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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, July 16, 2011

खामोशी वह चाबी है-हिन्दी शायरी (khamoshi vah chabi hai-hindi shayari

 आओ
कुछ लोगों को
दूसरे के  क़सूरों पर चिल्लाते देखें,
अपने दोनों हाथ मदद के लिए
लुटेरों के सामने उठाते देखें।
किसी के गम से हमदर्दी नहीं है जिनको
धंधे के आँसू वही बहाते हैं,
इसी तरह हमदर्द कहलाते हैं,
अपने कदमों को बढ़ाते वह  तेजी  से तब
आकाओं से इशारा मिलता जब,
आओ
अपनी आँखों से देखो
अपने नजरिये से सोचो
हंसी का खज़ाना मिलने लगेगा
खामोशी वह चाभी  है
उससे दिल-ओ-दिमाग को खोलकर देखें।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com


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