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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, April 27, 2014

अपनी अपनी सोच-हिन्दी व्यंग्य कविता(apni apni soch-hindi vyangya kavita)



अपने दोष लोगों को दिखते नहीं
दूसरों के गिरेबां में लोग झांकते हैं,
गैरों धवल कपड़ों पर दाग लगते देखने की चाहत है
अपनी कमीज पर सोने के बटन टांकते हैं।
कहें दीपक बापू हर जगह तमाम विषयों होती बहस
निष्कर्ष कहीं से मिलता नहीं है,
हर कोई जमा है अपनी बात पर
तयशुदा इरादे से हिलता नहीं है,
कान बंद कर लिये अक्लमंदों ने
मौका मिलते ही जुबां से  अपनी अपनी फांकते है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Saturday, April 19, 2014

जब भी किया हिसाब-हिन्दी लघु व्यंग्य कविता(jab bhi kiya hisab-hindi laghu vyangya kavita)



जिंदगी का हिसाब जब लगाते हैं तब होता है अहसास
कुछ सपने साकार खुद-ब-खुद साकार होते गये,
कुछ रिश्ते समय ने बदले कुछ मतलब निकलते ही खोते गये।
कहें दीपक बापू  पेटी में खजाना भरने की कोशिश
कभी हमने की नहीं,
इधर से आई माया उधर बह गयी कहीं,
जब भी किया हिसाब दिमाग हमारा गड़बड़ाया,
देना कभी भूले नहीं लेना याद नहीं आया,
रोकड़ बही लिखने का बोझ हम बेकार ढोते रहे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

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Friday, April 11, 2014

उतरा जो नकाब-हिन्दी कविता(utara jo nakab-hindi poem)



जब तक तक उनके चेहरे पर नकाब था
उनकी सुंदरता के अहसास से ही
दिल में हलचल मची थी
उतारा तो हमारी आंखें ही उदास हो गयीं
ख्यालों में बसी उनकी तस्वीरें कहीं खो गयीं।
कहें दीपक बापू मिट्टी से बने रंग बिरंगे खिलौने
सजावट में घर की शोभा बढ़ाते हैं,
टूटे तो हम उनके लिये बेकद्री जताते हैं,
इंसान तोड़ते हैं जब भरोसा खिलौने की  तरह
तब टूटते हैं हम खुद
फिर ढूंढते अपनी दूसरी जगह आशायें
जो दिल में कही सो गयीं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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Saturday, April 5, 2014

खबरों की असलियत-हिन्दी व्यंग्य कविता(khabron ki asaliyat-hindi vyangya kavita)



कुछ खबरे बनती हैं कुछ बनायी जाती हैं,

बताते हैं खुद खबरची कुछ ढूंढते हैं हम मसाला

बनाते हैं चाट की तरह खबर

मिर्ची सनसनी के लिये

मिलाई जाती हैं।

कहें दीपक बापू पर्दे  हो या कागज

प्रचार की धारा में बहने के लिये विज्ञापन की नाव जरूरी है,

अपने चेहरे को लोकप्रियता के समंदर में

पार लगाने वालों की  यही मजबूरी है,

नशा करते हैं जो पढ़ने सुनने का

उनको खबर की किस्म का हो जाता है अहसास

बयान करने के अंदाज से अपनी वह असलियत बताती है।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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