कूटनीति का खेल प्रत्यक्ष नहीं दिखता। उसके अनुमान लगाने पड़ते है। पाकिस्तान को अलग थलग मेें भारत के प्रयास से ज्यादा उसके दुष्कर्म जिम्मेदार हैं। यकीन करिये पाकिस्तान चीन सहित विश्व के सभी देशों के लिये कांटा बना है। जिस परमाणुशक्ति पर पाक इतरा रहा है वही उसके पतन का कारण होगी। उसने ईरान तथा उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीकी बेची। तब अमेरिका के निकट उसे थोड़ा हल्का माना गया पर अभी हाल ही मेें उसने फिर उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार बेचे। वह उत्तर कोरिया जो विश्व के लिये खतरा बन गया है। प्रत्यक्ष चीन उसका मित्र है पर सामरिक दृष्टिकोण में कोई किसी का शक्तिशाली होना सहन नहीं करता। हमारा मानना है कि चीन नादान मित्र बनकर पाकिस्तान को निपटाने की तैयारी तो भारत का दाना शत्रु बनकर उसे इसके लिये प्रेरित भी कर रहा है।
भारत में कथित विद्वान भी इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे बस, केवल अपनी ताकत को लेकर फूल रहे हैं। पाकिस्तान के विरुद्ध विश्व भर में चिंता फैली है और माना जाना चाहिये कि सभी बड़े देशों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर यह जिम्मा डाल दिया है कि वह पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से रहित करें। पैदल सेना की ज्यादा हलचल नहीं पर यह सोचना भ्रम होगा कि कहीं कुछ चल नहीं रहा। पाकिस्तान के विभाजन से ज्यादा भारत की दिलचस्पी पाक को परमाणु शक्तिहीन करना है। यह तब होगा जब पाकिस्तान के रणनीतिकारों को ऐसी हालात में लाया जायेगा जब वह विश्व की हर शर्त माने। पाकिस्तान परमाणु सामग्री तथा तकनीकी का निर्यात जिस तरह कर रहा है उससे विश्व के सभी राष्ट्र चिंतित हैं-चीन भी कोई लोहे का बना नहीं है जो अपने इस नादान दोस्त को दाने दुश्मन भारत के मुकाबले ज्यादा महत्व दे। उसने कश्मीर पर पाक का साथ न देकर यही संदेश दिया है। मतलब जो करना है वह भारत ही करे बाकी तो तमाशाई बने रहेेंगे। अब भारत के रणनीतिक कौशल की परीक्षा है जिसमें उत्तेजना तथा क्रोध जैसे दुर्गुण से बचना ही चाहिये।
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