पद पैसे का बल सबकी गर्दन तनी है,
गोया दुनियां उनके साथ ही बनी है।
कहें दीपकबापू बंदे बहुत कम मिले
जिनकी वाणी ज्ञान में घनी है।
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न घर न दिल की गदगी हटायें,
स्वर्ग की चिंता में उम्र घटायें।
कहें दीपकबापू भक्ति का पाखंड
सोच यह कि धन के सौदे पटायें।
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रास्ते में कहीं धूप कहीं छांव,
साथी उदासी शहर हो या गांव।
कहें दीपकबापू क्यों बेजार दिल
जब चल रहे अपने ही दम पांव।
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हुकुम अब नाकाबिलों के हाथ है,
रहम अब बेदर्दों के साथ है।
कहें दीपकबापू करुण रस सूखा
उम्मीद भी पत्थर दिलों के हाथ है।
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भूख का दौर बार बार क्यों आता है,
रोटी का चेहरा इतना क्यों भाता है।
कहें दीपकबापू देने वाले राम
इंसान को चिंतायें क्यों गाता है।
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