चाहत कर अपना संकट आप बुलाते, लोभ में अपनी अपनी चेतना आप सुलाते।
‘दीपकबापू’ सिर से पांव तक नाटकीयता भरी, नाकामियों से अपना सिर धुलाते।।
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मुफ्त माल पाने के लिये सब होते गरीब, प्रभाव जताने दबंग के हो जाते करीब।
‘दीपकबापू’ कभी ताकत दिखाते कभी औकात, जीत पर हंसे हारें तो कोसें नसीब।।
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कहानी सुना दिल बहलाने की करें तैयारी, जज़्बाती दिखते पर होती लूट से यारी।
‘दीपकबापू’ नज़र लगाते पराये माल पर, मुफ्त चीज पाने पर ही लगें उनको प्यारी।।
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किसी को पता नहीं उसका पैसा ही दम है, हैरान है वह भी जिसके पास कम है।
‘दीपकबापू’ खजाने पर बैठकर होते बेहोश, नहीं देख पाते गरीब की आंख नम है।।
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जिस पर घाव हुआ वही दर्द सहता है, पाखंडी हमदर्द तो बस दो शब्द कहता है।
‘दीपकबापू’ इंसानी भेष में पशु भी हैं, खुश होते जब रक्त सरेराह बहता है।।
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बिकने के लिये हर इंसान तैयार है, पैसा पास हो तो हर बंदा अपना यार है।
‘दीपकबापू’ जज़्बात की बात करते बेकार, दिल से नहीं पर जिस्म से प्यार है।।
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लोगों को भय दिखाकर साहस सिखाते, कायरों की महफिल में वीरता दिखाते।
‘दीपकबापू’ दूरदेश में मची देखी खलबली, घर में अपनी कूटनीति के नाम लिखाते।।
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