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Sunday, December 14, 2008

अपनी असली दुनिया में लौट आया करो-व्यंग्य कविता

वह खुद हैं राह में भटके हुए
एक ही ख्याल पर अटके हुए
बताते हैं उन लोगों को रास्ता
हवस के पेड़ पर जो लटके हुए
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पर्दे पर चलचित्र देखकर
ख़्वाबों में न खो जाया करो
जो मरते दिखते हैं
वह फिर जिदा हो जाया करते हैं
जो मर गए
वह भी कभी कभी जिदा
नजर आया करते हैं
माया नगरी में कहीं सत्य नहीं बसता
जेब हो खाली तो
देखने के लिए कुछ नहीं बचता
रंगबिरंगे चेहरों के पीछे हैं
काले चरित्र के व्यक्तित्व का मालिक
देखो तो, दिल बहला लेना उनको देखकर
फिर अपनी असली दुनिया में लौट आया करो

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