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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, December 10, 2014

सपने के सौदागर-हिन्दी कविता(sapane ke saudagar-hindi poem)



आधुनिक वेशभूषा धारी
पसीना बहाने से
बहुत डरते हैं।

यही वजह है
लोग भूख से कम
ज्यादा खाने से
बहुत मरते हैं।

कहें दीपक बापू रोटी के सपने
बेचने वाले
बाज़ार में हर जगह मिल जाते है,
सारे ज़माने के भले का नारा
इस तरह लगाते
लोगों के कान हिल जाते हैं,
समाज सेवा के नाम पर
वही अपने घर भरते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर  

athor and editor-Deepak  "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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