कूड़े का ढेर
कहें दीपक बापू से
‘‘फ्लाप
कवि होकर तू मुझे
ऐसे क्या
घूर रहा है
इक दिन ऐसा
आयेगा
जब मेरे
इर्दगिर्द मेला लग जायेगा
तब मैं
घूरूंगा ऐसा तोहे।’’
सुनकर
मुस्कराये दीपक बापू
‘पता
है मोहे बीस साल में
घूरे के दिन
भी फिरते हैं,
सोने के
मुकुट भी कई बार
लोहे की
तलवारों से घिरते हैं,
तेरे नाम पर
ढेर सारा पैसा
इधर से उधर
हो जाता है,
पता नहीं
किधर जाता है,
इक दिन तू
उठ जायेगा,
फिर लौटकर
यहीं आयेगा,
हम देख रहे
तेरे
कभी राजसी
कभी कागजी ठाठ,
कई बार आते
नये कागज
कभी पाता
पुराना टाट,
नफरत से
नहीं देख रहे
हास्य कविता
समर्पित करते तोहे।’’
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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