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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, July 24, 2014

जिंदगी के अलग अलग रंग-हिन्दी कविता(zindagi ke alag alga rang the-hindi pome)



हम तो जोश से चले थे
अपनी मंजिल की तरफ
नहीं पहुंच पाये क्योंकि रास्ते बंद थे।

हमने तो अच्छी नीयत से
ज़माने से रिश्ता जोड़ा
नहीं निभा क्योंकि लोगों के दिल तंग थे।

घूम घूमकर दरियादिलों की तलाशी की
देखा लोग खुद ही बेहाल हैं
सभी के जिंदगी जीने के अपने ही रंग थे।

कहें दीपक बापू हालातों पर
सोचना हमने बंद कर दिया
क्योंकि अपने दिल दिमाग के ख्याल
ऐसे उड़ते और कटते जैसे पतंग थे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Sunday, July 13, 2014

छिपा खजाना-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं(chipa khazana-hindi vyangya kavitaen)



कई बार सुना  वह लोग अमीर हो जाते हैं,
जिनके हाथ छिपे खजाने लग जाते हैं।
कहें दीपक बापू अब देखते हैं हम
छिपाते हैं जो अपना खजाना वही  अमीर कहलाते हैं।
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लुटेरों को अब कोई भय नहीं सताता है,
खजाने में पहरेदारों से ही हिस्सा मिल जाता है।
कहें दीपक बापू अपराधों का पैमाना ऊपर जाये तो जाये
रुपहले पर्दे पर ज़माने के हालात पर होती चर्चा
रोने वाला भी कमाई कर जाता है।
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किस जगह कौनसा सामान कब तक बचायें,
लुटने की फिक्र में जिंदगी कब तक दाव पर लगायें।
कहें दीपक बापू चिंता से बेहतर हैं चिंत्तन करना
सामानों का उपयोग करें पर दिल न लगायें।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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Friday, July 4, 2014

इंसानों में देवता नहीं हो सकते-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(insanon mein devata nahin ho sakte-hindi satire poem's)



सूरज में जरूरत से ज्यादा आग है,
शीतल है चंद्रमा पर उसमें भी दाग है।
कहें दीपक बापू इंसानों में कभी नहीं हो सकता देवता
सभी की नीयत में छिपा कोई न कोई राग है।
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अपने ही जाल में फंसा इंसान वफा का करता वादा,
क्या निभायेगा वह जिसके दिल में मतलब पाने का ही है इरादा।
कहें दीपक बापू कई लोगों ने विज्ञापन से अपनी छवि बनाई है
वह सौदागर सपने के बन जाते न करना उम्मीद उनसे ज्यादा।
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आलीशान घर है पर उनके दिल में बुझे चिराग हैं,
शहर की उजाड़कर हरियाली पहरे में रखे उन्होंने बाग हैं।
कहें दीपक बापू  किस पर हंसे किस पर रोयें
शेर और हिरण चबा जायें इंसान के वेश में कई नाग हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
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