अच्छी सोच के लिये अच्छा देखना है जरूरी, चलों जहां श्रृंगार से सजी सभा पूरी।
‘दीपकबापू’ बोतल का जिन्न बना न साथी, मयखानों में इलाज की आस रही अधूरी।।
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दिल चाहे औकात से ज्यादा पाने की, दिमाग सोचे ताकत से ज्यादा जाने की।
‘दीपकबापू’ भटक रहे अपनी ख्वाहिशें, खरीददारी जेब में रखे ज्यादा आने की।।
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शराबियों का भी बहुत नाम होता है, उनकी आसक्ति में भक्ति का काम होता है।
‘दीपकबापू’ हर कतरे पर नाम लिखा, शराब से मिला जल ग्लास में जाम होता है।।
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बिछड़े इंसान याद में रहें कई बरस, गुजरे पल फिर मिलने की सोच में रहे तरस।
‘दीपकबापू’ गुरुओं की शरण ने भुलाया नाम, अच्छा हो राम जपें दिल हो सरस।।
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जंग के लिये अपना सीना फुलायें हैं, कब होगी तारीख सबके सामने भुलाये हैं।
दीपकबापू शस्त्र विक्रताअें से निभाते दोस्ती, जनमानस को देशभक्ति में सुलायें हैं।।
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मुंह से दहाड़ कर बन रहे हैं शेर, कर्म के नाम पर लगा रहे शून्य के ढेर।
‘दीपकबापू’ पेड़ के नीचे करें शयनासन, पेट भरे तभी जब हवायें गिरातीं बेर।।
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