समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, September 10, 2017

गुनाह पर फरिश्तों का पर्दा पड़ा है-दीपकबापूवाणी (Gunahon par Farishton ka parda pada hai-DeepakBapuWani)

लोकतंत्र के सहारे अपराधी पले हैं, कातिल चेहरे भलमानस अदाओं में ढले हैं।
‘दीपकबापू’ अपने ख्याली पुलाव पकाते, मगर गुस्से की आग में सब जले हैं।।
--
गुनाह पर फरिश्तों का पर्दा पड़ा है, बदनाम होने पर भी नाम बड़ा है।
‘दीपकबापू’ जिम्मा लिया पहरेदारी का, वही चोरों की संगत में खड़ा है।।
----
अपने सुख के साथ लोग नहीं चलते, पराये घर की रौशनी से सब जलते।
‘दीपकबापू’ खुशहाल वातावरण बनाते नहीं, ज़माने के दर्द पर सब मचलते।।
--
चेहरे तो अब भी इंसानों जैसे लगते हैं, दिल हो गये बेरहम जज़्बात ठगते हैं।
‘दीपकबापू’ हर कदम पर बैठा हादसे का डर, पता नहीं कब सोते कब जगते हैं।
--
पर्दे पर तर्क वितर्क का व्यापार चल रहा है, निरर्थक शब्द प्रचार में पल रहा है।
‘दीपकबापू’ कत्ल और आग के इंतजार में, हर चर्चाकार का दिल मचल रहा है।।
---
लाश होकर बन जाते बड़े,
दर्द के सौदगार पास होते खड़े।
‘दीपकबापू’ दिल तो ठहरा फकीर
बेदिल उससे जज़्बात की जंग लड़े।।
-
भीड़ में पहचान खोने से डरते हैं,
तन्हाई में पहचान के लिये मरते हैं।
‘दीपकबापू’ इधर नज़र तो आंखें उधर
अपनी सोच में चिंतायें भरते हैं।
---
इंसानों में कातिल भी
जगह बनाये रहते हैं।
इसलिये तो फरिश्तों के
नाम जुबानों में बहते हैं।
----

No comments:

लोकप्रिय पत्रिकायें

विशिष्ट पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर