हिंदी ब्लाग जगत की शुरुआत करने वाले एक ब्लाग लेखक ने लिखा था कि उसने अपना छद्म नाम इसलिये ही लिखा था क्योंकि अंतर्जाल के ब्लाग या वेबसाईट पर कोई भी गंदी बात लिख सकता है। ऐसे में कोई परिचित पढ़ ले तो वह क्या कहेगा?
उसका यह कथन सत्य है। ऐसे में जब पुरुष ब्लाग लेखकों के यह हाल हैं तो महिला लेखकों की भी असली नाम से लिखने पर चिंता समझी जा सकती है। हालत यह है कि अनेक लोग असली नाम से लिखना शुरु करते हैं और फिर छद्म नाम लिखने लगते हैं।
छद्म नाम और असली नाम की चर्चा में एक बात महत्व की है और वह यह कि आप किस नाम से प्रसिद्ध होना चाहते हैं। जब आप लिखते हैं तो आपको इसी नाम से प्रसिद्धि भी मिलती है। कुछ लोग अपने असली नाम की बजाय अपने नाम से दूसरा उपनाम लगाकर प्रसिद्ध होना चाहते हैं उसे छद्म नाम नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह छिपाने का प्रयास नहीं है।
दूसरी बात यह है कि अंतर्जाल पर लोग केवल इस डर की वजह से अपना परिचय नहीं लिख रहे क्योंकि अभी ब्लाग लेखक को कोई सुरक्षा नहीं है। इसके अलावा लोग ब्लाग तो केवल फुरसत में मनोरंजन के साथ आत्म अभिव्यक्ति के लिये लिखते हैं। अपने घर का पता या फोन न देने के पीछे कारण यह है कि हर ब्लाग लेखक अपना समय संबंध बढ़ाने में खराब नहीं करना चाहता। सभी लोग मध्यम वर्गीय परिवारों से है और उनकी आय की सीमा है। जब प्रसिद्ध होते हैं तो उसका बोझ उठाने लायक भी आपके पास पैसा होना चाहिये।
अधिकतर ब्लाग लेखक अपने नियमित व्यवसाय से निवृत होने के बाद ही ब्लाग लिखते और पढ़ते हैं। यह वह समय होता है जो उनका अपना होता है। अगर वह प्रसिद्ध हो जायें या उनके संपर्क बढ़ने लगें ं तो उसे बनाये रखने के लिये इसी समय में से ही प्रयास करना होगा और यह तय है कि इनमें कई लोग इंटरनेट कनेक्शन का खर्चा ही इसलिये भर रहे हैं क्योंकि वह यहां लिख रहे हैं। सीमित धन और समय के कारण नये संपर्क निर्वाह करने की क्षमता सभी में नहीं हो सकती। यहां अपना असली नाम न लिखने की वजह डर कम इस बात की चिंता अधिक है कि क्या हम दूसरों के साथ संपर्क रख कर कहीं अपने लिखने का समय ही तो नष्ट नहीं करेंगे।
ब्लाग पढ़ने वाले अनेक पाठक अपना फोटो, फोन नंबर और घर का पता मांगते हैं। उनकी सदाशयता पर कोई संदेह नहीं है पर अपनी संबंध निर्वाह की क्षमता पर संदेह होता है तब ऐसे संदेशों को अनदेखा करना ही ठीक लगता है। सीमित धन और समय में से सभी ब्लाग लेखकों के लिये यह संभव नहीं है कि वह प्रसिद्धि का बोझ ढो सकें। इसलिये पाठकों पढ़ते देखकर संतोष करने के अलावा कोई चारा नहीं है।
हां, एक बात मजे की है। भले ही लेखक असली नाम से लिखे या छद्म नाम से उसका चेहरा पहचाना जा सकता है। अगर आपने किसी को असली नाम से लिखते देखा है और अगर वह छद्म नाम से लिखेगा तो भी आप पहचान लेंगे। एक बात याद रखने की है शब्दों के चेहरे तभी पहचाने जा सकते हैं जब आप उस लेखक को नियमित पढ़ते हों।
प्रसंगवश याद आया कि अंतर्जाल पर अपने विरोधियों से निपटने के लिये इस ब्लाग/पत्रिका लेखक ने भी दो ब्लाग अन्य नाम -उसे भी छद्म नहीं कहा जा सकता-से बनाया था और वह अन्य बाईस ब्लाग में सबसे अधिक हिट ले रहे हैं पर उनमें सात महीने से कुछ नहीं लिखा जा रहा है क्योंकि उस नाम से प्रसिद्ध होने की इस लेखक की बिल्कुल इच्छा नहीं है। आज अपने मित्र परमजीत बाली जी का एक लेख पढ़ते हुए यह विचार आया कि क्यों न उनको अपने ही इस नाम से पुनः शुरु किया जाये। उस नाम से दूसरे ब्लाग पर एक टिप्पणी आई थी कि आपकी शैली तो .........................मिलती जुलती है।
मतलब टिप्पणीकर्ता इस लेखक की शैली से पूरी तरह वाकिफ हो चुका था और वह इस समय स्वयं एक प्रसिद्ध ब्लाग लेखक है।
