचालन का विषय है सभी जानते हैं कि जिलाधीश अपने जिले का इकलौता नियंत्रक होता है। पुलिस या अन्य राजकीय विभाग का कोई प्रमुख उसके आदेश की अनदेखी नहीं कर सकता। जहां तक आम लोगों का सवाल है वह सभी जिलाधीश के पास नहीं जाते पर यह जानते हैं कि जिलाधीश उनका ऐसा रक्षक है जिससे पूरा जिला संविधानिक रूप से सुरक्षित है। जिलाधीश के साथ उपजिलाधीश भी होते हैं जो अपने हिस्से का काम जिलाधीश की तरह ही करते हैं। इनकी भूमिका न केवल प्रशासक की होती है बल्कि उनको दंडाधिकारी का अधिकार भी प्राप्त होता है-एक तरह से देश की न्याय व्यवस्था का प्रारंभिक द्वार भी उनके पद से ही शुरु होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिलाधीश तथा उसके अंतर्गत कार्यरत उपजिलाधीशों का समूह ही असली राजा है जिससे प्रजा मानती है। ऐसे में मालेगांव में श्रीयशवंत सोनावने को जिंदा जलाना भारी चिंता का कारण है। जब कहीं राजा जैसा ओहदा रखने वाले के साथ ऐसी भीषण घटना हो सकती है तो आम आदमी का क्या होगा? यकीनन यह प्रश्न पूछना बेकार है। कभी बड़े लोगों पर हमले को लेकर ऐसे प्रश्न करना केवल बौद्धिक विलासिता जैसा लगता है।
आंतकवाद और अपराधी से राज्य को लड़ना पड़ता है। राज्य से जुड़ी संस्थायें और पदाधिकारी अपना काम करते भी हैं। ऐसे में निचले स्तर पर कुछ छोटे कर्मचारियों के साथ हादसे हो भी जाते हैं पर वह राज्य के अस्तित्व को चुनौती देते हुए नहीं लगते। जिस तरह सैनिक मरते हैं पर सेनापति युद्ध बंद नहीं करता पर अगर सेनापति मर जाये तो अच्छी खासी सेना जीतती लड़ाई हारकर भागती है। शतरंज में भी खिलाड़ी बादशाह को शह देने से पहले वज़ीर को मारने के लिये तत्पर होकर चाले चलते हैं। अच्छे खिलाड़ी तो कभी पैदल मारने में वक्त नहीं गंवाते।
जिलाधीश और उपजिलाधीश राजधानियों में स्थापित राज्य के आभामंडल के ऐसे सेनापित होते हैं जिनके अंतर्गत जिले के राजकीय कर्मी अपने काम में लगे रहते हैं। ऐसे उपजिलाधीश को वह भी जिंदा जलाया जाना भारत के विशाल राज्य को एक बहुत बड़े संकट का संकेत दे रहा है। हम जब भारत के अखंड होने के दावे करते हैं तो उसके पीछे संवैधानिक व्यवस्था है। उसी संवैधानिक व्यवस्था में जिलाधीश और उपजिलाधीश के पद एक बहुत बड़ी बुनियाद हैं। इस पर कार्यरत व्यक्ति पूरे देश में अपना दायित्व अपने स्वभाव, विचार तथा कार्यप्रणाली के अनुसार करते हैं। उनके काम करने का ढंग चाहे जैसा भी हो पर कम से कम देश को एक रखने के पीछे उनकी प्रारंभिक कार्यवाही का बहुत बड़ा योगदान है।
श्री यशवंत सोनावने के साथ किया गया निर्मम व्यवहार जिस तरह शहर में हुआ वह यह प्रश्न भी उत्पन्न कर रहा है कि क्या वाकई देश आगे जा रहा है पीछे जंगल राज्य की तरफ फिसल रहा है। पैसे की अंधी दौड़ में अंग्रेजों जैसे वेशभूषा पहनने के बावजूद हम आदिमयुग की तरफ लौट रहे हैं। एक होनहार अधिकारी के साथ ऐसा हादसा देश में कार्यरत अन्य राजकीय अधिकारियों को डरा सकती है। ऐसे में प्रजा की सुरक्षा की बात तो गयी भाड़ में, राज्य को स्वयं के अस्तित्व की सोचना होगा क्योंकि उसके हाथ पांव राजकीय अधिकारी और कर्मचारी है जो कुंठित होकर रह गये तो राज्य का अस्तित्व ही संकट में आ जायेगा। शिखर पुरुषों के लिये ऐसी घटनाऐं बहुत बड़ी चुनौती है। उन्हें अपनी व्यवस्था के ऐसे छेद बंद करने होंगे जो आगे ऐसे संकट न खड़ा करें।
ईमानदारी के यज्ञ में प्राणाहुति देने वाले श्रीयशवंत सोनावने को हम भावभीनी और आत्मिक श्रद्धांजलि देते हैं। वह ईमानदार थे, बहुत सारे लोग बेईमान हैं। दरअसल ईमानदारी एक संस्कार है। इसका मतलब यह कि जो बेईमान हैं उनको संस्कार नहीं दिये गये जो कि माता पिता का दायित्व होता है। जब संस्कार आदत बन जाते हैं तब वह जिंदगी का अभिन्न हिस्सा होते हैं। बेईमानी भी एक ऐसी आदत है जो कि कुसंस्कार है जो कि माता पिता से ही मिलते हैं जो यह सिखाते हैं कि केवल पैसा कमाओ, खाओ पीयो और समाज में इज्जत बनाओ। यही कारण है कि जिससे सभी को दूसरों का भ्रष्टाचार दिखता है और अपना नहीं। कई लोग तो इसे भारतीय समाज का हिस्सा मानकर चुप बैठ गये हैं। जिस तरह पहले ईमानदारों के बीच बेईमान नफरत का हिस्सा बनता था उसी तरह अब बेईमानों में एक ईमानदार बनता है। श्री यशवंत सोनावने इसी नफरत का शिकार बने। दूसरी बात कहें तो भ्रष्टाचार और अपराध अब देश की समस्या नहीं बल्कि ईमानदार और उनका संस्कार बन गये हैं। हम परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं तो वह श्री यशवंत सोनावने के परिवार को यह हादसा सहन करने की शक्ति प्रदान करे।
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
writer and editor-Deepak Bharatdeep,Gwalior, madhyapradesh
http://dpkraj.blogspot.com

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