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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, April 20, 2015

इंसान मस्तिष्क घड़ा है-हिन्दी कविता(insanin mastishk ghada hai-hindi kavita)


बूंद बूंद से घड़ा
भरता है
ऐसा कहा जाता है।

छेद हो तो बूंद बूंद
घड़ा खाली भी होता
ऐसा नहीं कहा जाता है।

कहें दीपक बापू इंसानी मस्तिष्क भी घड़ा है
ज्ञान की बूंद बूंद से
भरता है
अहंकार के छेद से होता खाली
यह हमारा विचार है
ऐसा कहा नहीं जाता है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर   

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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