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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
दिल से खेलने वाले-हिन्दी कविता (Dil Se Khelne Wale-HindiKavita)
अपने गिरेबां में
कौन झांकता हैं।
भलाई कभी किसी की
करता नहीं
वही आदमी घर के बाहर
सेवक की तख्ती टांकता है।
कहें दीपकबापू दिल से
खेलने वाले सौदागरों की
पसंद बन गया
वही नायक की तरह तन गया
रुपहले पर्दे पर
अपना ज्ञान फांकता है।
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