बाबा रामदेव ने अपना अनशन स्थगित कर दिया है। उन्होंने देश का विदेशों जमा काला धन वापस लाने के लिये अपना अभियान बहुत समय से चला रखा है और इसके लिये उनको भारी जनसमर्थन भी मिला है। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने पर ऐसा ही समर्थन अन्ना हजारे को भी मिलता रहा है। जनकल्याण के लिये नारे लगाने और आंदोलन चलाने वालों को यहां समर्थन मिलना कोई बड़ी बात नहीं है पर इन प्रयासों के परिणाम क्या निकले यह आज तक कभी विश्लेषण कर बताया नहीं जाता। बहरहाल अन्ना हजारे को जहां केवल अपनी आंदोलन की अनशन शैली के कारण जाना जाता है तो बाबा रामदेव को पहले एक योग शिक्षक के रूप में प्रसिद्धि मिली।
हम जब अन्ना हजारे साहब और स्वामी रामदेव के आंदोलनों की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि कमोवेश दोनों ही किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते दिखे। वैसे दोनों में कोई तुंलना करना इसलिये भी व्यर्थ है क्योकि दोनों के सांगठनिक ढांचा प्रथक आधारों टिका है। फिर मुद्दा भी अलग है। अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाते रहे हैं जबकि स्वामी रामदेव काले धन पर बरसते रहे हैं।
हम दोनों के व्यक्तित्वों की बात करें तो बाबा रामदेव ने कम आयु में जो प्रतिष्ठा प्राप्त की उसका श्रेय उनकी योग शिक्षा को जाता है। काले धन के विरुद्ध वह अगर अपना अभियान नहीं भी चलाते तो उनकी लोकप्रियता योग शिक्षा की वजह से चरम पर पहुंच गयी थी। जिस योग विज्ञान के जनक पतंजलि ऋषि रहे हैं वह उनके नाम पर चला जा रहा था। काले धन के विरुद्ध अभियान से उनकी प्रतिष्ठा में कोई वृद्धि तो दर्ज नहीं बल्कि विवादों से उनके व्यक्तित्व की छवि आहत होती नजर आती है। योग साधकों की दृष्टि से योग शिक्षा तथा समाज के लिये आंदोलन अलग अलग विषय हैं। अन्ना जहां आंदोलन की वजह से लोकप्रिय हुए तो स्वामी रामदेव योग शिक्षा से लोकपिय्रता प्राप्त कर आंदोलन के लिये तत्पर हुए।
उन्हें आंदोलन करना चाहिए या नहीं यह उनका निजी विषय है। हम जैसे आम लोग उन्हें राय देने का अधिकार नहीं रखते। इतना अवश्य है कि देश के योग साधकों तथा अध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिये स्वामी रामदेव के क्रियाकलाप अन्य लोगों से अधिक दिलचस्पी का विषय होते हैं। पतंजलि योग एक महान विज्ञान है और हमारे पावन ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता का वह एक महत्वपूर्ण विषय है। इसलिये तत्वाज्ञान साधकों में बाबा रामदेव की गतिविधियों को अत्यंत व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाता है। जब अन्ना हजारे साहब के क्रियाकलाप की चर्चा होती है तो उसमें अध्यात्मिक श्रद्धा का पुट नहीं होता जबकि बाबा रामदेव के समय संवदेनाओं की लहरें हृदय में गहराई बढ़ जाती हैं।
यह पता नहीं कि बाबा रामदेव का गीता के बारे में अध्ययन कितना है पर उनके अनशन पर अध्यात्मिक विश्लेषकों की राय अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती है। यह अनशन राजसी कर्म में आता है। सात्विक, राजस तथा तामस भावों का चक्र कुछ ऐसा है कि आदमी इनमें घूमता रहता है। यह गुण किसी में स्थाई रूप से नहीं रहते। कर्मो के अनुसार मनुष्य के भाव बदलते हैं। सुबह आदमी जहां सात्विक होता है तो दोपहर राजस वृत्ति उसे घेर लेती है और रात के अंधेरे को वैसे भी तमस कहा जाता है। उस समय थका हारा आदमी आलस्य तथा निद्रा में लीन हो जाता है। अलबत्ता ज्ञानी तीनों स्थितियों में अपने आप नियंत्रण रखता है और अज्ञानी अपने भटकाव को नहीं समझ पाता-तामस तथा राजस भाव को क्या समझेगा वह अपने अंदर के ही सात्विक भाव को भी नहीं देख पाता। योगी इन तीनों गुणों से परे होता है क्योंकि वह कर्म चाहे कोई भी करे उसमें अपना भाव लिप्त नहीं होने देता। स्वामी रामदेव ने अभी वह स्थिति प्राप्त नहीं की यह साफ लगता है।
सच बात कहें तो हम जैसे आम लेखक, योग साधक तथा तथा ज्ञान पाठकों के लिये बाबा रामदेव का सर्वश्रेष्ठ रूप तो योग शिक्षक का ही है। स्वामी रामदेव अपने योग शिविरों में अपनी शिक्षा से लाभ उठाने वालों को सामने बुलाकर लोगों को दिखाते हैं मगर क्या वह अपने आंदोलन से लाभ उठाने वालों के नाम गिना सकते हैं। वह कह सकते हैं कि यह तो संपूर्ण समाज के लिये तो प्रश्न उठता है कि क्या लोगों को इससे कोई लाभ हुआ?
देश की जो स्थितियां हैं किसी से छिपी नहीं है पर हमारा समाज कैसा है इस पर विश्लेषण कौन करता है? रुग्ण, आलसी तथा संवेदनहीन समाज की दवा योग शिक्षा तो हो सकती है पर कोई आंदोलन उसे दोबारा प्राणवायु देगा इस पर यकीन करना कठिन है। वैसे रामदेव जी ने अपने आंदोलन के दौरान भी योग शिविर लगाया पर बाद में उनके भाषण से जो नकारात्मक प्रभाव होता है वह भी किसी मानसिक बीमारी से कम दर्द नहीं देता। वैसे हम बाबा रामदेव के आंदोलन का विरोध नहीं कर रहे क्योंकि ज्ञान साधना से इतना तो पता लग गया है कि देहधारी योग साधना से मन विचार, और बुद्धि को शुद्ध तो कर लेता है पर फिर उसका मूल स्वभाव उसके काम में लगा ही देता है हालांकि वह उसमें भी पवित्रता लाने का प्रयास करता है। स्वामी रामदेव ने योगाभ्यास से जहां दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक शक्ति पाई है उसमें संदेह नहीं है पर कहीं न कहीं उनके अंदर प्रतिष्ठा पाने का मोह रहा है जो उनको ऐसे आंदोलन में लगा रहा है। बहरहाल हम उनकी योग शिक्षक वाली भूमिका को सराहते हें और आंदोलन की बात करें तो उसके लिये पेशेवर विश्लेषकों का ढेर सारा समूह है जो माथापच्ची कर रहा है।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर, मध्यमप्रदेश
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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