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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, January 29, 2010

जमाने के सरताज-हिन्दी क्षणिकाएँ (zamane ke sartaj-hindi shayri)

खजाना भरने  वालों को

भला कहां सम्मान मिल पाया,

चमके वही लोग

बिना मेहनत किये जिनके वह हाथ आया।

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शरीर से रक्त

बहता है पसीना बनकर

कांटों को बुनती हुई

हथेलियां लहुलहान हो गयीं

अपनी मेहनत से पेट भरने वाले ही

रोटी खाते बाद में

पहले खजाना  भर जाते हैं।

सीना तानकर चलते

आंखों में लिये कुटिल मुस्कराहट लेकर

लिया है जिम्मा जमाने का भला करने का

वही सफेदपोश शैतान उसे लूट जाते हैं।

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अब लुटेरे चेहरे पर नकाब नहीं लगाते।

खुले आम की लूट की

मिल गयी इजाजत

कोई सरेराह लूटता है

कोई कागजों से दाव लगाते।

वही जमाने के सरताज भी कहलाते।


कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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