आओ
कुछ लोगों को
दूसरे के क़सूरों पर चिल्लाते देखें,
अपने दोनों हाथ मदद के लिए
लुटेरों के सामने उठाते देखें।
किसी के गम से हमदर्दी नहीं है जिनको
धंधे के आँसू वही बहाते हैं,
इसी तरह हमदर्द कहलाते हैं,
अपने कदमों को बढ़ाते वह तेजी से तब
आकाओं से इशारा मिलता जब,
आओ
अपनी आँखों से देखो
अपने नजरिये से सोचो
हंसी का खज़ाना मिलने लगेगा
खामोशी वह चाभी है
उससे दिल-ओ-दिमाग को खोलकर देखें।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर कुछ लोगों को
दूसरे के क़सूरों पर चिल्लाते देखें,
अपने दोनों हाथ मदद के लिए
लुटेरों के सामने उठाते देखें।
किसी के गम से हमदर्दी नहीं है जिनको
धंधे के आँसू वही बहाते हैं,
इसी तरह हमदर्द कहलाते हैं,
अपने कदमों को बढ़ाते वह तेजी से तब
आकाओं से इशारा मिलता जब,
आओ
अपनी आँखों से देखो
अपने नजरिये से सोचो
हंसी का खज़ाना मिलने लगेगा
खामोशी वह चाभी है
उससे दिल-ओ-दिमाग को खोलकर देखें।
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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