जहां तक शब्दों से चेहरे पहचानने वाली बात है तो यह तय करना कठिन होता है कि आखिर इस ब्लाग जगत में मित्र कितने हैं एक, दो, तीन या चार, क्योंकि उनके स्नेहपूर्ण शब्द एक जैसे ही प्रभावित करतेे हैं? विरोधी कितने हैं? यकीनन कोई नहीं पर शरारती हैं जिनकी संख्या एक या दो से अधिक नहीं है। वह भी पहचान में आ जाते हैं पर फिर यह सोचकर कि क्या करना? कौन हम प्रसिद्ध हैं जो हमारे अपमान से हमारी बदनामी होगी। ले देकर वही पैंच वही आकर फंसता है कि प्रेम और घृणा का अपना स्वरूप होता है और आप कोई बात अंतर्जाल पर दावे से नहीं कह सकते। जब चार लोग प्रेम की बात करेंगे तो भी वह एक जैसी लगेगी और यही घृणा का भी है। कितने प्रेम करने वाले और कितने नफरत करने वाले अंतर्जाल पर उसकी संख्या का सही अनुमान करना कठिन है। रहा छद्म नाम का सवाल तो वह रहने ही हैं क्योंकि आम मध्यम वर्गीय व्यक्ति के लिये अपनी प्रसिद्धि का बोझ उठाना संभव नहीं है। ब्लाग लेखन में वह शांतिप्रिय लेखक मजे करेंगे जो लिखते हैं और प्रसिद्धि से बचना चाहते हैं। अपने लिखे पाठों को प्रसिद्धि भी मिले और लेखक बड़े मजे से बैठकर शांति से उसे दृष्टा की तरह (state counter पर) देखता रहे-यह सुख यहीं नसीब हो सकता है।
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यह हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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9 comments:
सहमत।
दीपक जी,बहुत ही सटीक विष्लेश्ण किया है।मुझे यह कई बार लगा है कि मेरे और आपके विचारों में काफी समानता है।धन्यवाद।
दीपक जी मेरे और आपके विचारों में भी समानता है। कहीं आप, परमजीत बाली जी, और मैं एक ही व्यक्ति तो नहीं? ;)
Very well said Anil bhai!
Gentlemen the world of English blogging is already very shady and dirty because of false names. Let us discourage this tendency in Hindi and let us outcast those who indulge in blogging with proxy names . If we can not be true on blogs ,it is a very miserable life we are leading and first of all we should repair our lives before indulging in blogging.
Using a pen name is very different from giving a false Id . The world is already full of pseudos and we don't want any more here.
हाँ, शायद यह भी एक कारण हो सकता है। परन्तु यदि हम लगातार एक ही नाम से लिखते रहें तो यही नाम हमारी पहचान बन जाता है। इसमें धोखे जैसी कोई बात नहीं रह जाती।
घुघूती बासूती
kaafi had tak sahmat ...achchha lekh hai
अच्छा विश्लेषण-सही कह रहे हैं.
प्रिय दीपक /बहुत अच्छा आलेख /उपनाम और क्षद्म नाम की समुचित व्याख्या /आपका यह लिखना भी बिलकुल वाजिब है की “”""अपनी सम्बन्ध निर्वाह क्षमता पर संदेह होता है "" जहाँ तक प्रसिद्धि का प्रश्न है देखिये दीपक जी प्रसिद्धि तो हर लेखक चाहता है ,हम पत्रिकाओं में लिखते है तो नाम पता ,टेलीफोन नम्बर ,ई मेल आई डी सब देते है और लेख लिख कर फिर अगले माह की पत्रिका में पत्र संपादक के नाम का कलम पढ़ते हैं कि हमारे लेख पर किसी पाठक ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की या नहीं (हालाँकि कोई नहीं करता प्रतिक्रिया व्यक्त ) यह सही है कि हर एक की अपनी अपनी लिखने की शैली होती है और उससे लेखक पहिचान लिया जाता है लेकिन टिप्पणी कर्ताओं की कोई शैली नहीं होती ,वे कब क्या लिखदें / आपने कितनी सुंदर बात कही है कि कितने प्रेम करने वाले और कितने नफरत करने वाले अंतर्जाल पर है अनुमान करना कठिन है / आपने (लगभग )हर ब्लोगर के दिल की बात इस लेख में कह दी है
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