दिन के सभी पल गुजारे जिन के साथ
रात की बैचेनी पर कभी
सवाल कभी उन्होंने किया नहीं
दिन में ही जब बैचेनी हुई तो
उनकी आंखों से दूर थे
पर फिर उन्होंने याद किया नहीं
लड़ते रहे अपने दर्द के साथ अकेले
वह बैचेन न हों इसलिये इतला किया नहीं
पर जब फिर दिन गुजारने
पहुंचे तो
हमारी गैर हाजिरी पर
सवाल उन्होंने किया नहीं
किस किसकी शिकायत करें
किस पर दिखायें गुस्सा
किसके साथ किफायत करें
मकसद के सब हैं
आते ही अपना मुकाम
छोड़ जाते हैं साथी
हम पर क्या गुजरती है
सवाल कभी उन्होंने किया नहीं
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